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________________ किरण १] तामिल भाषाका जैनसाहित्य के समक्ष उपस्थित किया गया, जिसने गुणमालाके उनकी सहायताको दौड़ पड़ा और उसने राजाके पक्षमें निर्णय देदिया। इस निर्णयसे सुरमंजरी अत्यन्त हाथीको वशमें कर लिया और उसे उसके स्थानपर खिन्न हुई और उसने अपने आपको कन्यामाद शान्तिके साथ पहुँचवा दिया। इस प्रकार उसने (कन्यागृह) में बन्द करनेका निश्चय किया और यह गुणमाला और उसकी सखियोंके लिए मागे साफ नियम लिया कि वह तबतक किसी भी पुरुषका मुख कर दिया। जब गुणमालाने सुन्दर कुमारको देखा, नहीं देखेगी, जब तक कि यह जीवक उसके पास तब वह उसपर आसक्त हो गई। यह बात उसके जाकर विवाहके लिए प्रार्थना नहीं करेगा । जब कि माता पिताको विदित हुई, उन्होंने जीवकके साथ सुरमंजरीने इस वसन्तोत्सवमें भाग नहीं लिया, तब गुणमालाके विवाहका निश्चय किया और वह सविधि अपने पक्षमे प्राप्त निर्णयसे उत्साहित होकर गुण- सम्पन्न हुआ। किन्तु कत्तियंगारन् नरेशको जब माला उत्सव मनानेका गई। मार्गम जाते हुए जीवकने राजकीय हाथीको दण्डित करनेकी बात विदित हुई, देखा कि कुछ ब्राहाणोंने एक कुत्तको इसलिए मार तब उसने अपने साले मदनन्के साथ अपने पुत्रोंको डाला है कि उनका भोजन इस कुत्तेने छूलिया था। इस श्रेष्ठिपुत्र जीवकको लानेके लिये भेजा। कुछ जब उसने कुत्तको मरते हुए देखा, तब उसने सैनिकोंके साथ वे कंदुक्कदनके भवनके समीप पहुँचे उस दीन पशुको सहायता पहुँचानेका प्रयत्न किया और उन्होंने उसे घेर लिया। यद्यपि जीवक उनसे और उसके कानमें पंचनमस्कार मंत्र सुनाया, ताकि युद्ध करना चाहता था, किंतु उसे गुरुको दिया गया उस पशुका आगामी जीवन विशेष उज्ज्वल हो। तद- अपना पचन स्मरण हो आया कि वह एक वर्ष नुसार वह श्वान मरकर देवलोकमे सुदजण नामका पर्यन्त चुप रहेगा और इससे वह आत्मरक्षा करने में देव हुआ। वह सुदजणदेव तत्काल ही जीवकके असमर्थ रहा। इस प्रकारके संकटमें उसने अपने पास अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिये आया और मित्र सुदणदेवको स्मरण किया, जिसने तत्काल ही उसकी सेवा करने के लिये अपनी इच्छा व्यक्त की। आँधी और वर्षा द्वारा उसके शत्रुओंमें गड़बड़ी किन्तु जीवकने यह कहकर उसे लौटा दिया कि जब पैदा करदी। इस गड़बड़ीकी अवस्थामें सुजणदेव मुझे आवश्यकता होगी, तब मैं तुम्हें बुलालूंगा। उसे उठाकर अपने स्थानपर लेगया। अपनी घबराहट ज्योंही उसने देवको विदा किया, उसे एक भयंकर में जीवकको न पाकर राजकर्मचारियोंने किसी दूसरेके दृश्य दिखाई पड़ा। राजाका हाथी अपने स्थानसे प्राण ले लिए और यह बात राजाको बताई कि वे भाग निकला और वसन्तोत्सव मनाकर उद्यानसं जीवकको जीवित नहीं ला सके, कारण तूफानके अपने अपने घरोंको वापिस जाते हुए लोगोंकी ओर द्वारा बहुत गड़बड़ी मच गई थी, अतएव उन्हें उसको दौड़ा। इतनमें ही उसने अपनी संविकाओं सहित मार डालना पड़ा। इस परिणामको ज्ञातकर राजा गुणमालाको घरकी तरफ जाते हुए देखा । उस उन्मत्त बहुत प्रसन्न हुआ और उसने उन्हें खूब पुरस्कार गजको देखकर वे सबकी सब घबरा गई थीं । जीवक प्रदान किया।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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