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________________ किरण.] बनारसी-नाममाला ४६३ * ५६ केकी अहिरिपु नीलगल, मिस्त्री मिखंडि मयूर १६० ३४"नव प्रहग्म नह ८ सून्य नभ, अनुक्रम अंक विचार 3२ चाम्बसु खंजन खंजग्टि, 3'वायस करट कगल । १ ध्रव अडोल थावर सुथिर, निश्चल विचल जान । 3.पिक काक्लि तह33°कीग सुक, 'वग्ट सुहंस मगल : दीपघाय चिराय तह, चिरंजीव सुबम्बान ।।१६।। ३२ कौसिक पेचक कारिपु,333पिक चातक मारंग। उपसंहा। और प्रशस्ति) 33४पागवत सुकपात गन,33'चकवा काक रथंग॥१६२।। होय जहाँ कलहीन, छंद सबद अक्षर अग्थ। उ पूग समाज ममूह ब्रज, श्राप संघ मंधान । गुनगाहक परवीन, लेह विचारिसंवारितह ॥१६॥ जूथ पंज समवाय कुल, निकर कदबक ब्रान ।।१६। मित्रनगसम थान. परम विचक्षण धनिधि। अर्याल वृद संदोह चय, संचय निचय निकाय । ताम वचन परवान,किया निबंध विवारि मनि ॥१७०।। प्राली पंकति निवह गन, गजि गमि ममुदाय।।१६४|| सांगहरी मार ममै, असू माम मित पक्ष । नारिपुरुष दंपनि मिथुन, -3"द्वंद जुगम जुग जान। विजैदमम मसवार नह, श्रवण नम्वत परतन ।।१७१।। उभय जुगल जम जमल विवि,लाचनसंग्य बवान१६५ दिन दिन तंज प्रताप जय, मदा अडित पान । 33"तीन लोक गुन मिवनयन,' 'चर जुग वेद उपाय। पानमाह थिर नग्दी, जहाँगीर सुलतान ॥१७२ ।। • पंच वान इंद्रिय सबद,3 *षट रितु अलि ग्म पाय१६६ जैन धर्म श्रीमालकुल, नगर जौनपुर बाम । 3. मान द्वीप मुनि हय विमन, ३० "पाठ धान गिरि सार । खडगमन-नंदन निपुन, कवि बनारमीदास ॥१७।। ३२६ मयूरनाम ३२७ ममोला (पक्षविशेष । नाम कुसुमगाज नाना वग्न, सुन्दर परम ग्माल । ३२८ काकनाम ३२६ कोकिलनाम ३३० नोतानाम ३३१ कामल-गुनगभित रची, नाममाल जैमाल ||१७४।। हंसनाम ३२२ उलूकनाम ३३३ पपीहानाम ३३४कबूतरनाम जे नर गर्ख कंठ निज, होय सुमति परकास । ३३५ चकवानाम ३३६ ममूहनाम ३३७ स्त्री-पुरुषसंयोगनाम भानु सुगुरु परसाद तह, परमानंद-विलाम ॥१७॥ ३३८ युग ( जोड़के) नाम ३३६ नीनके नाम ३४० चारके * इति बनाग्मी-नाममाला नाम ३४१ पाचके नाम ३४२ छहके नाम ३४३ मानके ३४५ नौके नाम ३४६ शून्यके नाम ३.७ स्थिरनाम नाम ३४४ श्राटके नाम । ३४८ चिरंजीवनाग। "सन्यासी (विरक्त ) दुनियामें रहता है, पर किया जाता है-स्वेच्छासे और इसलिये उममें युनियादार नहीं होता। जीवनकं महत्वपूर्ण कार्योंमे संतोषकी अनुभूति हाती है।" उमका आचरण माधारण मनुष्यों के जैमा होता है, "यह-अपवाद रहित-नियम है कि जो स्वयं सिर्फ उसकी दृष्टि जुदी होनी है। हम जिन बातोंको अपने त्यागका उल्लेख करता है उसके त्यागका गगके साथ करते हैं, उन्हें वह विगगक माथ उल्लंग्व दुनिया नहीं करती। जिम त्यागका उल्लम्ब करता है।" त्याग करनवालेको स्वयं ही करना पड़ता है, वह त्याग ___ "दुःख और तपम बड़ा भारी अन्तर है। दुःखमें नहीं। श्रात्म त्याग स्वयं प्रकाश्य होना है।" होती है वेदना और तपमे होता है श्रात्म-मनीष। “पूणे अहिमावादीका धर्म है-इसना त्याग दुःख सहना पड़ता है अनिच्छास और इसलिय कर दना कि-फिर कुछ त्यागना बाकी न रहे।" दुःम्बमें यन्त्रणाका बोध हो जाता है, किन्तु तप ---'विचारपुष्पांद्यान'
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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