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________________ जिन-दर्शन-स्तोत्र [40 हीरालाल पांडे, सागर] [१] माज जन्म मम सफल हुना प्रभुअक्षय • अतुलित निधि - दातार ! नेत्र सफल हो गये दर्शसेपाया है भानन्द अपार !! *माज पंच • परिवर्तनमय यह अति दुस्तर भव - परावार ! सुतर हुमा दर्शन स तेरे. भटका हूँ जिस में बहुबार !! [३ बाज नहाया धर्म . तीर्थमैंतेरा दर्शन पा साकार ! गात्र पवित्र हुमा नयनों में, छाया निर्मल तेज अपार !! अाज हुमा यह जन्म सार्थक, सकल मंगलों का आधार ! तेरे दर्शन के प्रभाव से, पहुँचा मैं जग के उस पार !! [५] आज कषाय-सहित कर्माष्टकज्वालाएँ विघटी दुखकार ! दुर्गति से निवृत हुमा मैं*तेरे दर्शन के आधार !! [६] प्राज हुए हैं सौम्य सभी ग्रह, शान्त हुए मन के संताप ! विघ्न-जान नश गये अचानक, तेरे दर्शन के सुप्रताप !! [७] पाज महाबन्धन कर्मों काबन्द हुमा, दुख का दातार ! सौख्य-समागम मिला जिनेश्वर ! तव दर्शन से अपरम्पार !! [ ] प्राज हुमा है ज्ञान-भानु का, उदय दो-मन्दिर में सार । तव दर्शन से है जिनेन्द्रबर ! मिथ्या तम का नाशनहार !! माज हुमा हूं पुण्यवान् मैं, दूर हुए सब पापाचार। मान्य बना है जग में स्वामिन् ! तेरा दर्शन पा अविकार !! AK मा [..] आज हुई जिन - दर्शन - महिमा, अवगत मुझ को हे भगवान् ! सत्पथ साफ दिखाई पड़ता, खदा सामने है कल्याण !! प्रद्याष्टक स्तोत्र का भावानुवाद
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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