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रियोंके हृदयोंको सान्त्वनात्मक शब्द और अमर श्राशा, बालकके मुकुलित-मुखको निरख निरख, सन्तोष प्रकट करते रहे !···लेकिन जब जीवन- नाटकके अन्त होनेका समय श्रा पहुँचा, तब किसीकी एक न चली ! और
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और ड्राप-सीन होकर ही रहा ! अपने विश्व के ज्ञाता भित्रग्वरोंकी चेष्टाएँ, बहुमूल्य, दुर्लभ प्राप्य श्रौषधियोंकी रामबाणकी तरह दुर्निवार-शक्तियां, चिताकी राखकी भांति बेकार —– निष्फल — साबित हुई !
फिर...? - विवशताका अवलम्ब !
श्रनेकान्त
दो नारी- कण्ठोंके हृदयवेधक क्रन्दनसे मदनकी चहार दीवारें निनादित होने लगीं ! प्रकम्पित होने लगा. - वायु-मण्डल !!
रौद्रताका ताण्डव !!!
लुट गया, सौभाग्य- सिन्दूर !
· १
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[ ३ ]
[वर्ष ३, किरण १
ति-परिवार यहां श्री बसा है ! कुछ दिन हुए तभी ! ये दोनों स्त्रियां स्वर्गीय-सेठकी सहधर्मणी हैं । बालक पर अब तक दोनोंकी समान ममता दिखलाई देती रही है। पता नहीं, यथार्थ में माँ कौन है - इस सुन्दर बालक की...?..."
इस पर
'मेरा पुत्र है !' 'नहीं, मेरा है !"
पंचगण दंग !... विस्मित !! श्राश्चर्यान्वित !!!... क्या निर्णय दें ?
इन सबके इतिहास से अनभिज्ञ ! वह इतना ही जानते हैं - 'जाने कहांसे श्राकर यह छोटा-सा स-विभू
प्रजाके माननीय - प्रतिनिधियोंने राज- सत्ताका भय दिखलानेका रूपक बांधते हुए कहा - 'एक पुत्रकी दो माताएँ नहीं हो सकतीं ! अवश्य ही,तुम दोनोंमें से एक का कहना गलत है ! शायद तुम नहीं जानतीं कि, इस प्रकार जिम्मेदारी कार्यमें झूठ बोलना तुम्हारे लिये कितना हानिकारक हो सकता है ! बात अभी पंचायत के अधिकार में है, जो प्रत्येक तरह की सहानुभूति तुम लोगों को दे सकती है ! और अगर पंचायत इस उल
नको नहीं निपटा सकती तो उसका अर्थ-झगड़ेका दर्बार में पहुँचना और मिथ्याभाषिणीको कष्ट मिलना होता है ! ... सोचलो एकबार ! खुला सत्य है— यह ।'
'पुत्र मेरा है । इसे मिथ्या नहीं ठहराया जा सकता' मुदत्ताने दृढ स्वर में कहा ।
तीसरे दिन
पंचायत के सामने एक नई समस्या थी, नया मज़मून !.......
'गलत ! झूठ कह रही है-बहिन ! पुत्रकी माँ, मैं हूँ ! पुत्र मेरा है !' वसुमित्राने कम्पितकहा गया- 'जिसका यह पुत्र है, वही सेठजीकी स्वरमें व्यक्त किया !..मुंह पर थी अमर - उदासी ! अपार- विभुतिकी स्वामिनी है !"
'प्रमाण – सुबूत ? - पूछा गया ।
'सुबूत ?' - वसुमित्रा सोचमें पड़ गई ! बोली'सत्यके लिये भी सुबूतकी जरूरत होती है— भाई ? ... माँ, अपने पुत्रको कह सकने भरका अधिकार नहीं रखती ? - उसके लिए भी सुबूत चाहिए ? यही सुबूत १ है कि यह मेरा पुत्र है, मेरा ही लाल है !'
... पलंग पर पड़ा बालक शिशु जात कल्पनाओं के साथ खेल रहा था ! विकार वर्जित मुखपर खेल रही