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अनेकान्स
[ आश्विन, वीर निर्वाण सं०२४५६
पांच नियम हैं, और जो गृहस्थ तथा मुनियोंके सुगंधित काष्ट, चन्दन तथा मधुके सुगन्धपूर्ण लिए आवश्यक हैं। ये अहिंसा, अस्तेय, सत्य, संग्रहको घोषित करता है। ग्रन्थकं इस नामकरणका ब्रह्मचर्य तथा परिमित परिप्रह कहे जाते हैं । ये कारण यह है कि इसके प्रत्येक पद्य में ऐसे ही सुरसदाचार-सम्बन्धी पंचव्रत कहे जाते हैं,और अरने- भिपूर्ण पाँच विषयोंका वर्णन है । इम ग्रन्थका मूल रिचारम् नामक ग्रन्थमें इनका वर्णन है। जैन है । प्रन्थकारका नाम कणिमेडैयार है जिनकी
२. पलमोलि अथवा सूक्तिएँ-इसके रचयिता विद्वत्ता सबके द्वारा प्रशंमित है । यह संगम साहिमुनरुनैयार-भरैयनार नामक जैन हैं। इसमें नाल- त्यकं अष्टादश लघुग्रंथों में अन्यतम है। लेखकके दियारके समान वेणवा वृत्तमें ४०० पद्य हैं । इममें सम्बन्धमें केवल इनना ही मालूम है कि वह माकाबहुमूल्य पुरातन सूक्तियां हैं, जो न केवल सदाचार यनारका शिष्य तथा तामिलाशिरियरका पुत्र हे,जो के नियम ही बताती हैं बल्कि बहुत अंशमं मदुरा संगमके सदस्य थे । साधारणतया वे ग्रंथ लौकिक बुद्धित्तासे परिपूर्ण हैं। तामिलके नीति- यद्यपि उन अष्टादशलघग्रन्थों में शामिल किए जाते हैं विषयक अष्टादश ग्रन्थों में कुरल, नालदियारकं किन्तु इसका यह अर्थ नहीं है, कि वे उमी शताब्दी बाद इसका तीसरा नंबर है।।
के हैं। ये अनेक शताब्दियोंक होने चाहिएँ । हम ३. इस अष्टादश प्रथ-समुदायमें सम्मिलित कुछ दृढ़ताके साथ इतना ही कह सकते हैं, कि ये "तिनैमालैनरैम्वतु" नामका एक और प्रन्थ हैं दक्षिण भारतमें हिन्दूधर्मके पुनरुद्धार कालके जिसका रचयिता है कणिमेदैयार । यह जैन पूर्ववर्ती हैं । अत: इनका ममय सातवीं सदीक लेखक भी संगमके कवियोंमे अन्यतम हैं । यह पूर्वका होना चाहिए । प्रन्थ श्रृंगार तथा युद्ध के सिद्धान्तोंका वर्णन अब हम काव्य-साहित्यका वर्णन करेंगे। महाकरता है तथा पश्चातवर्ती महान् टीकाकारोंक काव्य और लघुकाव्यक भेदस काव्य-साहित्य दो द्वारा इस ग्रंथके अवतरण बखूबी लिए जाते प्रकारका है । महाकाव्य संख्यामें पांच हैं-चितारहे हैं। नचिनार्जिनियार तथा अन्य प्रन्थकारोंने मणि, शिलप्पडिकारममणिमेखले, वलयापति और इस ग्रन्थक अवतरण दिए हैं।
कुंडलकेशि । इन पांच काव्योंमें चिंतामणि,सिलप्प___ ४.इस समुदायका एक प्रन्थ 'नानमणिकांडगे' डिकारम, और वलैतापति तो जैन लेखकोंकी कृति अर्थात् रस्नचतुष्टय-प्रापक है । इसके लेखक जैन हैं और शेष दो बौद्ध विद्वानोंकी कृति हैं। इन पांच विद्वान विलम्बिनथर हैं। यह वेण्बा छन्दमें है, मेंस केवल तीन ही अब उपलब्ध होते हैं; कारण जो अन्य ग्रन्थों में प्रसिद्ध है । प्रत्येक पद्य में रत्नतुल्य वलैगपति तथा कुंडलकेशि तो इस जगतसे लुप्त सदाचारके नियम चतुष्टयका वर्णन है और इमीसे हो गए हैं । टीकाकारों द्वारा इधर-उधर उद्धृत इसका नाम नानमणिकडिगे है।
कतिपय पद्योंके सिवाय इन ग्रंथोंके सम्बन्ध में कुछ ५.इसके बाद एलाति तथा दूसरे ग्रंथ भाते हैं भी विदित नहीं है । प्रकीर्णक रूपमें प्राप्त कतिपय एनाति शब्द इलायची, कपूर, ईरीकारसू नामक पद्योंसे यह स्पष्ट है कि 'वलयापति' जैन ग्रन्थकार