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________________ अनेकान्त [वर्ष ४ तब वह अत्यन्त अनुगृहीत हुई और उसने मुनिराजसे वर्णित है। स्वभावतः इस विवादमें नीलकेशीकेद्वारा कुण्डलनम्रतापूर्वक पूछा कि "मैं किस प्रकार उच्च कोटिकी कृत- केशीके पराजयका वर्णन है कुण्डलकेशी अपनी पराजय स्वीज्ञता प्रकाशन कर सकूगी" 1 जब मुनिराजने उसे सर्वोच्च कार करती है और अहिंसाके सिद्धान्तोंको मंजूर करती है। ढंगसे कृतज्ञता प्रकाशनके लिये यह बताया कि तुम्हें इस प्रदेश नीलकेशी कुण्डलकेशीसे यह ज्ञात करती है कि उसके गुरु में हिंसाके तत्वका प्रचार करना होगा, तब उसने इसे पहचन्द्र नामके बौद्धविद्वान हैं। म्वीकार किया और मानव मुद्राको धारण कर अहिंसा तीसरे अध्यायमें पहचन्द्र के साथ विवादका वर्णन है, सिद्धान्तको प्रचारित करने में उसने अपना समय लगाया। जो विवादमें अपनी पराजय स्वीकार करता है। नीलकेशीके यही इस ग्रन्थके 'धर्मरचहक्कम्" नामके प्रथम अध्याय अहिंसा धर्मको स्वीकार करके अईचन्द्र ने उसका ध्यान का वर्णित विषय है। 'मोक्का ' की ओर आकर्षित कराया, जो कि गौतम शाक्यकुण्डखकेशी-वादचहक्कम् नामके दूसरे अध्यायमें बुद्ध मुनिके प्रधान शिष्यों में था और बौद्धसंघके आदि संस्थापकों धर्मकी प्रतिनिधि कुण्डलकेशीके साथ नीलकेशीकावादावाद मेंसे एक था। (क्रमश:) मीठे बोल मीठे मीठे बोल बोल रे ! मीठे मीठे बोल ! N इस जिह्वामे अमृत भरले विखरादे, जग बसमें करले मर कर भी जो तेरा जीवन बने अमर अनमोल बोल रे ! मीठे मीठे बोल ! [ २ ] धन-जन पर अभिमान न कर तू नश्वर हैं, कटु गान न कर तू परजायेगा प्राण पपीहा रह जायेगा बोल बोल रे ! मीठे मीठे बोल ! स्वरम सुन्दर शक्ति निगली जीवनमे भर देती लाली मिट जातं दुख, उठती हियमें प्रेम हिलोरें लोल बोल रे ! मीठे मीठे बोल ! [ ४ ] कडुवे बाल बड़े दुख-दाता जोड़ अरे । मूदुतास नाता विषकी छोड़ विषमता प्राणी! वाणीमें मधु घोल बोल रे ! मीठे मीठे बोल ! भी 'कुसुम' जैन
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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