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अनेकान्त
[वर्ष ४
इम प्रकार जैनी नीतिके इम चित्रमें जैनधर्मकी सारी फेरकर उन्हें नगण्य बना दिया है !! जैनियोको फिरसे अपने फिलोसोफीका मूलाधार चित्रित है । जैनी नीतिका ही दुम्रा इम आराध्य देवनाका स्मरण कराते हुए उनके जीवन में इस नाम 'अनेकान्तनोनि' है और उसे 'स्याद्वादनीति' भी कहते हैं। सन्नीतिकी प्राणप्रतिष्ठा कराने और संसारको भी इस नीति यह नीति अपने स्वरूपसे ही मौम्य, उदार. शान्तिप्रिय. विरोध का परिचय देने तथा इसकी उपयोगिता बतलानेके लिये ही का मथन करने वाली वस्तुतत्त्व की प्रकाशक और सिद्धि इस बार अनेकान्त पत्रने अपने मुखप्रष्ठ पर 'जैनी नीति' का की दाता है । ग्वेद है, जैनियोने अपने इस आराध्य देवताको यह सुन्दर भावपूर्ण चित्र धारण किया है। लोकको इससे बिल्कुल भुला दिया है और वे आज एकान्त नीतिक अनन्य मत्प्रेरणा मिले और यह उसके हितसाधन में सहायक होवे, उपासक बने हुए हैं ! उसीका परिणाम उनका मौजदा ऐसी शुभ भावना है। मर्वतोमरवी पतन है, जिमने उनकी मारी विशेषताअोपर पानी
मम्पादक
अनेकान्तके सहायक
जिन सज्जनाने अनेकान्तकी ठाम मेवाओं के प्रति अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए, उसे घाटेकी चिन्सासे मुक्त रहकर निराकुलतापूर्वक अपने कार्य प्रगति करने और अधिकाधिकरूपस समाजसेवामें अग्रसर हानक लिय सहायताका वचन दिया है और इस प्रकार अनेकान्तकी सहायकश्रेणीम अपना नाम लिग्वाकर अनेरान्तके संचालकों को प्रोत्साहित किया है उनके शुभ नाम महायताकी रकम - महित इस प्रकार हैं:
५२५) बा० छोटेलालजी जैन गईम, कलकत्ता । १०१) बा० अजितप्रस दर्जा जैन, एडवोकेट, लग्वनऊ । १००) साहू श्रेयांमप्रमादजी जैन, लाहौर । १००) माह शान्तिप्रसादजी जैन, डालमियानगर । १००) ला० तनसुम्बगयजी जैन, न्यू देहली। १००) बा० लालचन्दजी जैन, एडवोकेट, रोहतक । १००) बा० जयभगवानजी वकील और उनकी मार्फत, पानीपत । ५०) ला० दलीपसिंहजी काग़जी और उनकी मार्फत, देहली। २५) पं० नाथूरामजी प्रेमी, बम्बई ।। २५) ला० रूड़ामल जी जैन, शामियाने वाले सहा नपुर ।
आशा है अनेकान्तके प्रेमी दूसरे सज्जन भी आपका अनुकरण करेंगे और शीघ्र ही सहायकस्कीमको सफल बनानमें अपना पूरा सहयोग प्रदान करके यशक भागी बनेंगे।
व्यवस्थापक 'अनेकान्त'
वीरसंवामन्दिर, सरसावा