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किरण ५ ]
जेवकट
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आखिरी चिट्ठी मैय्याके हाथ भेजती है । मुझे उम्मीद हत्यारा'.... पापो ! है, तुम यह भी जानते होगे, कि यह आखिरी चिट्ठी जेबकट लिफाफा जेबमें डालता हुआ-मागा! क्यों है ?-मेरे बाप-माँ तो हैं ही कहाँ ?-कुछ पैसे जैसे अन्नाको जीवन लौटाने जा रहा हो! के लोभके सबब मेरी शादी एक पचपनवर्षके बुझेके x x x x साथ करना चाहते हैं। और मैं अब शादी में मौतको हेमने चिट्ठी पड़ी तो रो नठा। बोला-'तुम ज्यादा पसन्द करती हूँ। तुम मुझसे रूठ चुकं हो, अमाके भाई हो ? नहीं, हत्यारे हो! इतनी देरसे मेरी किस्मत भी रूठ रही है। अब एक ही उपाय चिट्ठी क्यों लाये ? क्या 'बहुत जरूरी' चिट्ठियाँ इतनी रहा है-वही करना मैंने तो ते किया है। और जब लट दी जाती हैं किसोका ?' तक यह चिट्ठी तुम्हारे हाथोंमें पहुंचेगी, शायद तब जबकट चप। तक मैं कहांस कहां पहुंच जाऊँ ? कोई नहीं जानता। हेमने प्रावाज दी-बंशी ! 'कार' लामो, सुना हाँ, तुमसे एक प्रार्थना है, मान सको तो मेरी आत्मा जरा जल्दी !' फिर बोला-हाँ, तुम प्रमाके भाई हो, को सुख मिलेगा कि 'तुम अपनी शादी जरूर कर इसलिए कुछ नहीं कहता-परन् वरनः मारे-मार लेना ! ताकि तुम्हाग हृदय स्त्री-हृदयकी गहराई तक टोकरोंके दम निकाल देना-समझे ? मुरत पी; एक पहुँच सके-तुम जान सको स्त्रीका मन कितना नरम चिट्ठी मिली वह भी यह ! और इतनं देरसे । उसने होता है ! वह जिस पनि मान लेती है, फिर दूसरेकी और भी चिट्ठी डाली होंगी, पर मैं यहाँ था कहाँ ?
और आँख उठाकर देखना भी पाप समझती है। मैं था-शिमले ! घर वाले ऐसी चिट्टियों काहेको शादी तो दुरी बात है। तुम चाहे न मानो पर मैं भेजने लगे थे मेरे पास ! तभी तो हो रही है न, यह तुम्हारी हूँ और तुम्हारे नामको लेते लेते, दूसरे पाप आत्म-हत्या!' में बचने के लिये, जा रही हूँ।
___ 'कार' में बैठे ! हेमने कहा-'क्या नाम तुम्हाग
तुम्हारी-'आमा' अन्ना भाई ! तुम भी चलो, साथ-साथ ! और जेब कट का मन जाने कैसा हो उठा, वह पागलकी काम फिर होते रहेगे !' तरह उस लम्बे कागजको उलट-पलट कर देखन जेवकट बैठ गया-सुम्त, चुप ! कार बदी ! हेम लगा-आँखें उसकी भगं हुई थीं । आँसू बहजानका चिल्लाया-'ठहरो डाक्टरको साथ ले लेने दो! गांव गम्ता देख रहे थे ! वह बोला-'चिच । हत्या कर का मामला, वहाँ हकीम भी नहीं मिलेगा क्यासा रही है बेचारी! और उस पत्थरको पता भी नहीं है, कौन जाने ?' मिल सकेगा ! अाज सुबह की लिखी चिट्ठी है-आज फिर जेबकटसे पूछा-'क्यों जी, जब परसे चले को तारीख को ! अब साँझ होन भाई, मर न चुकी थे, नब तो ठीक थी न ?' हो बेचारी आमा । काश! यह चिट्ठी वक्त पर उसे उसने धीरंस कह दिया-'हो।' मिल जाती, जलर बचाने जाना !
हेम बाला-चिट्ठी देग्मं क्यों दी, क्या करते पर, मैं पैसके लोभमें उमकी जान चुग लाया! हे ?