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________________ किरण ६-७] महाकवि पुष्पदन्त ४१६ और अपने समयके महान सम्राट् थे। 'तुटिगु' उन उत्तरमें नर्मदा नदीस लेकर दक्षिणमें मैसूर तक फैला का घरू प्राकृत नाम था । इम तरहकं घरू नाम हुआ था जिसमें माग गुजरात, मगठी सी० पी० राष्ट्रकूट और चालुक्य वंशकं प्रायः मभी गजाओंके और निजाम राज्य शामिल था। मालवा और बु.देलमिलते हैं। खंड भी उनक प्रभावक्षेत्र में थे। इस विस्तृत माम्राज्य वल्लभ नरेन्द्र, वल्लभगय, शुभतंगदेव और को कृष्ण तृतीयन और भी बढ़ाया और दक्षिणका कराहगय नाममं भी कविने उनका उल्लेख किया है। साग भन्तरीप भी अपने अधिकारमें कर लिया। शिलालम्बा और दानपत्राम अकालवर्ष, महा- कहाडक ताम्रपत्रोंक अनमार उन्होंने पाण्डा काल गजाधिराज, परमेश्वर, परममाहेश्वर, परमभट्टारक, कोहगया, सिंहलमं कर वसूल किया और गमेश्वरमें पृथिवीवल्लभ, ममस्तभुवनाश्य आदि उपाधियाँ अपनी कीर्तिवलगको लगाया। ये ताम्रपत्र महसन उनके लिए प्रयुक्त की गई हैं। ९५९ (श० म०८८१ ) के हैं और पम समय लिखे वल्लभगय पदवी पहले दक्षिण चालुक्य गय हैं जब कृष्णगज अपने मनपाटीके मना-शिविर गजाओंकी थी, पीछे जब सनका राज्य राष्ट्रकूटोंने म ठहरे हुए थे और अपना जीना हा गज्य और जीन लिया नब इम वंशके गजा भी इसका उपयाग धन-रत्न अपन मामन्तों और अनुगमोंका पदारना करने लगे। पूर्वक बांट रहे थे । इनके दाही महीने बाद लिम्वी भारतकं प्राचीन गजवंश (तृ० भा० पृ०५६) में । मामदेवसूरिकी यशाम्तलकप्रशाम्त । भी इम इनकी एक पदवी 'कन्धारपुरवगधीश्वर' लिग्बी है। की पुष्टि होती है। हम प्रशम्तिमें उन्हें पाण्ड्य, परन्तु हमारी समझमें वह 'कालिंजरपुरवगधीश्वर' सिंहल, चाल, चेर आदि आदि देशांको जीतने वाला होनी चाहिए | क्योंकि उन्होंने चेटीके कलचुरि नरेश लिखा है। महस्रार्जुनको जीता था और कालिंजरपुर चेदियादवली के शिलालग्यमं मालूम होना है कि उसने मुख्य नगर था । दक्षिणाका कलचुरि गजा बिज्जल कांचीकं गजा दान्तगका और बप्पुकको माग, पल्लव भी अपने नामके साथ कालिंजरपुरवराधीश्वर पद नरेश अन्तिगको हगया, गुजगंके आक्रमणमे मध्य लगाता था। भारतकं कलचुग्यिोंकी रक्षा की और अन्य शत्रुओं अमोघवर्ष तृतीय या बहिगक नीन पुत्र थे- पर विजय प्राप्त की। हिमालयम लेकर लंका और तुडगु या कृष्णतृतीय, जगजेंग और स्वाट्टिगदेव । पूर्वस लेकर पश्चिम समुद्र तक राजा उसकी माझा कृष्ण मबसे बड़े थे जो अपने पिनाके बाद गहीपर माननं थे । उसका माम्राज्य गंगाकी मामाको भी पार बैठे और चूँकि दूसरे जगत्तुंग उनम छोटे थे तथा कर गया था। उनकं गज्यकालम ही म्वगंगन हो गये थे, इम चालदेशका गजा पगन्तक बहुत महत्वाकांक्षी लिए तीसरे पुत्र खाट्रिगदेव गद्दीपर बैठे । कृष्ण के था। इसके कन्याकुमारी में मिले हुए शिलालम्बम' पुत्रका भी इम बीच देहान्त होगया था और पौत्र लिम्वा है कि उसने कृपणतृतीयकांगकर वीरपालकी छोटा था, इसलिए भी खाट्टिगदेवको अधिकार मला। पदवी धारण की। किस जगह गया और कहां कृष्ण तृतीय राष्ट्रकूट वंशकं सब अधिक प्रतापी ३ एपिग्रंफिया इंडिका (ए.१०) जिल्द ४० २७८ । और सार्वभौम गजा थे। इनके पूर्वजोंका साम्राज्य ४ वंदीग दिएणधग्ण-कणयपया महिपरिभमंतु मेलाडिणया । १ जैसे गोज्जिग, बद्दिग, नुडिग, पुट्टिग, वोटिग श्रादि। ५ "पाराच्यमिहल-चाल-चेरभप्रभृतीन्महीपतीप्रमाध्य...."। २ अरब लेग्वकोने मानकिरके बल्हरा नामक बलाढ्य गजाओं ६ जर्नल बाम्बे ब्राच गए.सो. जिल्द १८ पृ. २३६ का जो उल्लेख किया है, वह मान्यग्वेटके वल्लभराज पद और लिए श्राफ इन्स्क्रप्शन्स सी०पी० एण्ड बरार पृ०८१। . धारण करने वाले गजानोको ही लक्ष्य करके है। त्रावणकोर पार्कि० मीरीज जि० ३ पृ०१४३ श्लोक ४८ ।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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