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________________ ४३० अनेकान्त पुरातन काल में यति मुनि जहाँ भी प्रतिष्ठा करवाते थे वहाँ के लेखोंकी प्रतिलिपि अपने दफ़तरोंमें याददाश्त के लिये रखते थे । श्री पूज्योके दफ्तरोको ऐतिहासिक दृष्टिसे संशोधित परिवर्द्धित करके यदि प्रकाशित किया जाय तो ऐतिहासिक सामग्री में बहुत कुछ अभि वृद्धि हो सकती है। एक बात यहां पर और भी उल्लेखनीय है, जो पूर्तिमाशास्त्रज्ञोंके लिये बड़ी ही महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगी, और वह यह कि दिगम्बर व श्वेताम्बर दोनो संप्रदायों की मूर्ति-निर्माण- कला भी प्रायः भिन्न रही है। हमने दि० संपूदायका काफ़ी मूर्तियों का अध्ययन किया है। उस पर हम कह सकते हैं कि दि० मूर्तियोंके आगे के भागमे प्राय: एक ओर चरण, दूसरी ओर 'नमः' पाया जाता है। ये दो चिन्ह क्यां बनाये जाते हैं समझ नहीं आता। लेकिन मेरा यह अनुमान है कि चरण इस लिये बनाये जाते होंगे कि कुछ समय पूर्व दि० संप्रदायम साधु विच्छेद हाय थे इस वास्ते चरणका गुरुक रूपमें मानते हा ता काई [ वर्ष ४ बड़े आश्चर्य की बात नहीं है। दूसरा जो चिन्ह है वह शात्रका द्योतक है । साथमे इस बातका भी स्मरण रखना चाहिए कि उपर्युक्त दोनों चिन्ह सभी मूर्तियोंमे नही पाये जाते हैं। दिगम्बर और श्वेताम्बर संपदाय-भेद होनेका इतिहास तो पाया जाता है मगर मूर्तियोमे कब भेद पैदा हुआ यह बात ठी रूपसे नही कह सकते । इम भेदक इतिहासका लिम्वन के पहिले प्राचीन प्राचीन दि० व श्रे० मूर्तियोकं फोटो तथा विस्तृत परिचय देकर एक महान ग्रंथ तैयार करना चाहिए | क्या दानी संपदायकं विद्वान व श्रीमान इस बात पर ध्यान देंगे? यदि यह कार्य किया जाय तो बहुत बड़ी उलभने सुलझ जायेंगी । 'जैनमूर्ति-पूजा-शा त्र' नामक निबन्ध (thesis) Ph.d. की डिग्री के लिये मेरे गुरुवर्य उपाध्याय श्रीसुखमागग्जीन लिखा है। इस प्रथ मे दानों संप्रदायाक प्राचान-अर्वाचीन मूर्तियोकं फाटो दिये जायेंगे । (क्रमश:) UH वीर सेवामन्दिर सरसावाकी भीतरी बिल्डिंगके एक भागका दृश्य
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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