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________________ २५६ भनेकान्त [वर्ष ४ होने पर सारी जिन्दगी पछताना पड़ता है। जीवनमें कराकं ६ लाखका दान कर दिया। अनेक उतार चढ़ाव आते ही रहते है। समय प्राने दूसरे दिन हिसाब करके देखा गया सो ६ लाख पर हम सभी भिंगुरकी भांति नष्ट होजायेंगे । जो कुछ के अनुमान किये जानेवालो शेयरोंकी कीमत ८ लाख भी जीवनमें सार्थक कार्य हो जायगा, वही हमारे निकलती है। २ लाख बढ़ जाते हैं। वह उसे भी दान जीवनकी स्मृति रह जायगी। इस बातका ताजा देनेके लिये फिर मुंशीजीसे सलाह लेते हैं । मुंशीजीने उदाहरण बम्बईके सुप्रसिद्ध सटोरिय श्री मुङ्गेलाल मुझे बुलाया और सब मामला कहा । आखिर भाई भाईका है। जिसकी आर्थिक सहायतासं अभी हमारी श्रीको कहा गया कि ६ लाख गोदानमे लग गये अब 'भारतीय-विद्या-भवन' नामक एक संस्था स्थापित दो लाख विद्यादान लगादो। उसने वैसा कर दिया। हुई है। अभी इस भवनका माग कार्य मेरे जिम्मे है। उसीसे बम्बईमें, अन्धेरीमें भारतीय-विद्या-भवन वहाँ पर उच्च कक्षाओंके छात्रोंको प्रायः सभी विषयोंकी खड़ा होगया। शिक्षा दी जाती है। यह हमारी बड़ी स्कीम है। इस भाई मुङ्गलाल वृद्ध है । वह हमारे पास कई बार भवनसं "भारतीय-विद्या” नामकी एक त्रैमामिक आता है, परमात्माके भजन सुननेके लिये हमसे प्रार्थना करता है। हम पाटण जाते समय उमको भी पत्रिका भी निकलती है, जिसका सम्पादन भी मैं ही माथ लेगए थे । वापिस आते समय रेलमें हमने उस करता हूं। _ से कहा-ईश्वर भजन करो अब फाटका करना छोड़ ___ भाई मुछ्न्लालक दानकी कथा बड़ी मनोरंजक दा। उसने म्वीकार भी किया। एवं अनुकरणीय है । भाई मुङ्गलाल बम्बईका सटारिया है। वह अपने जीवन में तीन बार करोड़पति बम्बई आया और सोचा अगर और थोड़ा फाटका कर तो और धन श्राजाय तो मैं और ज्यादा और देवालिया हुअा। अभी वृद्धावस्थामें उसने सोचा दान दे सकँ। सिर्फ इन्हीं शुभ विचागेमें उसने मंदी -मैं कई बार करोड़पति होकर गरीब हुआ पर मैंने में फाटका किया । वह मंदीका खिलाड़ी था । भाग्यने अपने जीवन में अभी तक एक भी ऐमा कार्य नहीं उलटा माग, सुबह देवता है ५२ लाख रुपयका किया निमम मेरा नाम अमर होजाय । इस समय घाटा ! अब बिचाग क्या करता! मेरे पास ६ लाग्बके शेयर व मकान आदि कुल १० अभी वह सोचता है कि मैंने जो कुछ चांदनीक लाखकी संपत्ति है। अगर मैं शेयरके रुपये किसी दिनांमें कर दिया मो कर दिया अब कुछ नहीं होनेका पुण्यकार्यमें लगा दू तो मेग नाम अमर होजायगा। उसके लिये मंसार। अंधकारमय है। मेरे कोई संतान नहीं है, तब फिर यह झंझट क्या? सजनों. मलाल भाईका श्रादशे आपके सामने ऐसा विचार कर उमने शेयरके ६ लाग्व रुपये के दान है, जो उसने संपन्नावस्थामें कर दिया, तो उसका करने का निश्चय किया, पर मोचा किसी शिक्षिन नाम अमर होगया है। इसी प्रकार अगर आप भी आदमीकी सलाह ज़रूर लेनी चाहिए । वह मीधा अभी दान करें तो समाजका, देशका, साहित्यका हमारे परममित्र श्रीकन्हैयालालजी Bar-at-Law के पास राय लेने गया । कितना ही उद्धार हो सकता है। और कहा मुझे इस कार्यके लिये गय दीजिये । मंशीजीने कहा इस समय मुझे आप लोगोंस मिलकर अत्यन्त प्रमन्नना सरकार गऊमाताके उद्धारकी ओर एक स्कीम बना हुई है। जब आप कुछ साहित्य के लिए कार्य करेंगे और मुझे बुलावेगे तो मैं आपकी मंत्रामें अवश्य रही है, वह १० लाखकी है। आप अपने ६ लाखके हाजिर होऊँगा और यह आशा रग्बता हुआ कि अब रुपये गऊओंके निमित्त दे दीजिये-गऊ तो हमारी आप भी माहित्योद्धारक लिये प्रयत्नशील बनेगेंमां है। बस फिर क्या था भाईश्रीको यह बात ठीक अपना भाषण समाप्त करता हूं। जंची और उसी दिन ट्रम्टकी लिग्वा पढ़ी ३-४ घंटेमें
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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