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________________ किरण १] तत्वार्थसूत्रके बीजोंकी खोज परिवडिदा पग्विडिदे संजममम्मत्तणाणमादीहिं ।।४॥ अपना मत स्थिर तथा व्यक्त करें। और जिन विद्वानों साहरग्गा साहरणे मम्मुग्घादेदरे य णिव्वादे। की दृष्टि में प्रार्च न दिगम्बर सा हत्यको देखते हुए विदेपलियंकाणसगणे विगय मले परमणाणगे वंदे ।।५।। दृसरं बीजसूत्र भी आप हों वे उन्हें शीघ्र ही यहाँ बदं वेदंता जे पुरिसा ग्ववगसंढिमारूढा । भंजने अथवा प्रकट करने की कृपा करें । 'महाबन्ध' सेसादयण वितहा ज्झाणुवजुत्ता य ते दु मिति॥६॥ परसे बीजसूत्रों का संग्रह बहुत ही आवश्यक है, अतः पत्यसयं बुद्धा बाहियबुद्धा य होति ते मिद्धा । उसकी प्रति कगकर वीरसंवामंदिरको भिजवानका पत्तयं पत्तयं ममय समयं परिणवदामि ।।७।। श्रेय या तो किसी महानुभावको लेना चाहिये और -मिद्धभक्ति २,३,४,५,६,७ या मुडविद्रीमें ही किसी योग्य विद्वानके द्वाग उमपर में बीजसूत्रोका संग्रह कराकर तुलनाके साथ प्रकट अाभार और निवेदन करना चाहिये । साथ ही, लोकविभागादि-विषयक इम लग्बकं नय्यार करनम मुझे मुख्तार माहब दम एम प्राचीन ग्रंथोंकी भी वांज होनी चाहिये (अधिष्टाना वीर सेवामंदिर) में जा महाय एवं महयोग जिनका निर्माण तत्त्वार्थसूत्रमे पहले हुआ हो। त्रिलोकप्राप्त हुआ है और ग्वाजकं समय उनकी 'धलादिश्रत- प्रज्ञप्तिमें 'लोकविनिश्चय' जैग कई प्राचीन ग्रंथोंका परिचय' नामक हजार पंजवाली नाट्मबुकमे जा उल्लंग्व मिलना है, उन्हें खोजकर जरूर देखना चाहिये। सहायता मिली है उम मबके लिये मैं आपका अनीव ऐमा हानपर तत्त्वार्थमूत्रके बीजोंकी ग्याज मुकम्मल आभारी एवं कृतज्ञ हूँ। हो मकेगी। ___ अन्तम विद्वानाम मेग यह मानुगंध निवेदन है । कि वे इम लखपर गम्भीरताक माथ विचारकर वीरमवामंदिर, मग्मावा, ता०२०-१-१९४१ साहित्यपरिचय और समालोचन १ कविकुल किरीट मरिशेग्वर-लेम्वक, अवस्थाओंके दिये हैं। पुस्तकमे मब मिलाकर चित्र क्रमाठी। प्रकाशक, चन्दलाल जमनादास शाह, छागी दो दर्जनके करीब है, जिनमें गुरु श्रीकमलविजय, और (बडादा)। पृष्ठ संख्या, ४५०। मूल्य, मजिल्दका श्रीमद्विजयानन्दसूर श्रादके चित्र भी शामिल हैं। आटाना। पुम्नककी भाषा अच्छी प्रौढ और लंग्वनशैली सुन्दर ____ यह लब्धिसूरीश्वर ग्रन्थमालाका ५ वा प्रन्थ है। छपाई-मफाई और गेट-अप मब आकर्षक हैं। है, जा गुजराती भाषाम विजयलब्धिमूरिक जीवन- इतनी बड़ी तथा चित्रों वाली पुस्तकका मूल्य पाठ चरित्रको लिये हुए है । जीवनचरित्र बहुत कुछ खोजक आना बहुत कम है और वह गुरुभक्तिका लिये हुए माथ लिग्या गया जान पड़ना है और उसमें सूरि- प्रचारकी टिम जान पड़ता है । परन्तु पुस्तकमें जीका जीवनवृन उनके कार्यों नथा विहागेंके परिचय- विपयसूचीका न होना बहुत ग्बटकना है । पुस्तक महिन वर्गिन है । चित्र भी दीक्षाकालम लेकर अनक पढन नथा संग्रह करने के योग्य है।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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