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নবিনিৰা-জা-ম্বি
अनेक श्लोकोंमें दरावती नगरीका वर्णन किया है। होता था, तथा हमेशा शान्ति हवन मादि होते रहने के स्थानाभावकै कारण स्वाम ग्वाम श्लोकोंकाही परिचय कारण समय समय पर जलवर्षा होती रहती थी, यह दिया जा सका है। इसके आगे राजा समुद्रविजयका अर्थ लेने पर कोई विरोध शेष नहीं रह जाता। वर्णन देखिये- .
यहां वर्णनीय वस्तुमात्र इतनी है कि राजा यदर्धचन्द्रापचितोत्तमाण्डदोस्ताण्डवमानधानः । समुद्रविजयके गज्यमें दुष्टोंका निग्रह होता था और विषिभिर्दसशिवाप्रमोद, कैकैन दर्ष युधि रुदभावः ॥६१ वर्षा भी समयपर हुमा करती थी।'
'गजा समुद्रदत्तके वाणोंसे जिनका मस्तक कट परन्तु कविने विरोधालंकारकी पुट देकर उसे गया है, जो बचावके लिये अपनी उद्दण्ड भुजाओंको कितना सुन्दर बना दिया है! फड़फड़ा रहे हैं तथा भक्ष्य सामग्री प्राप्त होने पर जिन्हों महागज समुद्रविजयने शत्रु-गजाभोंको अवलने शिवा-शृगालियों के लिये हर्ष प्रदान कियाहै- निबल बना दिया था, इसका वर्णन देखियेएस कौन कौन शत्रुओंने युद्धमे रुद्रभाव-क्ररभाव- हालापरीकृत-कोपलमाः सखाभिमानास्तनवप्रभावाः । का धारण नहीं किया था? अर्थात् सभीने किया था।' मन्त्रप्रयोगादवला: मलं येनाक्रियन्त प्रतिपक्षभूपाः ॥en ___'जिनके मस्तक अर्धचन्द्रसे पूजित हैं, जो अपनी 'हा, हा, इस प्रकार दुःखसूचक शब्दोंद्वारा जिन भुजायास उदण्ड ताण्डव नृत्य करते हैं, तथा जिन्हों का कोप और लज्जा दूर होगई है, जिनका अभिमान न पति होने के कारण शिवा-पार्वतीको हर्ष प्रदान नष्ट होगया है, और नवीन प्रभाव अम्त होगया है किया है-ऐसे कौन कौन शत्रुनोने युद्धम रुद्रभाव- ऐसे शत्रुराजाओंको गजा समुद्रविजयने अपने मन्त्रमहादेवपनका धारण नही किया था । अर्थात् सभी वल-सद्धिचारणाके बलस निर्बल बना दिया था।' ने किया था।
[गजाने उन्हें निर्बल बना दिया था इसलिये ___ यहाँ क्रमसे लिखे हुए प्रकृत और अप्रकृत अर्थों उनकी ऊपर लिग्वी हुई अवस्था हो गई थी। का कितना सुन्दर श्लेष है और उससे प्रकट होने वाला 'हाला मदिराकं द्वारा जिनका कोप और लज्जा 'रुद्रभावः रुद्रभाव इव' यह उपमालंकार कविके जिस दोनों दूर होगई हैं तथा सुन्दर नाभिके मानसे काव्यकौशलको प्रकट कर रहा है वह प्रशंसनीय है। जिन्होंनेनव-तरूण पुरुषों के प्रभावको-धैर्यको नष्ट द्वे कौतुके हन्त यदावपत्रछावालस्थायिनि भूननेऽस्मिन् । कर दिया है ऐसे शत्रुनोंको गजा समुद्रविजयने अपने संतापमापदमाधुवों, यवृष्टिरप्यम्खलिता बभूव ॥६६॥ मन्त्र तन्त्रक प्रयोगसे अबला-खी बना दिया था_ 'महाराज समुद्र विजयकी छत्रछायाकंनीच रहने यह आश्चयेकी बात है! वाले भूमितलपर दो आश्चर्यजनक कौतुक हुए थे। यहाँ श्लेष तथा उससे उत्पन्न हुए विरोधाभास पहला यह कि दुष्टमानव-समूहने सन्तापको पाया था अलंकारकी सुन्दरता कविके अनोखे काव्य-कौशलको और दूसरा यह कि वर्षा भी अपतिहत-रोक टोक प्रकट कर रही हैं।
(क्रमशः) रूपसे हुई थी।' ___ जो मनुष्य छोया नीचे स्थित होता है स्वसे धूप १ 'हा' इत्यालापन दूरीकृते कोपलज्जे येस्ते, हालया मद्यनापतथा जलवृष्टिकी बाधा नहीं होतीपरन्तु यहां महाकवि दुर्गकृत कोरलजें याभिस्ताः । मन्नोऽभिमानी येषा ते, ने, समुद्रविजयकी छत्र छायाके नीचे स्थित उन दोनों अतएवास्नी नवः प्रभावो येषा ते, सुन्दरनाभेर्मानेन अस्तो बाधाओंको बतलाया है जिससे विराधालंकार अत्यन्त नवाना यूना प्रभावो-धैर्यरूपो याभिस्ताः । यद्रा सन्नोऽभिमान स्पष्ट होगया है। किन्तु उनकी शासन-व्यवस्था पा समन्तात्स्तनोच्चत्वं यासा ताः । यद्वा सुन्दरी नाभिमानी दुष्ट मनुष्योंका निग्रह होता था इसलिये दुष्टोंको दुःख यामा नाः, स्तनयोर्वप्रभाव उपना यासु ताः ।