________________
किरण ३-७]
कलाकार ब्रह्मगुलाल
हूँ। मुझे जो प्रानन्द तुम्हारे द्वारा मिल रहा है, उस सिद्ध-हस्त खिलाड़ी। यही वह कारण था जो उसका प्रकट नहीं कर मकता।'
अभिनय, स्वाभाविक-नैचुरल-हांकर, लोकप्रियता ब्रह्मगुलालन कृतज्ञतास सिर मुका लिया। को अनायास प्राप्त कर लेना था। युषगज बोलतं गए-'मेरी इच्छा है, कि तुम कल बढ़ी हुई हजामत, मैले-फटे कपड़े जैसे मनमे 'शेर'का रूप बनाकर लाओ ! बोलो, क्या ला मकांगे ?' दीनता भर देते हैं ! या-हेट, बूट, सूट, पहिनते ही
ब्रह्मगुलालने उमी क्षण उत्तर दिया-'मुशिल दिल बादशाह बन जाता है। उसी तरह जैसा बेष नहीं है, युवराज । आज्ञा-पालन कर सम्ना हूँ- धारण किया जाय वैसा ही मन भी हो उठता है। ब-शर्ने कि पम वषमे होने वाले कुसूर माफ कर पूर्ण नहीं, तो कुछ न कुछ किसी भी रष्टिकोणसंदिए जाएँ।'
गुण उसमे श्राप विना नहीं रहते, जाकि उस रूप ___ युवराजने चलती नजरम एक बार मंत्री-मण्डल लिए बहुत जरूरी हो। की ओर देखा, फिर महागजकी ओर । तब उत्तर नगरकं अनेक कण्ठोम निकली हुई, प्रशंमा दिया-'हाँ ' तुम्हारी यह शर्त मंज़र है।' सुनना हुअा ब्रह्मगुलाल दर्षार पहुंचा तो सभा चकित
रह गई ! महागज भी विस्मयकी दृष्टिस देख उठ !
युवगज भी समीप ही था और मंत्रि-गण भी !.. __ प्रहर-भग्स कुछ अधिक गत बीत चुकी थी ।- दो बार जाग्मे दहाड़ा ! जमुहाई ली ! दर्बार अब भी लगा हुआ था।, लोगोमें एक मनसनी कि उसने दम्बा-'युवराजके पदस प्रकट एक थी, कौतुहल था; जिज्ञामा थी और थी-उमंग। हिरण बँधा है-भालाभाला, भयाकुलता ! जैसे
लागोन दम्बा, आश्चर्यचकित नत्रास देखा- मृत्युको पास देखकर, जीवन के लिए मचल रहा हो ! जंगलका गजा अपनी मस्तानी चालसं. दहाड़ना निरीह प्राणी !' हुआ राज-दरिमे प्रवेश कर रहा है। वहीं क़द, वही आह ! चपी नाक, कर ऑग्वे, तीक्ष्ण नग्व और दुर्बल अब यह समझा-शेरका रूप रग्यानका रहस्य !
युवगजकी कूटनीति !! बच्चे चोस्त्र उठे, खियां डर गई, बूढ़े कॉप टं मांचन लगा-'अगर हिरणको छोड़ता हूं, उस और नौजवान दंग रह गए । यह खबर फैली न हाती पर दया करता है, तो शेरके रूपका-अपनी कलाका कि 'कल ब्रह्मगुलाल शेरका रूप धारण करेगा।'- कलंकित करता हूं। और अगर मारता हूँ-हत्या तो अनर्थ हो जाना अवश्यंभावी था। ग्वैर थी, कि भय करता है, तो अनर्थ ! पाप पोर-पाप !! संकल्पीअस्थायी रहा और तुरन्त मनोरजनमें तब्दील हा हिंसा !!! अपन जैनस्वको, अपनी मान्यताका और गया।
अपने प्रात्मधर्मको बर्बाद करता है ! दोनों मार्ग अभिनयम 'निजता' को खा देना ही कलाकार अधम है ! भोक ! धोखा दिया गया, बुरा किया !' की महत्ता है। और ब्रह्मगुलाल था इस कलाका प्रमगुलाल खड़ा सोच ही रहा था, कि मंत्रियो