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________________ विषय-सूची १ जिनेन्द्रमुग्न और हृदयशुद्धि-मम्पादक पृष्ठ ३०५ १२ मंगीत-विचार मंग्रह- [पं. दीलनगम 'मित्र' ३३० २ श्रीजिनेन्द्राध्पदी (कविता)-[पं०धरणीधर शास्त्री ३०२ १३ माहित्या रिचय और ममालोचन--२०परमानंद ३३४ ३ कविगजमलका पिगल और गजाभारमल्ल-[म० ३.३ १४ दिगम्बर जैनग्रन्थ-मची-[श्री अगरचन्द नाहटा ३३६ ४ चंचलमन (कविता)-[पं० काशीराम शर्मा ३०६ १५ अपना घर (कविता)- [श्री भगवत' जैन ३३८ ५ त्रिलोकप्रजनिमें उपलब्ध ऋषभदेव-चरित्र १६ तामिल भाषाका जनमाहित्य-प्रो०००चकवा ३३६ _ -[पं० परमानन्द जैन शास्त्री ३०७ १७ अात्मगीन (कविता)-[श्री भगवत' जन ३५ ६ जीवन-नैय्या (कविता)-- [श्री 'कुमम जन ३१२ , जैनदर्शनका नयवाद-पं०दग्बारीलाल जैन कोटिया ३१३ १८ नबकट (कहानी)--[श्री 'भगवन' जैन ३१२ ८ मिकन्दर अाजमका अन्त ममय (कविता) ३१६ १६ वीरशामन-जयन्ती-उत्मव-[अ० वाग्मवामोदर ३४४ ६ समन्तभद्र-विचारमाला (३) पण्य-पाप-व्य-मं० ३१७ २० नयामन्दिर देहलीक कछ हस्तलिम्वित ग्रन्यांकी १. युवगज (कहानी)-[श्री भगवत' जैन ३२१ मनी-मिम्पादक ३४५ १५ रत्नत्रय धर्म--[40 पन्नालाल जैन माहित्याचार्य ३२६ २५ 'अनेकान्न' पर लोकमा ३५६ मेठ बैजनाथ जी मरावगी, कलकत्ता बार जैनममाजके एक पगने मेवक एवं कार्यकर्ता हैं। मगक जानके उद्धारक लियं अापने शुरु शुरुम कितना ही कार्य किया है । अब भी ममाज-सेवा के अनेक कार्यो में अपना महयोग देते रहते हैं। अनेकान्न' मे श्राप वडा प्रम रखते है। हालम अापने उमकी महायताके लिये १०० म० का वचन दिया है, और टम नरह आप भी 'अनमान्न' के महायक बने हैं।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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