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________________ अनेकान्त वीर निर्वावसं.२५ यदि उस समय उनकी उम्र १५-१६ वर्षकी रही हो काव्यमर्मत्रताको प्रकट करती है। इसीके समयमें तो उनका जन्म वि० सं० १२३५ के पासपास महाकवि मदनकी 'पारिजातमंजरी' नाटिका हुमा होगा। उनका अन्तिम उपलब्ध प्रन्य (अन- बसन्तोत्सवके मौके पर खेली गई थी। इसीके गार-धर्म-टीका) वि० सं० १३०० का है। उसके राज्य-कालमें पं० पाशाधर नालछामें जाकर रहे बाद वे और कब तक जीवित रहे, यह पता नहीं। थे। इसके समयमें तीन दान-पत्र मिले हैं। एक फिर भी निदान ६५ वर्षकी उम्र तो उन्होंने अवश्य मांडूमें वि०सं०१२६० का,दूसरा भरोंच में १२७० का पाई थी और उनके पिता तो उनसे भी अधिक और तीसरा मान्धातामें १२७२ का । इसने दीर्घजीवि रहे। गुजरातनरेश जयसिंहको हराया था।। अपने समयमें उन्होंने धाराके सिंहासन पर देवपाल-अर्जुनवर्माके निस्संतान मरने पर पांच राजाओंको देखा यह गद्दी पर बैठा। इसकी उपाधि साहसमल्ल थी । इसके समयकं सं० १२७५, १२८६ और समकालीन राजा १२८९ के तीन शिलालेख और १२८२ का एक विन्ध्यवर्मा-जिस समयमें वे धारामें पाये दानपत्र मिला है। इसीके राज्यकालमें वि० सं० उस समय यही राजा थे ।ये बड़े वीर और १२८५ में जिनयज्ञ-कल्पको रचना हुई थी। विद्यारसिक थे। कुछ विद्वानोंने इनका समय वि० ५ जैतुगिदेव-(जयसिंह द्वितीय) यह देवपाल सं० १२१७ से १२३७ तक माना है। परन्तु हमारी का पुत्र था। इसके समयके १३१२ और १३१४ के समझमें वे १२४६ तक अवश्य ही राज्यासीन रहे दो शिलालेल मिले हैं। पं० आशाधरने इसीके हैं जब कि शहाबुद्दीन गोरीके त्राससे पण्डित राज्य-कालमें १२९२ में त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्र १२९६ में आशाधरका परिवार धारामें भाया था। अपनी सागारधर्मामृत-टीका और १३०० में अनगारधर्माप्रशस्तिमें इसका उन्होंने स्पष्ट उल्लेख किया है। मृत-टोका लिखी। सुभटवर्मा यह विन्ध्यवर्माका पुत्र था और बड़ा वीर था । इसे सोहड़ भी कहते हैं । इसका प्रन्थ-रचना राज्यकाल वि० सं १२३७ से १२६७ तक माना वि० सं० १३०० तक पं०आशाधरजीने जितने जाता है। परन्तु वह १२४९ के बाद १५६७ तक प्रन्थोंकी रचना की उनका विवरण नीचे दिया होना चाहिए । पण्डित आशाधरके उपलब्ध प्रन्थ जाता हैमें इस राजाका कोई उल्लेख नहीं है। अर्जुनवर्मा-यह सुभटवर्माका पुत्र था और . । प्रमेपरत्नाकर-इसे स्याद्वाद विद्याका निर्मल बड़ा विद्वान् कवि और गान-विद्यामें निपुण था। 2 " प्रसाद बतलाया है। यह गय प्रन्थ है और बीच इसकी 'अमरुशतक' पर 'रससंजीविनी' नामकी विन्ध्यवर्मा जिसकी गद्दीपर बैठा था, उस टीका बहुत प्रसिख है जो इसके पांडित्य और अजयवर्माके माई अपमीवर्माका यह पौत्र था ।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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