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________________ २१४ भनेकान्त [वर्ष ४ उस लेकिन पापी-हृदयमें इसका इतना भी असर न न खाना, न पीना, न सोना, न ठीक तरह हुश्रा, जितना मरणोन्मुख व्यक्ति पर 'चन्द्रोदय' का जागना ही । शायद लंघन हो रहे हैं । बड़ी मुश्किल ! हाता है । न ग्लानि, न पश्चाताप । वह उसके शत्रुकी सब परेशान ! किमीको पता नहीं, बात क्या है ? स्त्री है, भाईकी नहीं । दुनिया उसे भाई बतलाती है, और कमठ मनमें जाने क्या क्या व्यूह रचता बतलाए। वह उम 'भैय्या' कहकर पुकारता है, और बिगाड़ता है। बाज बाज वक्त तो उसका कार्यपुकारे । पर, कमठ जो उस भाई नहीं मानता। क्या क्रम बड़ा उग्र बनता है । पर अभी वह या तो सफल अनिच्छास भा भ्रातृत्वको जिम्मदारालादा जा सकता करना नहीं चाहता उसे, या उम करने में असमर्थ है। है किसी पर? दो दिन बीत चलं ।उसे लगा-जैसे उसकी तकलीफ पर महंम लग पर कमठकी बीमारी सहूलियत पर आने के रही हो, ममभूति नहीं तो मरुभूतिकी स्त्री ता है ! बजाय और बढ़ती जा रही है। इस पर अब तक उसकी निगाह ही नहीं गई। और कलहम है, कमठका दास्त । जिसे आजके शब्दों खुशीकी बात यह भी तो है कि एक ढेले में दो शिकार। में जिगरी दास्त कह सकते है वह । खुला व्यवहार, वसन्धरीकी सुन्दरता भी तो उसे बुरी तरह सता न झिझक, न किसी तरहका पर्दा । यों तो दोस्ती रही है। उस से जुड़ती है, जो जैसा होता है । लकिन कलहंस मनको जितना संयममें रक्खो, वह मुदोसा रहेगा, को श्राप कमठके टाइपका व्यक्ति समझेंगे, तो उसके और जैसे ही जरा ढील दी नहीं, कि वह लगा उड़ाने व्यक्तित्वक माथ अन्याय होगा। क्योंकि वह बुग भरने । फिर उम पर काबू पा लेना इनेगिने शूरवीगें __ आदमी नही है । सम्भव है उसकी मित्रताका धरातल . का काम रह जाता है । वह अपने श्राप ढालू जमीन __'दास्नकी दास्तीस काम, उसके फैलोस क्या मतलब', पर बहे पानीकी नग्ह दौड़ने लगता है-पतनकी की कहावन पर हो। ___ कमठके मनमें वसुन्धरीके लिए बुरी भावना आते कलहंस आया। देर न हुई कि वह नड़पने लगा-उसके लिए, उसके कमठकी उदासीकी बात उस मालूम थी। बोला रूपके लिए और उसकी हर बातके लिए, बुरी तरह ! -'क्या कोई अन्दरूनी तकलीफ हो गई है ? सुना है, जैसे वर्षाका उपासक, प्रेमी हो उसका। परसोंस कुछ खाया-पिया भी नहीं है । ऐसा क्यों ? ___ तमाम देहमें जलन, दिलमें बेचैनी, आंखोंमें कमठ इसी प्रतीक्षामें था, ऐसे ही आदमीकी पागलपन और मुंह पर वसुन्धरीका नाम । उसे काम- तलाशमें था-जिससे खुलकर कहा जा सके, जो ज्वर चढ़ा, ऐसा चढ़ा कि हद । दूसरे रोगियोंकी कुछ सहूलियत के साथ कर सके, 'साँप मरे न लाठी भांति उसे भी जीवनकी चिन्ताने आ घेरा। उन्हें टूटे'-का सिद्धान्त जिसे याद हो। आरोग्यका अभाव मौतकी तरफ धकेलता है और धीरे धीरे. वर्षों के बीमारकी तरह ठंडी और इस वसुन्धरीका विरह । वे चाहते हैं स्वास्थ्य, और लम्बी सांस लेते हुए कमठने अपनी अनुचित और यह चाहता है-प्रणय। घृणायोग्य व्यथा मित्रके आगे रखदी । तरफ।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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