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एक आदर्श जैन महिलाका वियोग !
[सम्पादकीय ]
पाठक जिम महिला-रनका मोम्य चित्र अपने सामने को अमर कर गई है। इसीम अनेकान्तक कालमा में प्राज अवलोकन कर रहे हैं वह आज अपने इस भौतिक शरीरमें इसकी चर्चा है।
__चित्र परसे पाठकोको इतना जानने में तो देर नहीं लगेगी विद्यमान नहीं है--कई महीन हुए वह हम नश्वर शरीरको जीर्ण-शीर्ण होता देग्वकर बड़े ही निर्ममलभावम छोडगई है----
कि इस देवीका नाम श्रीमती 'म गाबाई' था और यह कल
कत्ताके सुप्रसिद्ध धनिक व्यापारी बाबू छोटलालजी जैनकी छोडनके बाद इसका कही पता भी नहीं रहा ! कोई भी नही
धर्मपत्नी थी-य दोनही बात चित्रक नीचे अंकित हैं। हम् रग्व नहीं मका !! और यह अन्तको मांक देखतं देखतं
माथ ही, देवीजीक चहरंकी मारल्य-सूचक ग्वानों और शरीर शून्यमे विलीन होगया ! हां. विलीन होतं समय मोही
के वेष-भूषा परमं कुछ अंशोंमें यह भी समझ सकंग कि यह जीवीको इन पाट जरूर पढा गया कि जिप शरीरको अागमा
देवी सरल म्वभावकी, निष्कपट व्यवहारकी एवं भोली-भाली समझा जाता है. अपना जानकर नथा स्थिर मानकर जिस पर
प्रकृतिकी महिला थी और हम बहुत कुछ मादा जीवन पसंद था। अनुगग किया जाता है वह अपन, नहीं पर है, स्थिर नहीं नश्वर
इसम अधिक लिय चित्र एकदम मौन है-जीवनकी विशेष है, अामा नहीं मिट्टीका पुतला है ---पानीका बुलबुला है,
घटना तथा व्यक्तिकं गुणविशेषांका उममं कोई परिचय नहीं बिजलाकी चमक है, तीव्र पवनम प्रताडित हुश्रा मेघपटल है
मिलता और इसलिय स्वभावसे ही यह जिज्ञासा उत्पन्न होती है अथवा पर्वतक शिविरपर झंझावातके समक्ष स्थित दीपकके
कि देवीजीका विशेष परिचय क्या है ? उनका जीवन के मेन्यसमान है. अपन। उभपर को विशेष अधिकार नहीं; और इस
नीत हा ? उसमें उन्होंने क्या क्या प्रादर्श उपस्थिन किया? लिये वह अनुरागका पात्र नहीं, प्रेमकी वस्तु नहीं: उम्म
और अन्तको वे ऐसा कोनमा म्मरणीय कार्य कर गई हैं जिस ग्रा-मा समझना, अपना जानना नथा स्थिर मान्ना भ्रम था
म मरकर भी अमर होगई हैं? इन सब बातोंका उत्तर पाठको मोहका विलाम था और काग बहिगमन्व था। उसका निधन
को देवाजीकी निम्न जीवनीम मिलेगा जो विश्वस्तसूत्रम प्राप्त प्रकृतिक नियमानुसार अथवा 'मरणं प्रकृति: शरिणाम्' इस
हई घटनाओं तथा मुहांक आधार पर मंक्षेपमें मंकलित की धर्मधीपणाकं अनुम्मार हुया है। अतः शोक व्यर्थ है । प्रस्तु: गई:-- यह देवी हम वियुक्त होकर इस समय अपने यशः शरीरमें पितृगृह और श्वशरगृह स्थित है और हमारे पास इसकी कंवल स्मृति स्मृति ही इनका कल स्टार स्मृति हा श्रीमती में गाबाइका जन्म अग्रवाल शिम, विहार प्रान्त
श्रीमती मगाबाई अवशिष्ट है । यों तो सम्माग्में अनेक प्राणी जन्म लेते हैं और के बढेया नामके नगरमें हुआ था । अापकं पिता मंठ ग्वतमी मर जाने हैं-कोई जानना भी नहीं परन्तु जन्म लेना उन्हीं दामजी अग्रवाल ( कलकत्ताकी मप्रसिद्ध फर्म 'मेट नोपचन्द का सफल है, वे ही जीवित रहने हैं और वे ही म्मरण कियं मंगनीराम' के मालिक । वहांक अग्रगण्य ग्यवमायी और जाते हैं, जो कोई चिरम्मरणीय कार्य कर जाते हैं। यह देवी ज़मींदार थे, जिनका परिवार बहुन बढ़ा था--इस समय भी भी ऐसी ही कुछ स्मृति छोड़ गई है और मर कर भी अपने उसकी जननांग्या मवामी या इंदसौमे कम नहीं है। भाई