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वर, किक्षा]
श्रीमद्रास्वामी
पुरा प्रन्थ कोई रचे (बनावे ) और बीचमें ऋषिभाषित नियुक्ति प्रकरण अन्य जोड़े तथा उसके लिये उल्लेख तीसरा ८ पिंड व्यक्ति करे तो यह क्या सम्भवित मालूम होता ९ोष , है ? इसलिये मेरी धारणाकं अनुमार तो मूल ग्रंथ १० समक्त ,
और उसकी अन्य गाथा तक स्थविरावली यह सब नियुक्ति तथैव मूल ग्रन्थ भी खुदके बनाये हुएहैंएक ही व्यक्ति (दूमरे भद्रबाहु ) की रचना है। ११ बृहत्कल्प !
प्रन्थकार उपयुक्त गाथा लिखकर पट्टावलीको १२ व्यवहार समाप्ति करता है, इस कारण वह स्वयं श्रीदेवर्द्धि- १३ दशाश्रुतस्कंध x गणि क्षमाश्रमणका शिष्य है, सतानीय है या अन्य १४ भद्रबाहुसंहिता वशका है, इसके लिये अधिक ऊहापोह करनेकी १५ प्रहशान्ति स्तोत्र आवश्यकता है।
१६ उवसग्गहरं स्तोत्र के इनके रचे हुए ग्रन्थ
• इस समय उपलब्ध नहीं । १ आचारांग नियुक्ति
+ येनैषा पिण्डनियुक्तियुक्तिरम्याविनिर्मिता। २ सूत्रकृतांग ,
द्वादशांगविदेतस्मै नमःश्रीभद्रबाहवे ॥ ३ दशवकालिक ,,
-मलयगिरि, पि.नि.व. ४ उत्तराध्ययन,
* श्रीकल्पसूत्रममृत विबुधोपभोगयोग्यं५ आवश्यक ,
जरामरणदारुण दुःखहारि। ६ सूर्यप्राप्त ,
येनोद्धृतमतिमतामथितात् श्रुताब्धेः अपनी रची हुई नियुक्तियों के नाम ग्रन्थकार श्रीभद्रबाहुगुरवे प्रणतोऽस्म तस्मै । स्वय इसप्रकार बतलाते हैं
-क्षेमकीर्ति वृहत्कल्पका आवस्सय दसकालियस्स तह उत्तरज्झमायारे । हाल में जो मंगलके निमित्तपषण पर्वमें पांच सुयगडे निज्जुत्ति वोच्छामि तहा दसाणं च ॥ जाता है वह कल्पसूत्र इस ग्रन्थका पाठवा अध्ययन है, कप्पस्स य निज्जुत्ति ववहारस्स य परमणिउस्स। इस विषयमें निश्चित प्रमाण नहीं। सूरियपन्न तीए वोच्छ इसिभासियाण च ॥
तथान्यां भगश्चिके सहितो भद्रबाहवीम् । आवश्यक निगा०८२,८३ इत्यादि कथन होनेसे इन्होंने स्पष्ट संहिता रची है यह + यह नियुक्ति इस समय उपलब्ध नहीं । देखो, ठीक, परन्तु हाल में जो भद्रबाहुसंहिता नामकी पुस्तक निम्नलिखित उल्लेख
छपी है वह इन भद्रबाहुकी बनाई हुई नहीं है। अस्या नियुक्तिरभूत् पूर्व श्रीभद्रबाहुसूरिकृता। यह ग्रंथ संस्कृत पद्यबद्ध है, इसका त्रुटित कलिदोषात् साउनेशत् ब्याचक्षे केवलं सूत्रम् ॥ भाग हमारे देखनेमें पाया है, सम्पूर्ण ग्रन्थ कितने
मलयगिरि -सुर्यप्रचप्ति। श्लोकप्रमाण होगा यह नहीं कहा जा सकता।