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________________ -- -- - - - मातृत्व ८ भगवत जैन! - - -- -- PuwaunuAmruarMumruary । 'फूलों की कोमलतामें, ज्योत्स्ना की स्निग्धताके भीतर और प्रकृतिके सु-विस्तृत-अंचलमें र 5 मिलती है मातृत्वकी हृदय-इष्टभावना' ! 'अ-कपट-प्रेम और आत्मीयताके पवित्र-बन्धनोंसे अलंकृत रहता है-मातृत्व !' . ' जिसे समग्र-संसारकी निधियों भी नहीं खरीद सकती ! जो अमूल्यतासे ध्रुव सम्बन्ध रखता है ........... NLINLIN.NLINLM.NLINLITLINI समृद्धिकी गोदमें बैठे हुये इस छोटेसे परिवारको उर्लभ दृष्टान्तोंमें उसे कहना चाहिए-नमूना! इसीकी आवश्यकता थी कि, तमसान्वित-भवन श्रालो जैसी कि प्रायः देखने-सुनने में नहीं आती, कित हो ! सुघड़, दृष्टि-प्रिय वल्लरी सफल, स-पुष्प हो! यह वैसी ही बात थी !...... और वह हो सकता था एक पुत्र-रखकी प्राप्तिके द्वारा वसुदत्ता थी बड़ी, और वसुमित्रा थी छोटी । दोनों ही!... बालकका जन्मोत्सव एक महान् त्रुटि की पूर्ति के में अपार-स्नेह,अगाध-प्रेम ! और दोनों ही अनिंद्य सुन्दरी, रूपमें मनाया गया ! न बड़ी कम, न छोटी ज्यादह ! उज्वल-भविष्यका क्रान्तिमय-पिण्ड-सा, घह सुको. पणिक-वर समुद्रदत्त अपनी दोनों स्त्रियोंकी हार्दि- मल-शिशु ! ऐसा लगता, जैसे परिवार के अपरिमितकता पर अतीव प्रसन्न ! घरमें स्वर्ग-सुख ! मनोमालि- हर्षका साकार केन्द्र-स्थल हो ! या-हो तीनों अधिकारी न्य, ईर्षा, देष और स्वभावतः होने वाला गृह-कलह संरक्षोंके मोदमय जीवनका प्रथम-अध्याय ! दिन-कानाममात्रको भी नहीं ! इससे अधिक चाहिए भी क्या ? दिन बीत जाता, रातके दो-दो पहर निकल जाते; तब फिर पति-प्रेम भी न्याय--संगत-दोनोंको बराबर बरा- भी वह बच्चेको खिलाते, चुमकाग्ने और आनन्द लेते पर मास था! दिग्वलाई देते ! परीक्षा के लिए बैठे विद्यार्थीकी भांति दिन आनन्दमें बीतते गए। जैसे वह अध्ययनमें संलग्न हो ! और बार-बार फेल . इसी समय वसुमित्राको प्रसूति हुई । मरुभूमिमें होनेके बाद, मिला हो परीक्षार्थियोंकी पंक्ति में बैठनेका से हरियाली पनपी ! चिर-पिपासित नेत्रों की तषा अवसर !... रामन होने को आई ! देखा-नवनीत-सा, बालक ! इसके बाद भी-ममुद्रदत्तको एक बात और देखने चांद-सा सुन्दर,चांदनी-सा पाहादकर! सारा घर प्रसन्न- को मिली, जो उनके लिए असीम अानन्द-दायक थी! तामें बने उतराने लगा ! और दूसरे लोगोंके लिए विस्मय-जनक ! वह यह कि
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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