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अनेकान्त
[वर्ष ४
ग्य उत्तराधिकारी थे और कविका अपने पिताके ही मेरी खातिर की, वह चिगयु हो । निश्चय ही ममान प्रादर करते थे, तथा अपने ही महलमें मान्यखेटकी लूट और बग्वादीके बादकी दुर्दशाका रखते थे।
यह चित्र है और नब खोट्टिगदेवकी मृत्यु होचुकी थी। नागकुमारचरितकी प्रशस्तिके अनुसार वे प्रकृति ६-कविके कुछ परिचित जन में सौम्य थे, उनकी कोर्ति मारे लोकम फैली हुई थी,
पुष्पदन्तने अपने प्रन्थोंमें भग्त और नन्नक उन्होंने जिनमन्दिर बनवाये थे, वे जिनचरणोंके सिवाय कुछ और लोगोंका भी उल्लेख किया है। भ्रमर थे और जिनपूजामें निरत रहते थे, जिनशासन मेलपाटीमें पहुँचने पर सबसे पहले उन्हें दो पुरुष के उद्धारक थे, मुनियोंको दान देते थे, पापरहित थे, मिल जिनके नाम अम्मइय और इन्द्रगय थे । ये बाहरी और भीतरी शत्रुओं को जीतनेवाले थे, वहाँ के नागरिक थे और इन्हींने भग्तमंत्रीकी प्रशंसा दयावान , द नोंक शरण, गजलक्ष्मीके क्रीड़ासरोवर, करके उन्हें नगरमें चलने का आग्रह किया था। उत्तर मरस्वतीक निवास, तमाम विद्वानोंके साथ विद्या- पुराणके अनमें मबकी शांति-कामना करते हुए विनोदमें निरत और शुद्धहृदय थे।
उन्होंने संत, देवल, भोगल्ल, मोहण, गुणवर्म, दंगइय एक प्रशस्तिपद्यमे पुष्पदन्तने नन्नको अपने पुत्रों और संतइयका उल्लेख किया है। इनमेंस संतको बहुमहित प्रसन्न रहनेका आशीर्वाद दिया है। इससे गुणी, दयावान और भाग्यवान बतलाया है । देवल्ल मालूम हाता है कि सनक अनेक पुत्र थे। उनके नामों संतका पुत्र था जिमनं महापुराणका गरी पृथिवीमें का कहीं उल्लेख नहीं है।
प्रसार किया। भोगलको चतुर्विधदानदाता, भरतका कृष्णगज (तृतीय) के तो वे गृहमंत्री थे ही, परममित्र, अनुग्मचरित्र और विस्तृतयशवाला परन्तु उनकी मृत्युकं बाद ग्वाट्टिगदेवक और शायद बतलाया है । शांभन और गुणवर्मको निरन्तर जिन उनके उत्तराधिकारी कर्क (द्वितीय) के भी वे मंत्री धर्मका पालनेवाला कहा है । नागकुमारचरितके रहे होगे । क्योंकि यशाधरचरितकं अन्तमें कविने अनुसार य महादधिके शिष्य थे। इन्होंने नागकुमार लिखा है कि जिस नन्नने बड़े भारी दुष्कालके समय
चरितकी रचना करने की प्रेरणा की थी । दंगइया जब सारा जनपद नीग्स होगया था, दुम्मह दुःख
और संतइया की भी शान्तिकामना की है । नागव्याप्त हो रहा था, जगह-जगह मनुष्योंकी वोपड़ियाँ कुमारमें दंगइयाका आशीर्वाद दिया है कि उसका और कंकाल फैल रहे थे, रंक ही रंक दिखलाई पड़ते रत्नत्रय विशुद्ध हा । नाडल्लइ और सीलइयका भी थे, मुझे सरस भोजन, सुन्दर वस्त्र और ताम्बलादिस उल्लेख है । इन्होंने भी नागकुमारचरित रचनेका
आग्रह किया था। १ सुहतुंगभवणवावारभारणिबहणवीरधवलस्स ।
७-कविके समकालीन राजा कोंदिल्लगोत्तणहससहरस्स पयईए सोमस्स ॥ जसपसरभारियभुवणोयरस्स जिणचरणकमलभसलस्स ।
__ महापुराणकी उत्थानिकामें कहा है कि इस समय प्रणवरयरइयवरजिणहरस्स जिणभवनपूगणिरयस्स ॥
'तुडिगु महानुभाव' राज्य कर रहे हैं। 'तुडिगु' शब्द जिणसासणायमुद्धारणस्स मुणिदिएणदाणस्स ।
पर टिप्पण-प्रन्थमें 'कृष्णराजः' टिप्पण दिया हुआ है। कलिमलकलंकपरिवजियस्स जियदुविहवहरिणियरस्स ॥
कृष्णराज दक्षिणके सुप्रसिद्ध गष्ट्रकूटवंशमें हुए हैं काहरणकंदणयजलहरस्स, दीणजणसरणस्स || ४ ३ जणवयनीरसि, दुरियमलीमसि. कइणिदायार, दुसहे दुइयरि, णिवलच्छीकीलासरवरस्स. वाएसरिणिवासस्स ।
पडियकवालइ, परकंकालइ, अइदुक्कालइ । हिस्सेणविउसविज्जाविणोयणिरयस्स सुद्धहिययस्स ।।५। पवरागारि सरसाहारि सण्हिंचेलि, वरतंबोलि, । २स भीमानिह भूतले सह सुतैर्ननाभिधो नन्दतात् । महु उपयारिउ पुगिणपेरिउ, गुणभत्तिल्लउ, गएणुमहलाउ ।