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________________ गोम्मटसारकी जीवतत्त्वप्रदीपिका टीका, उसका कर्तृत्व और समय ( मूल लेखक-प्रोफेसर ए० एन० उपाध्याय, एम० ए०, डी० लिट० ) [अनुवादक-पं० शंकरलाल जैन न्यायतीर्थ ] Xम्मटसार पर अब तक दो टीकाएँ प्रकाशमें वस्तुतः गोम्मटसारके अध्ययनके यथेष्ट प्रचारका श्रेय जीवतत्व. आई हैं, जिनमें पहली 'मन्दप्रबोधिका और प्रदीपिकाको प्राप्त है। गोम्मटसार के हिन्दी, अंग्रेजी और , दूसरी 'जी तस्व प्रदीपिका' है, और वे दोनों मराठीके सभी प्राधुनिक अनुवाद पं० टोडरमरक्षकी हिन्दीk टीकाएँ गोम्मटसारके कलका सांस्करण२ टीका 'सम्यग्ज्ञानचन्द्रिकाके आधार पर हैं, और इस टीकामें * में पं. टोडरमल्लकी हिन्दी टीका 'सम्प- मात्र उस सब विषयको परिश्रमके साथ स्पष्ट किया गया है ग्ज्ञानचन्द्रिका' के साथ प्रकाशित हो चुकी हैं। कलकता जो कि जी प्रदीपिकामें दिया हुआ है । जी०प्रदीपिका के संस्करणमें मन्दप्रबोधिका जीवाकाण्डकी गाथा नं० ३८३ तक बहुतसे विवरण मंदप्रबोधिकाके अनुसार हैं। मं० प्रबोधिका दी गई है, यद्यपि सम्पादकों ने अपने कतिपय फुटनोटोंमें के अधिकांश पारिभाषिक विवरणोंको जी०प्रदीपिकामें पूरी इस बातको प्रकट किया है कि उनके पास (टीकाका) कुछ तरह से अपनालिया गया है, कभी कभी अभय चन्द्र" का और वंश भी है । मन्दप्रबोधिकाके कर्ता अभयचन्द्र हैं और नाम भी साथमें उल्लेखित किया गया है, जी०प्रदीपिकामे यह बात अभी तक अनिर्णीत है कि अभयचन्द्र ने अपनी प्रत्येक अध्यायके प्रारम्भिक संस्कृत पोंको उन्हीं पोंके सांचे टीकाको पूरा किया या उसे अधरा छोड़ा। इस लेख में मैं में डाला गया है जो म०प्रबोधिकामें पाये जाते हैं. और जीवतस्वप्रदीपिकाके कुछ विवरण देनेके साथ साथ उसके जीवाकाण्डकी गाथा नं. ३८३ की टीकामें तो यह स्पष्ट कर्तृत्व और समयसम्बन्धी प्रश्नपर विचार करना चाहता हुँ। ही कह दिया गया है कि इसके बादसे जी० प्रदीपिकामे वर्तमानमें केवल जी. प्रदीपिका ही गोम्मटसार पर केकल कर्णाटवृत्ति का अनुसरण किया जायगा, क्योंकि उपलब्ध होने वाली पूरी और विस्तृत संस्कृत टीका है। अभयचन्द्र द्वारा लिखित टीका यहां पर समाप्त हो गई है। जैसा कि मैंने सरसरी तौरसे पढ़ने पर नोट किया है, जी. १ यह निबन्ध बम्बई यूनिवर्सिटीकी Springer Rese arch Scholarship की मेरी अवधिके मध्यमें ४ गोम्मटसारके विभिन्न संस्करणोके लिये, देखो मेरा लेख तय्यार किया गया है। 'गोम्मट शब्दके अर्थविचार पर सामग्री' I H Q., २ गाँधी हरिभाई देवकरण जैन ग्रन्थमाला, ४ कलकत्ता; Vol. XVI. Poussin Number इसको हम लेखमें कलकत्तासंस्करणके तौर पर उल्ले- देखो. जीवाकाण्डकी १३वीं गाथाकी टीका, जो श्रागे खित किया गया है। उद्धत की गई है। ३ देखो, कर्मकाण्ड कलकत्तासंस्करणके पृष्ठ ६१५,८६८, गाथाओंके नम्बर कलकत्तासंस्करणके अनुसार दिये १०३८ आदि। गये हैं।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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