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________________ मक्खन वालेका विज्ञापन (एक मनोरंजक वार्तालाप) पंडितजी कहिये मेठजी! अबकी बारका 'अनेकान्त' तो नुसार, 'जैन तत्त्वज्ञानकी तल-स्पर्शी सूझका देखा होगा? बड़ी सज-धजके माथ वीरमेवा परिणाम है' । यदि अनेकान्तदृष्टि से उसे विज्ञापन मन्दिग्से निकला है! भी कहैं तो वह जैनीनीतिका विज्ञापन है-इस सेठजी-हाँ, कुछ देग्वा तो है, एक विज्ञापनसे प्रारम्भ नीतिका दूसरोंको ठीक परिचय कराने वाला होता है! है-न कि किमी मक्खन वालेकी दुकानका पाडतजी-कैसा विज्ञापन ! और किसका विज्ञापन ? विज्ञापन । उस पर तो 'जैनीनीति' के चारों सेठजी-मुखपृष्ठ पर है न वह किसी मक्खन वालेका अक्षर भी चार वृत्तांके भीतर सुन्दर रूपसे अंकित विजापन । हैं, जो ऊपर नीचे सामने अथवा बराबर दोनो पंडितजी-श्रच्छा, तो अनेकान्तके मुखपृष्ठ पर जो सुन्दर ही प्रकारसे पढ़ने पर यह स्पष्ट बतला रहे हैं कि भावपूर्ण चित्र है उसे श्राग्ने किमी मक्खनवाले यह चित्र 'जैनीनीति' का चित्र है । वृत्तोके नीचे का विज्ञापन समझा है! तब तो श्रापने खब जो 'स्याद्वादरूपिणी' श्रादि अाठ विशेषण दिये अनेकान्त देखा है ! हैं वे भी जैनी नीति के ही विशेषण हैसेठजी-क्या वह किसी मक्खनवालेका विज्ञापन नहीं है ? मक्खनवालेकी अथवा अन्य फर्म से उनका कोई पंडितजी-मालूम होता है मेठजी, व्यापार में विज्ञापनासे ही सम्बन्ध नहीं है । (यह कह कर पांडतजीने झोलेसे काम रहनेके कारण, श्राप मदा विज्ञापनका ही अनेकान्त निकाला और कहा-) देबिये, स्वप्न देखा करते हैं ! नहीं तो, बतलाइये उस यह है अनेकान्तका नववर्षाङ्क। इसमें वे सब चित्रमें अापने कौनसी मक्खनवाली फर्मका बाते अंकित है जो मैंने अभी श्रापको बतलाई नाम देखा है ? उसमें तो बहुत कुछ लिखा हैं। अब आप देखकर बतलाइये कि इसमें कहाँ हुआ है, कहीं 'मक्खन' शब्द भी लिखा देखा किसी मक्खनवालेका विज्ञापन है ? है! ऊपर नीचे अमृतचन्द्रसूरि और स्वामी सेठजी-(चित्रको गौरसे देखकर हैरतमें रह गये। फिर समन्तभद्रके दो श्लोक भी उममें अंकित है, बोले-) मक्खनवालेका तो यह कोई विज्ञापन उनका मक्खन वालेके विज्ञापनसे क्या सम्बंध ? नही है। यह तो हमारी भूल थी जो हमने इसे सेठजी-मुझे तो ठीक कुछ स्मरण है नहीं, मैंने तो उसपर मकवनवालेका विज्ञापन समझ लिया। पर यह कुछ गोपियों ( ग्वालनियो) को मथन-क्रिया करते 'जैनीनीति' है क्या चंज? और यह ग्वालिनीके देखकर यह समझ लिया था कि यह किमी पास क्यों रहती है ? अथवा क्या यह कोई जैनमक्खनवालेका विज्ञापन है, और इसीसे उस पर देवी है, जो विक्रिया करके अपने वे सात रूप विशेष कुछ भी ध्यान नहीं दिया। यदि वह किसी बना लेती है, जिन्हें चित्रमें अंकित किया गया मक्खनवालेका विज्ञापन नही है तो फिर वह क्या है ? ज़रा समझा कर बतलाइये। है ? किसका विज्ञापन अथवा चित्र है ? पंडितजी-जिनेन्द्रदेवकी जो नीति है-नयपद्धांत अथवा पंडितजी-वह तो जैनीनीतिके यथार्थ स्वरूपका संद्योतक न्यायपद्धति है-और जो सारे जैनतत्त्वज्ञानकी चित्र है, और हमार न्यायाचार्यजीके कथना मूलाधार एवं व्यवस्थापिका है उसे 'जैनीनीति'
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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