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________________ जीवनकी पहेली किरण ३ ] जानता । यह इनकै सुझाये तथ्यों को अलग करना जानता । यह इन तथ्यों में सत्य-असत्यका निर्णय करना नहीं जानता । यह सत्यांशोंका वर्गीकरण करना नहीं जानता । यह विभाजित सत्यांशोंका पारस्परिक संबंध नहीं जानता । यह उनकी सापेक्षिक एकता नहीं जानता। यह उनका सापेक्षिक उपयोग, सापेक्षिक व्यवहार, सापेक्षिक क्रम नहीं जानता । यह उनका सम्मेलन करना नहीं जानता, उनकी संगति मिलाना नहीं जानता । यह सर्वथा हर एक अनुभवको एक जुदा अनुभव मान लेना है। हर एक तथ्यको एक जुदा चीज मान लेता है। हर एक घटनाको एक जुदी घटना मान लेता है। हर एक वस्तुका एक जुदी वस्तु मान लेता है । यह हर एकको आदि अन्त सहित मानता है । इसकी यह विमूढ़ता हो जोवन के जानने में बाधक है, इसकी यह विमूढ़ता ही जीवनको अनेक रूप बताने में सहायक है । फिर कौन है जो इस जीवन-तस्वको जान सकता है ? सम्यक्त्व गुणस्थान वाले जीवन-तत्वको वही जान सकता है, जो दुःखमे निःशंक है, भय से निर्भीक है, जो दुःखके बीच खड़े रहकर दुःखको देख सकता है 1 जो इच्छा - तृष्णा मे निवृत है, बाहिरी जगतमें उदासीन है, जो बाहिर में रहता हुआ भी, चलता फिरता भी, कामधन्धा करता हुआ भी निष्काम है, निःकांक्ष है । जो अन्तर्मुखी है, अन्तर्दृष्टि है । निर्मल बुद्धि है, उज्ज्वल परिणामी है, शान्तचित्त है, जो निर्भय और निरहंकार है । जो मेरे तेरे के प्रपश्व में नहीं पड़ता, जो पुराने और नयेके दुराग्रह १६६ में नहीं पड़ता, जो सदा सत्याग्रही है, सत्य भक्त है, सत्यका पुजारी है। जो सदा श्रप्रमादी और तत्पर है, दृढ़ संकल्पी और स्थितप्रज्ञ है, जो सचेत और जागरुक है, जो साहमी और उत्साही है, जो कठिनाई और अडचनसे नहीं डरता, रंगरूपसे नहीं विचलता, कहे सुनेसे नहीं उबलता | जां ज्ञानी और ध्यानी है, जो देखा-देखीको, सुनासुनाईका, चला चलाईका नहीं मानता, जो खुद हर चीजको अध्ययन करने वाला है, परीक्षा करने वाला है, मनन करने वाला है । जो विवेकबुद्धि है, भेदविज्ञानी है, जो ज्ञानको कल्पना से जुदा करने वाला है, प्रमाणको भ्रमसे अलग रखने वाला है, सत्यको असत्य से पृथक् रखने वाला है, जो भीतरको बाहिरसे अलग करने वाला है, को अनिष्टसे अलग करने वाला है, मतिज्ञानको निष्ठाज्ञानसे अलग करने वाला है। जो विशालदृष्टि है, विशाल अनुभवी है, जां सब ही ज्ञानों द्वारा देखने वाला है, सब ही अनुभवों को जमा करने वाला है, सब ही तथ्योंका आदर करने वाला है, जो किसी अनुभवकी भी उपेक्षा नहीं करता, किसी पथ्यकी भी अवहेलना नहीं करता । जो अनेकान्ती है, जो सब ही अनुभवों, सब ही तथ्यों, सब ही युक्तियों, सब ही दृष्टियोंका समन्वय करने वाला है। जो सब ही की संगति मिलाने वाला है, जो सब ही में पारस्परिक सम्बन्ध रखने वाला है, सापेक्षिक एकता देखने वाला है । किं बहुना, जो प्रशम, संवेग, अनुकम्पा, आस्ति क्य स्वभाव वाला है । जो निःशंका. निःकांक्षा, निर्विचिकित्सा, निर्मूढ़ता गुण वाला है, जो सम्यग्दृष्टि है, जो सम्यक्त्व गुणस्थान वाला है। परन्तु सम्यग्दृष्टि होना आसान नहीं, यह बहुत
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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