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[पारिवन, बीर निर्माण सं०२४॥
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नियुकिकी २३० वी गाथामें भी वनस्वामीका. चौदस सोलसवासा चोदसवीसुत्तरा य दुरिणसया ।
और २३२ वी गाथामें अनुयोगपृथकरणसम्बन्धमें अट्ठावीसा य दुवे पचेव सया य चोप्राला ॥ २३६ ।। भार्यरक्षितका उल्लेख आता है । पचे सया चुलसीओ छच्चेव सया नवुत्तरा हुंति । ___ इसके बाद निन्हवपरक वणन करते हुए नाणुप्पत्तीए दुवे उप्पना निबुए सेसा ॥ २४०॥ महावीर निर्वाणमे ४०९ वर्ष पीछे बोटिक ( दिग
-गाथा इत्यादि म्बर) मतकी उत्पत्ति बतलाई है। वह इस प्रकार अर्थ-(१) भगवान महावीरको केवलज्ञान
उत्पन्न होनसे १४वर्ष पीछे श्रावस्ती नगरी जमालो बहुरय पएस अब्वत्त सामुच्छा दुग तिगे अबद्धियाँ वेव। प्राचार्य पे बहुरत निन्हव हुा । (२ ) भगवानकी एएसि निग्गमणं वोच्छ अहाणुपुञ्चीए ।। २३५ ॥ ज्ञानोत्पत्ति के पश्चात १६३ वर्षे ऋषभपुर नगरमें बहुरय जमालिपभवा जीवपएसा य तीसगुताओ। तिष्यगुप्त आचार्यमे छेल्ला प्रदेशमें जीवत्व मानने अव्वत्तासाढ़ामो सामुच्छे अस्समिताभो ॥ २३६॥ वाला निन्हव हुमा । (३) भगवान के निर्वाण के गंगाओ दोकिरिया छल्लुग्ग तेरासियाण उप्पत्ती। २१४ वर्ष पीछे श्वेताम्बिका नगरीमें आषाढाचार्यसे थेराय गोठ्ठमाहिल पुट्ठमबद्धं परूविति ॥ २३७ ॥ अव्यक्तवादी निन्हव हुपा । (४) भगवानके सावत्थी उसमपुर सेयंबिया मिहिल उल्लुग्गतीरं । निर्वाणक २२० वर्ष पीछे मिथिला नगरीमें अश्वपुरिमंतरजिया दसरह वीरपुर च नयराई ॥२२॥ मित्राचार्य सामुच्छेदिक निन्हव हुआ ।(५)
निर्वाणमे २२८ वष में उल्लुकाके तट पर गंगाचार्यसे • वीर निर्वाण संवत् ४६६ (विक्रम सं० २६)
द्विक्रिय निन्हव हुआ ।(६) निर्वाणम ५४४ वर्ष में वज्रका जन्म, वीर नि० सं० ५०४ (वि० सं०
पीछे अंतरंजिका नगरीम षडल काचार्यमे त्रैगशिक ३४ ) में दीक्षा, वी० निर्वाण सं० ५४८ ( वि० सं०
निन्हव हुआ। ( ७ ) निर्वाण । ५८५ वर्ष पीछे ७८ ) में युगप्रधानपद और वी. नि० स० ५८४
दशपुर नगरमें स्पृष्टकर्मक प्ररूपक स्थविर गोष्ठा(वि० सं० ११४ में स्वर्गवास हुआ था।
माहिलमं अद्धिक निन्हव हुआ । (८) और वीर नि० सं० ५२२ ( वि० स० ५२ ) में जन्म, आठवां बोटिक (दिगम्बर) निन्हव रथवीरपुर वीर नि० सं० ५४४ (वि० स०७४ ) मे दीक्षा, वीर नगर में भगवान के निर्वाण ६०९ वर्ष पीछे हमा। नि० सं० ५८४,-(वि० स० ११४ में युग प्रधानपद इस प्रकार भगवानकं कंवलज्ञान उत्पन्न होने के
और वी० नि० स० ५६७ (वि० स १२७ ) में स्वर्गस्थ पीछे दो, और निर्वाण पीछे छह ऐमे आठ हुए थे। माथरी वाचनानुमार वी० नि० सं० ५८४ में निन्हव हुए। स्वर्गवास माना जाता है।
___इससे भी नियंक्तिकार भद्रबाहुस्वामीकं पंचम* आगमोदय समितिद्वारा मलयगिरिकृत टीका- भूतकेवलीमे भिन्न होनेका निश्चय होता है, क्योंसहित मुद्रित प्रतिमें ये गाथाएँ क्रमशः ७६६, ७७३ नं० कि पूर्व समयमें हुआ व्यक्ति भविष्यमें होने वालेके पर पाई जाती।
--अनुवादक वास्ते 'अमुक वर्ष अमुक हुआ' ऐसा प्रयोग नहीं