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________________ किरण ४] लहरोंमें लहराता जीवन दूसरेके अक्ष पर बसर करने वाला और दूसरेके मकानमें रहने ही हाथोंसे करनी हो, खुद खाना बनाती हों, हाथमे घाटा वाला इनका जीना मरनेके समान है और मरना मदाके लिये पीसती हों, अनाज बीननी हो. बर्मन मांजनी हो. कपडे-ल विश्राम करना है। सीती हों ओर नौकरों में कतई कुछ भी खर्च न कगती हो इसी तरह एक कवि और भी लिखते है नब तो यह जरूर कहा जा सकता है कि उनके लिय पुरुषों ई| वृणी विसंतुष्टः क्रोधनो निस्यशक्तिः । की सम्पत्तिका उपयोग करना शोभाकी बात है। इतना ही परभाग्योपजीवी च षडते दुःस्वभागिनः ।। नहीं बल्कि महिला कुछ म घरेलु उद्योग-धन्धों, जैसे अर्थात् - ईर्ष्या रखनेवाला, घृणा करनेवाला, असंतुष्ट चर्खा कानना, सिलाई करना. कमीदा निकालना, बेल बूटके रहनेवाला, क्रोधी, सदा शंका करनेवाला और नमक काम आदिको भी अपना और उनमें द्रव्योपार्जन करें ताकि भाग्य पर जीनेवाला ये छह दुवके भागी हैं। पुरुषोंका बोझ बहुत कुछ हलका हो मक। और जो सिया बहधा लोग मममतं हैं कि यदि एक पुरुष किमीक पढ़ी लिखी हों व अन्य तरीको जैसे अध्यापन, डाक्टरी, नमिंग माग पैदा किए धन पर बमर करता है तो उसके लिए यह दूषण आदिम कमावें. ताकि उनका भार पुरुषों के ऊपर न रह । है, किन्तु नियां यदि अपने घरके श्रादमियों द्वारा कमाय यदि ऐसा होने लगे तो पुरुषोंको विवाह करने पर कोई हुए धन पर बसर करें तो उनके लिए मो यह शोभा ही कठिनाई मालूम न हो योर व मग्वपूर्वक दाम्पत्य जीवनको है। ठीक है। किन्तु यह बात तब उपयुक्त हो सकती है पहन कर मकं । जब महिलायें घरका हरएक काम अपने ही हार्थोसे करती इसी तरह वैवाहिक कठिनाइयों के प्रश्नको हल करने के हों और पुरुषों के द्वारा कमाये हुये धनको व्यर्थ मौकरों और लि लिए हम दहेज प्रादि कुप्रथाओंको दूर करें और विवाह में नौकरानियोंकी तम्ग्वाहमें न खर्च करानी हो। किन्तु आज व्यर्थ खर्च न करें। जिनना कम खर्च किया जा मकं करें हमारे घरों में तो यह चल रहा है कि पुरुष कमातं कमातं और पाडम्बर या शानशौकत में पहकर धन-सम्पनिको , पांशान हो जायं और बहनें उसको खर्च करते करतं नहीं बरबाद न करें अथवा कर्ज लेकर अपना और भावी सन्तनि धक 1 तथा घरका हक काम नौकरों और नौकरानियो । का जीवन नष्ट न करें। इस तरह विवाह का प्रश्न गरीब, कराया जाय और वे मदा निकम्मी और अकर्मण्य बनी रहें। , बनारअमीर, छोट, बडे, गजा, कादि सबके लिए बहुत सरल ऐसी हालतमें हम यह कैसे माना कि बैठे-बैठे खाना और में हो जायगा और हमें बहुत कुछ हमकी कठिनाइयोंमे प्रामामी परुषोंकी कमाई धन-सम्पत्तिस ऐशो-माराम करना स्त्रियोंके के माथ छुट्टी मिल जायगी। लिये शोभाकी बात है। अगर बहने घरका सब काम अपने -x- . लहरोंमें लहराता जीवन ___ • लहंगमें लहगता जीवन ! पलमें उभार पल में उतार, थिर नेक न रहता मेरा मन ! लहगेमें लहगता जीवन ! इस अगम धारका पार नहीं, बढ़ रहा ज्वार पनवार नहीं ! ज्या ज्या हलका करता जाना, होना जाना है भारीपन ! __लहरीमें लहराता जीवन ! नन रहे निराशायोंके धन, श्राशा चल-चपलाका नर्तन ! नमकं झुरमुटमें इङ्गितकर, भर देना उग्में उत्पीडन ! लहरोंमें लगता जीवन ! परिवर्तनशील जमाना है. क्या जाने क्या होजाना है! बढ़ते यौवनके माथ माय, घटता जाता है धीरज धन ! श्री 'कुसम' जैन लहरों में लहगता जीवन !
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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