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किरण १]
गो० सारकी जी०प्रदीपिका
मार्तण्डी' नामसे किया गया है। पं. मनोहरलाल 'प्रो० श्रीमस्केशवचन्द्रस्य कृतकर्णाटवृत्तितः। घोषालमिस्टर जे. एल. जैनी." श्रीमान् गांधी'८ कृतेयमन्यया किंचिच्चेत्तच्छोध्यं बहुश्रुतः ॥ और अन्य लोगोंने भी इसी प्रकारकी सम्मतियां प्रकट की हैं। मालूम नहीं लगभग एक ही प्राशयके ये दो पचल्यों गो० सारके कलकत्तास्करणके सम्पादक ग्रन्थके मुखपृष्ठ पर दिये गये हैं और इन्हें देते हुए रिपोर्ट के सम्पादकने जो परिजी. प्रदीपिकाको केशववर्णीकी प्रकट करते हैं।
चयके रूपमें 'पाठान्तरम्' पदका प्रयोग किया है उसका ____ इस प्रकार पं० टोडरमल्लजी और उनके उत्तराधिका- क्या अभिप्राय है। पं. टोडरमल द्वारा दिये गये पथके रियोंने, बिना किसी सन्देहके, यह सम्मति स्थिरकी है कि साथ पहले रथकी तुलना करने पर, हमें ध्यान खींचने योग्य संस्कृत जी०प्रदीपिका का कर्ता केशववी है। सम्भवतः
मेद उपलब्ध होता है, और इन दोनों पोंमे यह बिल्कुल निम्न पद्य, जैसाकि कलकत्तास्करण' में मुद्रित हुआ है. स्पष्ट हो जाता है कि जी० प्रदीपिकाके लेखकने इनमें अपना उनकी सम्मतिका अंतिम आधार है:
नाम नहीं दिया, उसने अपनी टीका केशववर्णीकी कर्णाटवृत्ति श्रिया कार्णाटिकी वृत्तिं वर्णिश्रीकेशवैः कृतिः ।
पर मे लिखी है और माथ ही यह भाशा व्यक्त की है कि कृतयमन्यथा किंचिा विशोध्यंतद्बहुश्रुतैः ॥ उम्मकी टीकामें यदि कुछ अशुद्धियां हों तो बहुश्रुत विद्वान
यह पच जिसरूपमें स्थित है उमका केवल एक ही उन्हें शुद्ध करदेनेकी कृपा करें। आशय सम्भव है; और हम सहज ही में पं० टोडरमल्ल उस प्रमाण (सादी) को जिसके माधारपर केशववर्णीको और उनके अनुयायियोंकी मम्मतिको ममम ममते हैं। संस्कृत जी० प्रदीपिकाका कर्ता मान लिया गया है, पथके परन्तु इम पद्यका पाठ सर्वथा प्रामाणिक नहीं है, क्योंकि पाठान्तरोंने वास्तवमें विगार दिया है। यह दिखाने के लिये जी० प्रदीपिकाकी कुछ प्रतियां ऐसी हैं जिनमें बिलकुल भिन्न कि केशववर्णी संस्कृत जी० प्रदीपिकाका कर्ता है, दूसरा कोई पाठान्तर मिलता है। श्री ऐलक पन्नालाल दि. जैन सरस्वती भी प्रमाण भीतरी या बाहिरी उपस्थित नहीं किया गया, भवन बम्बई की, जी०प्रदीपिका महित गोम्मटसारकी और यह तो बिल्कुल ही माबित नहीं किया गया कि यह एक लिखित प्रतिपर में हमें निम्न पद्य उपलब्ध होते हैं। टीका चामुण्डरायकी कर्णाटकवृत्तिके प्राधार पर बनी है।
श्रित्वा कर्णाटिकी वृत्तिं वर्णिश्रीकेशः कृताम् । यह सच है कि गोम्मटमारमे हमें इस बानका पता चलता है
कृतेयमन्यथा किंचिद्विशोध्यं बहुश्रतः ॥ कि चामुण्डरायने गो० मार पर एक देशी (जोकि कर्णाटक१५ गोम्मटमार जीवकाण्ड (बम्बई १६१६) भूमिका।
वृत्ति समझी जाती है ) लिखी है । जी०प्रदीपिकामें केवल १६ द्रव्यमग्राः ( S. B J. I, भाग १६७), भूमिका एक कर्णाटवृत्तिका उल्लेख मिलता है और उसमें चामुण्डराय पृष्ठ ४१ ।
के मानन्धका कोई भी उल्लेख नहीं है, न चामुण्डरायवृत्ति १७ गोम्मटमार, जीवकाण्ड (s B J. V लग्वनऊ १६२७) की कोई हस्तलिखित प्रति ही प्रकाश२' में पाई है और न भृमिका पृष्ठ 3
यह सिद्ध होनेकी कोई मम्भावना है कि संस्कृत जी० प्रदी१८ गोम्मटमार मराठी अनुवाद महित, शोलापर १६३६,
पिका चामुण्डरायकी टीकाका अनुसरण करती है । इन भूमिका पृष्ठ 2 १९ जीवकाण्ड, पृष्ठ १३२६ ।
२१ श्रार० नरसिंहाचार्यकृन 'कर्णाटकक विचरित', जिल्द १ .. रिपोर्ट १, वीरमम्वत् २४४६, पृष्ठ १०४-६।
पृष्ठ ४६-४६