________________
१५३
अनेकान्त
का, ५७५ में सिंह विष्णुका, ६०० से ६२५ तक महेन्द्रवर्मन्का, ६२५ से ६४५ तक नरसिंहवर्मन् का, ६५५ में परमेश्वरवर्मन्का, इसके व द नरसिंहवर्मन द्वितीय ( राजसिंह ) का और ७४० में नन्दिवर्मन्का नामोल्लेख मिलता है । ये सब राजा पल्लव वंशके
और इनमें 'सिंह विष्णु' से लेकर पिछले सभी राजाओंका राज्यक्रम ठीक पाया जाता है + | परन्तु सिंहविष्णु से पहलेके राजाओंकी क्रमशः नामावली और उनका राज्यकाल नहीं मिलता, जिसकी इस अवसर पर - शिव कोटिका निश्चय करनेके लियेखास जरूरत थी । इसके सिवाय, विंसेंट स्मिथ साहब ने, अपनी 'अर्ली हिटरी आफ इंडिया' ( पृ० २७५ - २७६ ) में यह भी सूचित किया है कि ईसवी सन् २२० या २३० और ३२० का मध्यवर्ती प्रायः एक शताब्दीका भारतका इतिहास बिलकुल ही अंधकाराच्छन्न है-: - उसका कुछ भी पता नहीं चलता । इससे पष्ट है कि भारतका जो प्राचीन इतिहास संकत हुआ है वह बहुत कुछ अधूरा है । उसमें शिवकोटि जैसे प्राचीन राजाका यदि नाम नहीं मिलता तो यह कुछ भी आश्चर्यकी बात नहीं है। यद्यपि ज्यादा पुराना इतिहास मिलता भी नहीं, परंतु जो मिलता है और मिल सकता है उसको संकलित
* कांचीका एक पल्लवराजा 'शिवस्कंद वर्मा' भी था, जिसकी श्रोरसे ‘मायिदावोलु’ का दानपत्र लिखा गया है, ऐसा मद्रासके प्रो० ए० चक्रवर्ती 'पंचास्तिकाय' की अपनी
जी प्रस्तावना में सूचित करते हैं । श्रापकी सूचना के अनुसार यह राजा ईसाकी १ ली शताब्दीके करीब (विष्णुगोपसे भी पहले) हुआ जान पड़ता है।
[ वर्ष ४
,
करने का भी अभी तक पूरा आयोजन नहीं हुआ । जैनियोंके ही बहुतसे संस्कृत, प्राकृत, कनड़ी, तामिल और तेलगु आदि ग्रंथोंमें इतिहासकी प्रचुर सामग्री भरी पड़ी है जिनकी ओर अभी तक प्रायः कुछ भी लक्ष्य नहीं गया। इसके सिवाय, एक एक राजाके कई कई नाम भी हुए हैं और उनका प्रयोग भी इच्छानुसार विभिन्न रूपसे होता रहा है, इससे यह भी संभव है कि वर्तमान इतिहास में 'शिवकोटि का किसी दूसरे ही नामसे उल्लेख हो और वहाँ पर यथेष्ट परिचयके न रहने से दोनों का समीकरण न हो सकता हो, और वह समीकरण विशेष अनुसंधानकी अपेक्षा रखता हो । परन्तु कुछ भी हो, इतिहास की ऐसी हालत होते हुये, बिना किसी गहरे अनुसंधानके यह नहीं कहा जा सकता कि 'शिवकोटि ' नामका कोई राजा हुआ ही नहीं, और न शिवकोटि के व्यक्तित्वसे ही इनकार किया जा सकता है । 'राजावलिकथे' में शिवकोटिका जिस ढंगसे उल्लेख पाया जाता है और पट्टावली तथा शिलालेखों आदिद्वारा उसका जैसा कुछ समर्थन होता है उस पर से मेरी यही गय होती है कि 'शिवकोटि ' नामका अथवा उस व्यक्तित्वका कोई राजा जरूर हुआ है, और उसके अस्तित्वकी संभावना अधिकतर कांचीकी ओर ही पाई जाती है; ब्रह्मनेमिदत्तने जो उसे बागणसी ( काशी बनारस ) का राजा लिखा है वह कुछ * शिवकोटिसे मिलते जुलते शिवस्कंदवर्मा (पल्लव), शिवमृगेशवर्मा (कदम्ब ), शिवकुमार ( कुन्दकुन्दका शिष्य), शिवस्कंद वर्मा हारितीपुत्र ( कदम्ब ), शिवस्कंद शातकर्णि (न्), शिवमार (गंग), शिवश्री (आन्ध्र ), और शिवदेव (लिच्छिवि), इत्यादि नामोके धारक भी राजा हो गये हैं । संभव है कि शिवकोटिका कोई ऐसा ही नाम रहा हो, अथवा इनमेंसे ही कोई शिवकोटि हो ।
+ देखो, विसेंट ए० स्मिथ साहबका 'भारतका प्राचीन इतिहास' (Early History of India), तृतीय संस्करण, पृ० ४७१ से ४७६ ।