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________________ ३८८ अनेकान्त [वर्ष । देवोंसे पूजा प्राप्त की, किसीने ब्रह्मचारिणी होकर जगतको हुई है और शरीर रोगोंका स्थान बना हुआ है। यदि सदुपदेश दिया, किसीने अपने शीतकी महिमासे बी-जाति किसी शास्त्रमें, पुराणमें या ग्रन्थमें यह लिखा हुआ मिल भी का मुख उज्ज्वल किया और लोग उसके दर्शनोंस अपने जाय कि अमुक स्त्रीने पर्दा किया या वह पर्दा करती थी तो नेत्रोंको सफल समझने लगे। उसका कोई महत्व नहीं है। बस्कि मैं तो यहां तक कहूंगी यी दशरथके साथ युद्धक्षेत्रमें जाती थी, यह बात कि यदि वेद, पुराण और स्मृतियों अथवा शास्त्रोंसे ही पर्दाआज बीजातिके साहसका बखान करते हुए बड़े उत्साह और प्रथाकी प्राचीनता सिद्ध होजाय और देरकं देर खियोंके गर्वके साथ कही जाती है। सीताने रामके साथ चौदह वर्ष तक उदाहरण उनमें मिलने लगें जो पर्दा करती थीं और यह बनमें रहकर उनके कष्टोंमें साथ दिया । यादवोंके द्वारा अर्जुन बात भी प्रमाणित होजाय कि पर्दा-प्रथा अनादिकालसे चली घिर जाने पर सुभद्रा आर्जनकी सारथी बनी थी। वनवास पा रही है तो भी हमें इसके उखाड़नेके लिए कटिबद्ध हो के समय द्रोपदी अर्जुनके साथ रही। जाना चाहिए । यह हमारी कितनी मूर्खता है कि हम किसी देवी भारती मंडनमिश्र और शंकराचार्यके शाखार्थमें भी पद्धतिको उसके गुण-अवगुण विचारे विना केवल इसी मध्यस्थ बनी और मंडनमिश्रक हार जाने पर उसने स्वयं बात पर मानने लगे हैं कि वह हमारे पूर्वजोंकी चलाई हई शाखार्थ किया । अशोकके ज़माने में राजकुमारियों व अन्य अथवा परानी है। कोई चीज़ पुरानी होनेपर भी अहितकर लियोंने दूर दूर देशों में जाकर बौद्धधर्मका प्रचार किया। हो सकती है और नई होने पर भी लाभप्रद सिद्ध हो सकती हर्षकी विधवा बहिन राज्यश्री ह्वेनसांगका व्याख्यान प्राचीन कालसे तो बहुतसी पद्धतियां चली आ रही हैं। सनने राजसभामें बैठती और वार्तालाप करती थी। मुहम्मद बोलना. चोरी करना भी अनादि कालसे चला पा रहा बिन कासिमने जब सिन्ध पर हमला किया तब राजा दाहिर है। पाप उतना ही पराना है जितना पुण्य | धर्म और अधर्म की रानीने स्वयं शत्र धारण कर शत्रुओंका सामना किया। भी साथ साथ चले पा रहे हैं। कर्म और प्रारमाका सम्बन्ध महारानी दुर्गावतीने युद्ध में अपना कौशल दिखाया। महारानी अनादि है । लेकिन कोई यह नहीं कह सकता कि भाई लक्ष्मीबाईने रणचण्डीकी भांति अंगरेज़ोंका मुकाबिला किया। झूठ बोलना तो तुम्हारे पुरुखोंसे चला पा रहा है अतः तुम अहिल्याबाईने खुले मुहराजसिंहासन पर बैठकर शासन भी झूठ बोला करो। पाप करने के लिए कोई उपदेश नहीं किया। देता है और न इसका कोई समर्थन ही करता है। कर्म और इस अवस्थामें यह मानना कि पर्दा सनातन प्रथा है एक बहुत ही उपहास-जनक बात है। बल्कि हमें इस बात पर मात्माका सम्बन्ध कितना गहरा और अनादि पर फिर भी अफसोस और दुःख प्रकट करना चाहिए कि जिस भारतमें प्रात्मा कर्मोंसे छुटकारा पाने के लिए सतत लालायित रहता ऐसी ऐसी भादर्श त्रियां हो चुकी हैं, भाज उसी भारतमें है। कोई पद्धति या रस्म चाहे कितनी ही पुरानी क्यों न हो उनकी ही पुत्रियोंको पकी चहारदीवारी में बन्द रहना पड़ता अगर उसे बुद्धि और युकिकबूल नहीं करती है तो उसे फौरन ही है और वे अपना जीवन भेगों की भांति कायरतासे बिता रही छोड़ देना चाहिए । प्राज पर्दे के सम्बन्धमें भी यही बात है। हैं। मुख कान्तिहीन है, साहस नाममात्रको भी नहीं है। इसलिए प्राचीन भारतमें पर्दा था यह मानकर पर्देको बिजी और चूहेकी खटपटसे हृदय धपकने लगता है। किसी जारी रखना और उसका समर्थन करना बहुत बड़ा प्रज्ञान भीमातको मेलनेकी सामर्थ्य नहीं हैमपर जींबाई और हठहै।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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