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किरण १]
गो० सारकी जी०प्रदीपिका
विभूषित थे सिद्धान्तका अध्ययन किया था। लाखावीक २५ के साथ किया गया है। प्राग्रहसे वे गोर्जर देशसे प्राकर चित्रकूटमें मिनदासशाह द्वारा चौथे, ऐलक पनाखाल सरस्वती भवन की रिपोर्टके निर्मापित पार्श्वनाथके मन्दिरमें ठहरे थे। धर्मचन्द्र,अभयचन्द्र सम्पादकने, साफतौरपर जी० प्रदीपिकाका सम्बन्ध, सम्भ
और अन्य सज्जनोंके हितके लिये, खण्डेलवालवंशके साह- बतः उसकी सन्धियोंके प्राधारपर, नेमिचन्द्रसे डराया है। सांग और साह सहेस२४ की प्रार्थनापर उन्होंने अपनी पांचवें, पं. नाथूरामजी प्रेमी ने, गो. सार टीकाके संस्कृत जी प्रदीपिका नामक टीका कर्णाटक वृत्तिका अनुसरण कर्ता ज्ञानभूषण हैं इस सम्मतिका विरोध करते हुए, पह करते हुए, विद्यविद्याविशालकीर्तिकी सहायतासे लिखी। प्रकट किया है कि उसके लेखक नेमिचंद्र है, और उन विवहमें बताया गया है कि प्रथम प्रति अभयचन्द्रने, जोकि रणोंसे, जोकि उन्होंने प्रस्तुत किये हैं, यह स्पष्ट है कि उनकी निम्रन्थाचार्य और त्रैविधचक्रवर्ती कहलाते थे, तय्यार की थी। दृष्टिमें जी० प्रदीपिका और उसका कर्ता रहा है।
पद्यामक प्रशस्ति गद्यप्रशस्तिम्से सभी मौलिकवार्तोमें अन्तको, पद्यात्मक प्रशस्तिमें नेमिचंद्र-विषयक उस्लेख सहमत है, किन्तु यह कनका नाम, अर्थात नेमिचन्द्र, निर्देश का प्रभाव किसी बातको निश्चितरूपमे सिद्ध नहीं करता, नहीं करती, जोकि गद्यप्रशस्तिमें स्पष्टरूपमें दिया गया है। और न यह कल्पनाकी किसी खींचातानीसे केशववर्णी द्वारा तफसीलकी बानोंमें पूर्ण सादृश्य होने और कोई स्पष्ट विरोध जी० प्रदीपिकाके कथित कर्तृत्वका समर्थन ही कर सकता है। न होनेसे हर एकको यह स्वीकार करना पड़ता है कि प्रशस्ति- हम केशववर्णिविषयक कुछ बातोको जानते हैं और वे योंके अनुसार नेमीचन्द्र ही जी० प्रदीपिकाका कर्ता है। प्रशस्तियों में दीगई बातोंके माथ मेल नहीं खातीं । इस प्रकार
दूसरे, गोम्मटसारके अनेक अधिकारोंकी समाप्तिपर जी० केशववर्णीको जी० प्रदीपिकाका रचियता बतलाने वाला प्रदीपिकाकी सन्धियां इस प्रकार पाई जाती हैं
कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है, प्रत्युत इसके, उपयुक्त इत्याचार्यश्रीनेमिचन्द्रविरचितायां गोम्मटसारापरनाम पंच- मुहे निश्चितरूपमें बतलाते हैं कि जी० प्रदीपिकाके कर्ता संग्रहवृत्ती जीवनवप्रदीपिकायां आदि।
नेमिचंद्र है, और उनको गोम्मटमार के कर्ताके माथ नहीं स्वभावतः 'विरचितायो पद 'जीवतत्त्व प्रदीपिकार्या' पद मिलाना चाहिये। का विशेषण है, और इस तरहसे भी हम जी. प्रदीपिकाके रही यह बात कि जी० प्रदीपिकाने कर्णाटकवृत्तिका कर्तृत्वका सम्बन्ध प्राचार्य नेमिचन्द्र मे लगाएंगे। अनुसरण किया है, इसके सम्बन्धमें उपर उद्धृत किये गये ___तीसरे, 'प्राचार्यश्रीनेमिचन्द्र विरचितायो' इस वाक्यांश दो पद्य निश्चितरूपसे बतलाते हैं कि के शववर्णीकी वृत्तिका का सम्बन्ध गोम्मटसारके साथ नहीं हो सकता। ये प्राचार्य अनुसरण किया गया है। इस वृत्तिकी लिखित प्रतियाँ पाज नेमिचन्द्र गोसारके रचयिता नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवती ५५ उटाहरणके लिए देवो. जीवकाण्ड प्र. ६४८ कर्मकाण्ड से भिन्न होने चाहिये। जी. प्रदीपिकामें अनेक स्थलोंपर पृष्ठ ६०० कलकत्ता संस्करण गोसारके रचयिता का उल्लेख और उनका वह उल्लेख २६ मिद्धान्तादि मंग्रहः (माणिकचन्द दि. जैनग्रन्थमाला२१ प्रायः आवश्यकरूपमें उनकी प्रसिद्ध उपाधि सिद्धान्तचक्रवर्ती ।
बम्बई १६१२) प्रस्तावना पृष्ठ १२ का फुटनोट ।
२७ इस नामकी अर्थ व्याख्याके लिए देखो, मेग 'गोम्मट' २४ दोनों प्रशस्तियोंमें इन नामोंके कुछ भिन्न पाठभेद दिखाई शषिक लेख जो भारतीय विद्या' बम्बई, जिल्द २ में
प्रकाशित हुआ है।