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* ॐ अहम् *
स्ततत्त्व-सघातक
शिवतत्व-प्रकाशक
PRODamous
नीतिविरोधध्वंसीलोकव्यवहारवर्तकःसम्पन् । परमागमस्यबीज भुवनेकगुरुर्जयत्यनेकान्तः।
वर्ष ४ । वाग्मेवामन्दिर (मगन्तभद्राश्रम ) मरमावा जिला महारनपुर जगाई-अगम्न किरण ६श्रावण, भाद्रपद, वार निर्माण मं० २४६७. विक्रम सं. ८
१५४१ समन्तभद्रकी अहशक्तिका रूप
( उन्हीं के शब्दोंमे ) मुश्रद्धा मम ते मतं म्मृतिरपि स्वय्यर्चनं चापि ते । हस्तावंजलये कथाश्रुतिग्नः कर्णोऽक्षि संप्रेक्षते ॥ सुन्तुस्यां व्यमनं शिगेनतिपरं मवंशी येन ने ।
तेजस्वी सुजनोऽहमेव सुकृती तनैव तंजःपतं ॥ -जिनशनक 'हे भगवन ! श्राप मनमें अथवा श्रापक ही विषयम मंग सुश्रद्धा है-अन्धश्रद्धा नहीं-मंग स्मृति भी आपको ही अपना विषय बनाए हाहै-हृदय में मदेव श्रापका ही म्मग्गा बना रहता है-, में पृजन-अनुकुल वनादिरूपम पागधन-भी आपका ही करता हूं, मेरे हाथ श्रापका ही प्रणामाजील करने के निमिना है, मरं कान श्रापकी ही गुगा कथाका मुननम लीन रहत है-विकथाओंके सुननमें कभी प्रवृत्त नहीं हाने-, मंग आँख श्रापके ही सपना देखना है-मदेव श्रापकी वीनगग विज्ञानमय द्रवि ही मग आंग्यांक सामने घुमा करनी है और में उमाका ध्यान किया करता हूँ-, भझ जा व्यमन है वह भी आपकी सुन्दर स्तुनियाँक-दवागम, युक्त्यनुशासन, स्वयंभम्नात्र, स्तुनिविद्या जैम म्नवनांकरचनेका, और मग मम्नक भी आपको ही प्रणाम करम नत्पर रहना है,-कुदवाक प्रांग वह कभी नहीं झुकना-इस प्रकारकी चंकि मग मवा ( भक्ति) है-मैं निम्न्नर ही आपका इम नगह पर मेवन (भजनाऽऽगधन) किया करता ई-इमी लिये है नंजापन ! (कंवलज्ञानम्बागिन । ) में नजम्बी है, मजन है, और सुकृती (पुण्यवान) हूं।'