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________________ अनेकान्तके प्रेमियोंसे आवश्यक निवेदन --****************** ** जा सज्जन 'अनेकान्त' में प्रेम रखते हैं, उसकी ठोस योग प्रधान है, उसके बलपर दूपरी आवश्यकताओंकी भी सेवाओंय कुछ परिचित हैं--यह समझते हैं कि उसके द्वारा बहुत कुछ पूर्ति की जासकती है। धनका प्रभाव निःसन्देह क्या कुछ संवाकार्य होरहा है-हो सकता है, और साथ एक बहुत ही खटकने वाली चीज़ है। धनाभावके कारण ही यह चाहनं हैं कि यह पत्र अधिक ऊँचा उटे, घाटकी संसारका कोई भी कार्य ठीक नहीं बनता, इसीसे दरिद्रियों के चिंताम मुक्त रहकर स्वावलम्बी बने, इसके द्वारा इतिहास मनोरथ उत्पन्न हो होकर हृदयमें ही विलीन होते रहते हैं तथा साहित्यक कार्योको प्रोजन मिले--अनेक विद्वान उन और वे कोई बड़ा काम नहीं कर पातं । 'चार जनोंकी लाकडी और एक जनका बोम' अथवा 'बूंद-बूंदमं घट भरे' की कार्यों के करने में प्रवृत्त हो-नई नई खोजें और नया नया माहिल्य मामने आए, प्राचीन साहित्यका उद्धार हो, मच्च कहावतक अनुसार छोटी छोटी सहायता मिलकर एक बहत इतिहासका निर्माण हो. धार्मिक सिद्धान्त की गुत्थियां सुलमें, बड़ी सहायता हो जाती है और उससे बड़े बड़े काम निकल समाजकी उन्नतिका मार्ग प्रशस्तरूप धारण करे. और इस जाते हैं, तथा किसी एक व्यक्ति पर अधिक भार भी नहीं प्रकार या पत्र नममाजका एक आदर्शपत्र बने समाज इस पड़ता। समाजकं अधिकांश कार्य इसी संयुक्त शक्तिके पर उचित गर्व कर मकौर समाजके लिये यह गौरवको आधारपर चला करते हैं। अनेकान्तको ऊँचा उठाने और उसे तथा दुसरं के लिये म्गृहाकी वस्तु बने तो इसके लिये उन्हें अपने मिशन में सफल बनानके लिये मैंने इस समय अनेकांत इस पत्रके सहयोगमें अपनी शक्तिको केन्द्रित करना चाहिय। की सहायताके मिम्न चार मार्ग स्थिर किये हैं। इनमेंस जो और कर मंयुक्त शक्तिके बलपर मब कछ हो सकता है. अकेले मज्जन जिम मार्गसे जितनी महायता करना चाहें मम्पादक अथवा प्रकाशकमे कोई काम नहीं बन सकता और सर्क उन्हें उस मार्ग उतनी सहायता ज़रूर करनी चाहिये न खाली मनोरथ मनोरथमे ही कोई काम यन पाता है, तथा दूसरोंमे भी करानी चाहिये, ऐसा मेरा मानुरोध निवेदन मनोरथकं पाथमें जब यथेष्ट पुरुषार्थ मिलता है तभी कार्यकी है। प्राशा है अनेकान्तकं प्रेमी सज्जन हमपर ज़रूर ध्यान ठीक मिद्धि होती है । पुरुषार्थ बही चीज़ है । अतः इस दिशा देंगे और इस तरह मेरे हाथोंको मजबूत बनाकर मुझे विशेष में अनेकानके प्रेमियंका पुरुषार्थ खास नोरमे अपेक्षित है-- रूपसे सेवा करनेके लिये समर्थ बनाएंगे। महायताके वे चार उनका यह मुख्य कर्तव्य है कि वे पुरुषार्थ करके इस पत्रको मार्ग इस प्रकार हैं:-- समाजका अधिकर्म अधिक सहयोग प्राप्त कराण और इसके । (1) ५), ५०), १००) या इससे अधिक रकम देकर सहासंचालकों के हाथों को मजबूत बनाएँ जिम्मम्मे व अभिमतरूप यकोंकी चार श्रेणियों में किसी में अपना नाम लिवाना। में इस पत्रको ऊँचा उठाने तथा लोकप्रिय बनानेमें समर्थ २) अपनी योरसे अम्ममोंको तथा अजैन संस्थाओं को हो मर्क। अनेकान्त पन झी (बिना मूल्य) या अर्ध मूल्यमें भिज___इसके लिये अनेकान्तके प्रचार, विद्वन्सहयोग और वाना और इस तरह दूसराको अनेकान्नके पढ़नेकी प्रा.र्थिक सहयोगकी बड़ी जरूरत है। इनमें भी आर्थिक सह- सातिशय प्रेरणा करना । (हम मदमें सहायता देनेवालों
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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