________________
किरण ६-७]
नेमिनिर्वाण-काव्य-परिचय
"कर्मबन्धनसे छुटकारा पानेके उद्देश्यसे मैं कामव्यथा मल्लिर्जिनो वः श्रियमातनोतु । को जीतने वाले उन अरनाथ स्वामीको नमस्कार करता हूँ कुरोः सुतस्यापि न यस्य जातं, जो सुमित्राके ननय-लक्ष्मण-होकर भी रामचन्द्रजीमें दुशासनत्वं भुवनेश्वरस्य ॥ १९ ।। अनुरक्त नहीं हुए थे यह आश्चर्यकी बात है! [परिहार नप रूप कुठारके द्वारा कर्मरूप बेलको काटने वाले वे पक्षम--सुमित्रा माताके पुत्र होकर भी गमाश्रो-स्त्रियोंमे मल्लिनाथ भगवान् तुम सबकी लक्ष्मीको विस्तून करें जो अनुरक्त नहीं हुए थे।
कुरुगजके पुत्र होकर भी दुःशासन नही थे, (पक्षम) दुष्ट__लक्ष्मण रामचन्द्र जीम किनने अनुरक्त थे-उनके शासन वाले नहीं थे। कितने भक्त थे? यह रामायण या जैन पद्मपराण देखने मल्लिनाथ भगवान् कुरुराजके पुत्र तो थे परन्तु दुःशावाले अच्छी तरह जानते हैं परन्तु कविने यहा उन दोनोमें सन नहीं थे यह विरोध है जिसका बाद में परिहार हो जाता अनरक्तिका प्रभाव बतलाया है जिससे विरोधाभास अलं- है। मल्लिनाथ स्वामीके पिताका नाम भी कुरुराज था कार अत्यन्त स्पष्ट हो गया है सुमित्रा और राम-रामा शन्दो इसलिये वे कुरुगजके पुत्र तो कहलाये परन्तु दुःशासन नही के श्लेषसे विरोधालंकारकी शोभा अत्यन्त प्रस्फुटित हो थे--उनका शासन दुष्ट नहीं था- उनके शासन में सभी उठी है।
जीव सुख शान्तिसे रहते थे। यहाँ, तप और कुठार, तथा विर'धाभास अलंकारका दूमग नमूना भी देखिये- कर्म और वल्लिका रूपक एवं वल्लि और महिलाका अनुतपः कुठार-क्षत-कमल
प्रास भी दर्शनीय है।
(क्रमशः)
आचार्य चन्द्रशेखर शास्त्रीका सन्देश [ वीरसेषामन्दिर में धीरशासन-जयन्तीके अवसर पर प्राप्त और पठित ]
"भगवान महावीग्ने लगभग पच्चीस मौ वर्ष पूर्व जिस अहने नही बचे हैं। महात्मागांधीने युद्ध भार-भमें ही परिस्थिति में अपना उपदेश दिया था श्राज संसारको परि. हिटलर और मिस्टर चर्चिल दोन से अनुरोध किया था कि स्थिति बहुत कुछ वैसी ही हो रही है। उम ममय अनार्य वे अपनी अपनी ममस्याश्रीको अहिसा द्वारा सुलझाले, किंतु देशोंमें सभ्यताका प्रादुर्भाव नहीं हया था एवं आर्यदेश रक्त के प्यासीके कानों पर उम समय ज तक न रेंगी। मेरा भारतवर्ष में हिंसाका पूर्ण साम्राज्य था। उम ममय भारतवर्ष विश्वास है कि संसारमें स्थायी शान्ति केवल अहिंसात्मक में वेदाके नाम पर अनेक हिसामयी यशयाग किये जाते आन्दोलन द्वारा ही की जा मकती है। महात्मागाधीके अनु. जिममे क्षत्रियोकी स्वभाविक कठोरता क्रमशः उनके द्धयो रोधके ठकराए जानेसे यह स्पष्ट है कि उनकी बातके ठीक मे दूर होकर ब्राह्मणोके हृदयोंमें प्रविष्ट कर गई थी और होने पर भी उनमें तपकी कमी है, यदि महात्मागाधीमें ब्राह्मणाके हृदय की स्वाभाविक कोमलना-त्रियोंके हृदयोंमें तपकी कमी न होती तो मिस्टर चचिल या हिटलर दोनमिसे घर बना चुकी थी, इमी लिये क्षत्रियोंके अन्दरसे ब्राह्मणाके किमीको भी उनका अनुरोध टालनेका साहस न होता । हिसामयी यज्ञ-याग एवं उनकी समाज व्यवस्थाके विरुद्ध अाज भगवान महावीर की शामन-जयन्तीके अवसर पर इतना भयंकर आन्दोलन किया गया कि अन्नमें भगवान हमको इस बातकी आवश्यकता है कि हम उन भगवानके महावीर स्वामीने उन हिमामयी यज्ञ-यागोको पूर्णतया बंद अहिंसाधर्मकी पूर्ण प्रतिष्ठा अग्नी प्रात्मामें करें। यदि हम कराकर उस सामाजिक व्यवस्थाको भी उलट दिया। यह कर सके तो निश्चयसे हम वह काम कर सकेंगे जो
महात्मा गाधीक किये भी न हो सका, और उस ममय तमाम श्राज योरुरका महासंग्राम तमाम विश्वमें फैल चुका संसारमें भगवान महावीर स्वामी जयके साथ साथ 'सत्यं है।भारतवर्ष के दोनों कोने अदन और मिगापुर भी उमसे शिवं सुन्दरम्' का दृश्य उपस्थित होगा।"