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________________ २०४ अनेकान्त [वर्ष ४ सम्बन्ध किसी लालचसे अथवा अपनी परिस्थितियोंसे मजबूर पुत्रके सिद्धान्तके खिलाफ है। आपका पुत्र प्रापकी बहूको होकर एक पूर्ण प्रशिक्षित लडकीसे कर दिया। मेरा मतलब शुद्ध खादीकी पोशाक पहनाना चाहता है, किन्तु वह इससे यहाँ प्रेजुएट होनेसे सिर्फ डिग्रीप्राप्त करने ही से नहीं है राजी नहीं है। वह उसे ज़ेवर पहनाना नहीं चाहता, लेकिन बल्कि उन सब गुणोंमे है जो वास्तवमें एक ग्रेजुएटमें होने उसका मन कहता है कि वह जेवरोंमे लदी रहे । वह नुकता चाहिए। अाप भी खुश हैं। आपकी गृहस्थी भी खुश हैं। और परानी रूदियोंके पक्ष में है और मौका पडनेपर तदानुकूल घरके भाई-बन्धु भी खुश है। किन्तु यह आपकी कल्पनामें ही रस्म-रिवाज़ करनेक लिये हठ करती है। आपका पुत्र भी न पायेगा कि आपके पुत्र और उसकी बहके अन्तरंगमें बेचारा परेशान है. वह करे तो क्या करे ? ऐसी सैकड़ों ही क्या है ? भीतर ही भीतर उनको किन कठिनाइयों और कठिनाइयां और आपदा उन्के सम्मुग्व उपस्थित होती हैं विमारोंके घात-प्रतिघातका सामना करना पड़ रहा है। दोनों और उनको सुलझातं-सुलझाते ही उनका अमूल्य जीवन एक दूसरेके विचारोंमे भिन्न हैं। आपकी बह आपके पत्रकी ग्वतम हो जाता है। इसी तरह जिन दम्पतियों में म्बी शिक्षित आवश्यकताओं और उसकी विचारधारात्रोम कतई अनभिज्ञ हैं और पुरुष अशिक्षित है नो बेचारी मीकी बहुत ही किरकिरी हैं। आपका पुत्र आपकी बहूके अज्ञान और प्रशिक्षापर है । बम यह ममझिये कि वह अपने जीवनको किमी तरह काट मुंमलाता है, कुढना है और फूट-फूटकर रोता है। किन्तु रही है। उसके जीवन में कोई गौग्व, हर्ष या रम तो बिल्कुल है यह सब आपम कभी कहना नही, इसलिय श्राप उससे ही नहीं। जब हम दो स्त्री-पुरुषोंका सम्बन्ध निश्निन करें बिम्कुल बेखबर हैं। बेचारी बह आपके पुत्रकी बंद-रिवाना नो उनके स्वभाव, शारीरिक मांगटन और स्वास्थ्यकी समानता और उसकी मानसिक वेदनात्रोंका कारण मोचने और हर र की अोर भी हमे अधिकम अधिक ध्यान देना चाहिये । ऐसा मममनेकी योग्यता नहीं रग्वनी। बेचार्ग मन ही मन अपनी कहा जाता है कि आज जो घर-घरमें दुबली, कमज़ोर, बनअयोग्यता पर लज्जित होती है। माना कि आपकी बहू बहुत मिजाज बेढंगी और अस्वाभाविक मंतति देखी जानी हैं उमका अच्छा खाना बनाती है, बड़ी विनम्र है, संवापरायण है, एकमात्र कारण यही है कि विवाह के समय हम इन बातोंकी मन्दर है काम करने में चनुर है, किमीप मगरनी नहीं है बिन्दुल उपेक्षा कर वैउत हैं। म्वभाव-भिन्नताके कारण कभीपौर दिन-रात आपकी, आपके प्रकी और आपके घरकी कभी बडे-बई उपद्रव हो जाते हैं। यहां तक कि दम्पतियों निम्तामें लगी रहती है किन्तु फिर भी ऐसी कोनमी वजह है में किसी एक के अथवा दोनों के जहर खाकर मर जान नकके जो आपका पुत्र उमस सदा विरक्न-सा रहता है। विचार समाचार सन में प्रात हैं । स्वास्थ्य और शारीरिक मंगठनके करने पर वजह यही मालूम होगी कि शिक्षा और प्रशिक्षाके बा में इन ही कहना पर्याप्त होगा कि दो यादमियों के महान अन्तरने उन दोनों हदयोंके बीच एक जबर्दस्त पर्दा बलप्रयोगमें एकके कमजोर और एकके ताकतवर रहनेपर कमडाल रकवा है जिसके कारण दोनों एक दृमोके हृदयको ज़ोरकी जो दुर्दशा होती है वही दुरवस्था दम्पतियों में जो कमदेख नहीं सकते । एमी अवस्थामें दाम्पत्य सुग्व कहां? उसका शोर उपकी होगी। सौंदर्य के सम्बन्धमें भी यह बात है कि स्वप्न भी नहीं देखा जा सकता। वैर, हार्दिक कठिनाइयां सी-परुषों में एक बहुत अधिक मुन्दर और एक बहुत अधिक ही नही गार्हस्थ्य-सावन्धी और सामाजिक कठिनाइयों पर भी करूप होगा नो सन्दर व्यक्ति कुरूपसे घृणा करने लगेगा गौर कीजिये । समय आपकी यह और आपका पुत्र बहुत और दोनों में कभी श्रम और मेल नहीं हो सकेगा। कुछ अवस्था पार कर गये हैं और उनके सामने दो-एक बाल-बच्चे भी खेलने लग है। आपकी बह चाहती है कि इसलिये समाज व उसके मरतकोंको चाहिये कि ऐसे नजर-फटकारसे बचाने के लिये बच्चको किसी मयाने फकीरका बेजोइ विवाहोपर बहुत ही कठोर दृधि रक्खें थोर जहां तक ताबीज पहना दिया जाय लकिन श्रापका पत्र उसके खिलाफ हो सके ऐसे विवाह न होने दें। इससे व्यक्तियोंका भी है। वह चाहती है कि बाचेकी बीमागमें किसी देवताको भला होगा और उनसे बनने वाल समाजका भी हित होगा। सवा मनकी मिठाई चढ़ाई जाय, लेकिन यह बात आपके
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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