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अनेकान्त
[वर्ष
साथमें बालकके रूपमें स्वयं भगवान् हैं।
तत्त्व विभाग द्वारा प्रकाशित अन्य पुस्तकें पढ़ें [हमें स्वयं दक्षिण-पूर्व की ओर जो मूर्तियाँ हैं उन तक पहुँचना इन मूर्तियोके दर्शन करने तथा किलेके अन्य पुराने स्थानों बहुत कठिन है । प्रयत्न करनेपर भी उन्हें हम देख नहीं सके। को देखनेमें इन ग्रन्थोसे बड़ी मदद मिली]
इन मूर्तियोके सम्बन्धमें जो विशेष जानकारी प्राप्त करना चाहें वे ग्वालियर गजेटियर तथा ग्वालियरके पुरा
('मधुकर' पाक्षिकसे उद्धृत)
+--: अमोघ आशा :--"
[ लेखक-व्याकरण रत्न पं० काशीराम शर्मा 'प्रफुल्लिन' ]
कभी हमारा था जग अपना, सुख था, दुखका था नहीं सपना; दस लक्षण, शुभ लक्षण थे तब, होती थी न अशुभ दुर्घटना। जब न रहे व सुखके दिन तो, ये दुर्दिन भी टल जायेंगे ! पाएंगे व दिम आगे !!
मंजु सुमन होंगे सहयोगी, कहीं न कोई पीड़ा होगी, सस्य - साधनाके साधनसंबन जायेंगे भोगी योगी । एक एक का हाथ पकड़ करदुख - सागरसे तिर जायेंगे ! पाएँगें, वे दिम आएँगे !!
जगति का तृण-दल निखरेगा, पण-प्रतिषण मृदुकण विखरेगा, मलयानलकी कम्पित, मोलीसे मजुल मकरन्द करेगा। प्रकृति-सुन्दरी नृत्य करेगी, वन-विहँग मंगल गायँगे! पाएँगे, वे दिन आएँगे !!
विप्नव, पापाचार घटेंगे; भीषण अत्याचार हटेंगे! सच्ची रीति - नीति से जगके, मिथ्याचार • विहार मिटेंगे, प्रेम - सुधाकी दो धू टोंसेअमर सदा को हो जाएँगे! पाएँगे, वे दिन पाएँगे !!
विषम-वासना मिट जाएगी, साम्य - भावना छा जाएगी; सदाचारकी सुख-गंगामेंदुनिया फिर गोते लाएगी। घुल कर पीड़ा क्रीड़ाओं में-- पाप पुण्यसे धुल जाएँगे! पाएँगे, वे दिन पाएँगे !!
मिट जायेगा, दर्द-पुराना, है परिवर्तन-शील ज़माना; भूलेगा अन्तर, आंखों कीप्याली से भाँसू छलकाना ! निर्मम हो कर छोड़ गये जोममता लेकर घर पाएंगे! आएंगे, वे दिन पाएँगे !!
[ ३ ] निशा-निराशा का मुंह-काला, नभ से फूटेगा उजियाला; अहण ,उषाके कोमल करसे एखक पड़ेगा जीवन प्याला। माशाके छींटों में दुब-हुबकरते तारे छिप जाएंगे ! भाएंगे, वे दिन पाएंगे !!
फैलेंगी नव-नता निराली, थिरक उठेगी डाली-डाली; संसृति मूम उठेगी सुख मेंसम में हँसती-सी दीवाली ! मंगलमय जग-जंगल होगा, सुखद-जलद जल बरसाएँगे! भाएंगे, वे दिन भाएँगे !!
मधु होगा, पीने • खाने को, मन्दन - वन मन बहलानेको, भूतलसे नभतख तक होगासुन्दर पथ, भाने • जानेको। 'सत्य' सखा बन साथ रहेगाअब चाहे पाएँ - जाएँगे ! भाएँगे, वे दिन भाएंगे !!