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अनेकान्त
यह समीकरण पहिले ही फेल हो चुका है, न पौदनपुर के 'गोम्मट' के लिये दोडप्यका हवाला हमारी रक्षा के लिये आ सकता है । 'गोम्मट' इन्द्रियग्राह्य अर्थ रखता है यह बात ऊपर के समीकरण से निकाली गई है, जो कि पहले ही खंडित कर दिया गया है, और ऐसा होनेसे बहसका मारा बल चला जाता है । यह एक निरर्थक बहस है कि चामुण्डराय वृद्ध थे और इसलिये 'गोम्मट' नहीं कहलाये जा सकते थे, जोकि कुछ ऐसे प्रमाणोंकी पूर्वकल्पना करती है, जो कि या तो ऊपर खंडित कर दिये गये हैं या सर्वथा अप्राप्य हैं।
८ चूंकि मन्मथ = गोम्मट, यह समीकरण स्थापित नहीं हो सका, इसलिये यह अभी तक प्रसिद्ध रह जाता है कि बाहुबलिका एक नाम 'गोम्मट' था । परन्तु दुसरी तरफ, 'गोम्मटसार' में चामुण्डरायका एक नाम 'गोम्मट' निश्चित रूपसे मिलता है और उनका देवता, बाहुबलिकी मूर्ति 'गोम्मटेश्वर' आदि कहलाया जा सकता था । 'गोम्मटसार' में उल्लेखित 'गोम्मट - जिन' का 'बाहुबलि से कोई वास्ता नहीं
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| मैं इस सम्भावनाका मानता हूं कि जब मूर्ति एक बार 'गोम्मटदेव' के नामसे प्रसिद्ध हो गई तो तब बादके दिनोंमें इस नामके साथ बहुत सी चीजोंका
सम्बन्ध जुड़ सकता था ।
९ मिस्टर पैन स्वयं अपने लेखकी आदिमें इस प्रश्नका उत्तर दिया है, और मैं उनकी गरमागरम बहसको रद्द करने के लिये केवल उनके शब्द उद्धृत किये देता हूं:- "यहाँ पर यह भी नोट कर लिया जाय कि तीन महान मूर्तियोंमेंसे सबमे पहली अर्थात्
[ वर्ष ४
चामुण्डराय (या चावुंडराय ) द्वारा श्रवणबेलगोल में स्थापित मूर्तिका 'गोम्मट' आदि ( या गोम्मटेश्वर आदि) आम नाम सबसे पहले पड़ा, और जब समय बीतने पर ऐसी महान मूर्तियाँ कार्कल और बेणूर में स्थापित हुई तो उनका नाम भी 'श्रवण-बेल्गोल' कं समान अपने महान मूल आदर्श के ऊपर पड़ा ।” यह पूछकर कि पिछली दोनों मूर्तियों का नामकरण अपने संस्थापकों के नामानुसार क्यों नहीं हुआ, वे केवल अपने पूर्व कथनका, जो कि अधिक युक्तियुक्त है, बिरोध करते हैं ।
३४ देखो मेरा लेख, 'Material on the Interpretation of the word gommata' I. H. Q. Vol. XVI. No 2.
इन मुख्य दलीलोंके अतिरिक्त बहुत सी दूसरी छोटी बातें हैं जिनका प्रस्तुत विषयकं साथ कार्ड सीधा सम्बन्ध नहीं है; इसलिये उनके लिये किसी परिश्रम-साध्य खण्डनकी श्रावयश्कता नहीं। उनकी गोम्मट-विषयक स्वरविद्याकी कल्पनायें, उनका नोट कि 'कोंकणी' मागधी या अर्धमागधी आदि निकाली गई थी, अधिक गम्भीरता के साथ विचार करके योग्य नहीं ।
पं० ए० शान्तिराज शास्त्री" ने हाल में इस विषयको एक छोटे नोट में संस्पर्श किया है, और बहुतसी बातें में हम सहमत हैं। वे भो कहते हैं कि नेमिचन्द्र बाहुबलिका 'गोमट' नाम रखा है, परन्तु उन्होंने अपने इम नोटको साबित करने के लिये कोई स्वास वाक्य उद्धृत नहीं किया है। 'गुम्मड' शब्द में 'ड' के 'ट' में बदल जानेकी व्याख्या के लिये वे त्रिविक्रम के व्याकरण से सूत्र नं० ३ । २ । ६५ उधृत
करते हैं; परन्तु मुझे यह बतला देना चाहिये कि यह खाम सूत्र 'चूलिका - पैशाची' भाषा के लिये इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इम तब्दीली की निर्दिष्ट है और यह किसी जगह तथा हर जगह
३५ जैन सिद्धान्त भास्कर भाग ७ किरण १ पृष्ठ ५१, और
उनकी कन्न पुस्तिका, 'श्रीगोमटेश्वरचरित' मैसूर १६४० ।