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________________ भाई जयभगवानजी वकीलका सम्मान इस वर्ष दशलाक्षणिक पर्वकै अवसरपर धर्मपुरा देहलीके नये मन्दिरमें भाई जयभगवानजी वकील पानीपतने दस दिनतक शास्त्रसभामें तत्स्वार्थसूत्रके ऊपर नई शैलीसे अपना प्रवचन किया था-व्याख्यान दिया था, जिसे सुनकर श्रोताजन बहुत प्रसन्न हुए-मुझे भी दो दिन पापका प्रवचन सुननेका अवसर मिला और प्रसन्नता हुई। अतः भादोंकी पूर्णिमाको रात्रिके समय भापके सम्मानमें एक सभा चौधरी ला. जग्गीमलजीके सभापतित्वमें की गई, जिसमें आपके गुणों का कीर्तन करते हुए भारी पामार प्रदर्शित किया गया और एक सुसज्जित चौखटेके भीतर जड़ा हुआ 'अभिनन्दन-पत्र' श्रद्धाजलिके रूपमें पापको मेंट गया। उस समयका प्रेमदृश्य बड़ाही इदयद्रावक था-जनता सगंधित पुष्पोंकी मालाएँ मापके गले में डालती हुई तृप्त नहीं होती थी। इस समय बा० उग्रसेन जी एम०ए० (वकील रोहतक) प्रिंसिपल जैन गुरुकुल मथुराका अच्छा मार्मिक भाषण हुआ था, जिसमें भाई जयभगवानकी शिक्षा, प्रकृति, परिणति, अध्ययनशीलता और वेदों तथा षट्दर्शना दकं साथ तुलनात्मक अध्ययनको बतलाते हुए, उन्हें शासव्याख्यानाक रूपमें चुनने के लिय देहली जैनसमाजके विवककी प्रशंसा की गई, जिससे दो बड़े लाभ हुए-एक तो अच्छी समझम पाने योग्य भाषामें नई शैलीस शास्त्रका व्याख्यान सुननको मिला; दूसरे लगभग हजार रुपये की वह रकम बची जो प्रायः हरसाल किसी अच्छे पंडितको बुलानमें खर्च होजाया करती थी। जनताक अनुराधपर मैंने भी समयापयागी दो शब्द कहे । अन्तम नम्रता और कृतज्ञतादिके भावोंसे भरा हुआ भाई जयभगवानका भाषण हुआ और उसमें आपकी भावी समाजसंवानोंका भी कितना ही भाभास मिला। श्रस्तु, जो ' अभिनन्दनपत्र' आपको स्थलाक्षरोंमें भेंट किया गया वह सूक्ष्माक्षरोंमें 'अनेकान्त' के पाठकोंके जानने के लिये नीचे दिया जाता है। -सम्पादक सेवामें, श्रीमान् विद्वर्य धर्मवत्सल पं. जयभगवानजी बी०५०, एलएस. बी. वकील, पानीपत श्रीमन् जयभगवान ! गुणी-जनके मन-भावन, दर्शनीय विद्वान् परमज्ञानाम्बुज पावन । तुलनात्मक है दृष्टि नीतिमय वचन तुम्हारे, बार प्रभूकं भक्त धन्य तुम बंधु हमारे ॥ स्वार्थ और सम्मानकी नहिडछा तब पाम है। अनकान्तमयि-धर्मका हृदय तुम्हारे वास है। वेद और वदान्त उपनिषद् मनन करे हैं, पाश्चात्य विज्ञान और सिद्धान्त पढ़े हैं। षट्दर्शनका तत्व हृदयमें सतत् भग है, नूतन शैली सहित परम उपदेश करा है। तुलनात्मक जिनधर्मका करें विवेचन भाप हैं। सबके मापनके छिये स्याद्वादमयि माप हैं IR! विश्वोद्धारक जैनधर्म ही व्याख्याता, प्रवचन सन प्रानन्द भय हम पाई साता। जैनजाति-कुलचंद्र विभा, तुम हो उपकारी, पानीपन शुभठाम जहाँ तुमसे सुविचारी॥ ___ सज्जनताकी मूर्ति ! हम रखने श्रद्धा आपमें । करते मन-रंजन सभी, तब गुणकीर्विकलापमें ॥३॥ की यह हमपर कृपा यहाँ जो आप पधारे, मंवा हमसे बनी नाहिं नैननके सारे ! हृदय विशाल महान वचन शीतल जिमि चंदन, प्रेम-भावसे करें भ्रात हम सब अभिनन्दन । 4 समदर्शी विद्वान अति जयभगवान उदार हैं। अर्पित सामावसे हार्दिक ये उद्गार हैं ॥४॥ भाद्रपद शुक्ला १५ , कपाकांक्षी, सदस्य शाखसमा I. वीर निर्वाण सं० २४६७ १ श्री दिगम्बर जैन नयामन्दिर, धर्मपुरा, देहली।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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