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________________ कार्तिक धीर निर्वाण सं०२४१५] यापनीय साहित्यकी खोज नन्दि गणिके चरणोंसे अच्छी तरह सूत्र और उनका होती है कि पूर्वाचार्योंकी रची हुई गाथायें उनकी उपअर्थ समझकर और पूर्वाचार्योंकी रचनाको उपजीव्य जीव्य है। बनाकर 'पाणितलभोजी' शिवार्यने यह आराधना रची' जिन तीन गुरुओंके चरणोंमें बैठकर उन्होंने भाराहम लोगोंके लिये प्रायः ये सभी नाम अपरिचित धना रची है उनमें से 'सर्वगुप्त गणि' शायद वही । हैं । अपराजितसूरिकी परम्पराके समान यह जिनके विषयमें शाकटायनकी अमोघवृत्तिमें लिखा है कि परम्परा भी दिगम्बर सम्प्रदायकी पहावली या "उपसर्वगुसं व्याख्यातारः" १-३-१०४ । अर्थात् गुर्वावली श्रादिमें नहीं मिलती। शिवकोटि और शिवा- सारे व्याख्याता या टीकाकार सर्वगुप्त से नीचे है । र्य एक ही हैं जो स्वामि समन्तभद्रके शिष्य थे, इस चूंकि शाकटायन यापनीय संघके थे इसलिए विशेष धारणाके सही होनेका भी कोई पुष्ट और निर्धान्त सम्भव यही है कि सर्वगुप्त यापनीय संघके ही सूत्रों प्रमाण अभी तक नहीं मिला है । जो कुछ प्रमाण इस या आगमोंके व्याख्याता होंगे। मम्बन्धमें दिये जाते हैं, वह बहुत पीछेके गढ़े हुए शिवार्यने अपनेको "पाणितलभोजी" अर्थात् मालूम होते हैं । स्वयं शिवार्य ही यह स्वीकार नहीं हाथोंमें ग्रास लेकर भोजन करनेवाला कहा है। यह करने कि मैं समन्तभद्रका शिष्य हूँ। विशेषण उन्होंने अपनेको श्वेताम्बर सम्प्रदायसे अलग अपराजितसूरि यदि यापनीय संघके थे तो अधिक प्रकट करनेके लिए दिया है । यापनीय साधु हाथ पर सम्भावना यही है कि उन्होंने अपने ही सम्प्रदायके हो भोजन करते थे। ग्रन्थकी टीका की होगी। श्राराधनाकी ११३२ वीं गाथामें भेदस्स मुणिस्स अाराधनाकी गाथायें काफी तादादमें श्वेताम्बर अक्खणं' ( मेतार्यमुनेराख्यानम्) अर्थात् मेतार्य मुनिसूत्रोंमें मिलती हैं, इससे शिवार्यकेइस कथनकी पुष्टि की कथाका उल्लेख किया है जहाँ तक हम जानते हैं 1-प्रज्जजिणांदिगविमग्नमित्तणंदी। दिगम्बर साहित्यमें कहीं यह कथा नहीं मिलती है । भवगमियपायमूले सम्म सुतंच पत्थं च ॥१ यही कारण है कि पं० सदासुखजीने अपनी वचनिकापुवायरियविवदा उपजीवित्ता इमा ससत्तीए। में इस पदका अर्थ ही नहीं किया है। यही हाल भाराहणा सिवओण पाणिवबमोइणा रहदा ॥ पं०जिनदास शास्त्रीका भी है । संस्कृतटीकाकार पं० अाशाधरजीने तो इस गाथाकी टीका इमलिए विशेष नहीं २-पापनीय संघ मुनियोंमें कीर्तिनामान्त अधिः की है कि यह सुगम है परन्तु प्राचार्य अमितगतिने पतासे है पाल्पकीर्ति, रविकीर्ति, विजयकीर्ति, . इसका संस्कृतानुवाद करना क्यों छोड़ दिया ! धर्मकीर्ति, भादि नन्दि, चन्द्र, गुप्त नामान्त भी है । जैसे-जिननन्दि, मित्रनन्दि, सर्वगुप्त, मागचन्द, नेमिचन्न -भगवती माराधना पनिकाके पन्समें उन धादि नामोंसे किसी संघका निश्चयपूर्वक नियंय नहीं गायामोंकी एक सूची दीजो भूवाचार और भाराष. हो सकता है। मामें एक्सी है और पं.सुखवाबजी हारा सम्पादित पंच ३-ऐजो भगवती चाराधना पनिकाकी भूमिका प्रतिकमय सूत्र में मूलाचारकी ग्न गाथाओंकी सीबी पृ.३-। गो भागात 'पावरपकनिषु'कि' में भी है।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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