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. अनेकान्त
[वर्ष ३, किरण १
मेतार्य मुनिकी कथा श्वेताम्बर सम्प्रदायमें बहुत आराधनाको ६६५ और ६६६ नम्बरकी गाथायें प्रसिद्ध है। वे एक चाण्डालिनीके लड़के थे परन्तु भी दिगम्बर सम्प्रदायके साथ मेल नहीं खाती हैं । किसी सेठके घर पले थे । अत्यन्त दयाशील थे । एक दिन उनका अभिप्राय यह है कि लन्धियुक्त और मायावे एक सुनारके यहाँ भिक्षाके लिए गये । उसने उसी चाररहित चार मुनि ग्लानिरहित होकर दपकके योग्य समय सोनेके जौ बनाकर रखे थे। वह भिक्षा लानेके निर्दोष भोजन और पानक (पेय) लावें । इसपर पं०सदालिए भीतर गया और मुनि वहीं खड़े रहे जहाँ जो सुख जीने आपत्ति की है और लिखा है कि “यह भोजन रक्खे थे। इतनेमें एक क्रौंच पक्षीने श्राकर वे जौ चुग लानेकी बात प्रमाणरूप नहीं है।" इसी तरह 'सेजोगालिये । सुनारको सन्देह हुआ कि मुनिने ही जौ चुरा लिये सणिसेजार' आदि गाथापर (जो मूलाचारमें भी हैं । मुनिने पक्षीको चुगते तो देख लिया था परन्तु कहा है ) कविवर वृन्दावनदासजीको शंका हुई थी और नहीं । यदि कह देते तो सुनार उसे मार डालता और उसका समाधान करने के लिए दीवान अमरचन्दजीको जो निकाल लेता । सुनारने सन्देह हो जानेसे मुनिको पत्र लिखा था । दीवानजीने उत्तर दिया था कि "इसमें बहुत कष्ट दिया और अन्तमें भीगे चमड़े कस दिया वैयावृत्ति करने वाला मुनि आहार आदिसे मुनिका उपजिससे उनकाशरीरान्त होगया और उन्होंने केवल शान कार करे; परन्तु यह स्पष्ट नहीं किया है कि आहार प्राप्त किया । मेरी समझमें यह कथा दिगम्बर सम्प्रदायमें स्वयं हाथसे बनाकर दे । मुनिकी ऐसी चर्या आचाहो भी नहीं सकती।
रांगमें नहीं बतलाई है। दश स्थितिकल्पोंके नामवाली गाथा जिसकी आराधनाका चालीसवाँ 'विजहना' नामका टीकामे अपराजितसूरिको यापनीय संघ मिद्ध किया अधिकार भी विलक्षण और दिगम्बर सम्प्रदायके लिए
गया है, जीतकल्प-भाष्यको १९७२ नं० की गाथा अभूतपूर्व है, जिसमें मुनिके मृत शरीरको रात्रि भर . है । श्वेताम्बर सम्प्रदायकी अन्य टीकात्रों और निर्य- जागरण करके रखनेकी और दूसरे दिन किसी अच्छे क्तियोंमें भी यह मिलती है और प्राचार्य प्रभाचन्द्रने स्थानमें वैसे ही (बिना जलाये) छोड़ पाने की विधि अपने प्रमेयकमलमार्तण्डके स्त्री-मुक्ति-विचार (नया
-तारिजणा मत्तं (पाणं) उपकप्पंति भगिनाएडीशन पृ० ३३१ ) प्रकरणमें इसका उल्लेख श्वे.
गए पाउग्गं। ताम्बर सिद्धान्तके रूपमें ही किया है
इंडियमवगददोस प्रमाइणो नदिसंपणा ॥ -"नाचालेक्यं नेष्यते (अपि तु ईध्यते व) 'मा.
२-सेजोगासणिज्जा तहो उवहिपरिखिहणचेलककुरेसिय सेज्जाहर रायपिंडकियिकम्मे' इत्या
हि उबगाहो। देः पुरुष प्रति दशविधस्य स्थितिकल्पस्य मध्ये
-मूलाचार " तदुपदेशात् ।"
माहारोसयभोषयविकिस वंदवादीवं । -रेखो भावरपक-नियुक्ति गाथा ८६०-७० ।
-भगवती भाराधना ३.. चारणालिनीके सबकेका मुनि होना भी शायद ।-देखो म. पा. परविकाकी भूमिका पृड विगम्बर-सम्मायके मामला नहीं है।
और ३।