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________________ , किरण "] नृपतुंगका मत विचार “१५५ अन्तिम प्राश्वास तक प्रत्येक आश्वासके प्रथम नपतुंगके समयके ई. स. ८६६ के शासनसे वह पयोंमें अपने जिनदेवको अपनी उपाधि 'सरस्वती वब तक जैन नहीं हुआ इतना ही नहीं किन्तु मणिहार' नामसे ही कहा है-इत्यादि विष्णुभक्त होना चाहिये, पह बात व्यक्त होती है। उसने महाविष्णुवराज्यबोल,(महाविष्णु राज्य नृपतुंग जैन नहीं था के समान)राज्य शासन करता था ऐसा लिखा है। (१) जिनसेन तथा गुणभद्रने अपने प्रन्थोंमें जैनधर्मके द्वादश चक्रवर्तियोंमेंसे किसीकी भी नृपतुंग जैनधर्मावलंबी हुआ यह बात कही नहीं । उपमा नहीं दीक्षा गुणभद्र के उत्तरपुराणके उस एक श्लोकसे भी वह (५) अमोघवर्ष-नृपतुंग नामके बहुतसे अर्थ नहीं निकलता। राजा हो गये हैं, 'गणितसारसंग्रह' में कहा हुभा (२) दिगम्बर जैनियों के 'सेन' गणको पट्टा- नपतुंग यही होगा तो उसका जन्मधर्म एकान्तवलीमें कहे हुए प्रत्येक गुरुके सम्बन्धमें उससे पक्ष याने वैष्णव धर्म था यह बात और भी दृढ किया गया विशेष कार्यों का उल्लेख उसके नामके होती है। अन्यथा इस पक्षमें कहा हुघा वक्तव्य साथ है । उसमें जिनसेनके सम्बन्धमें इतना ही इतिहासदृष्टिसे असंगत होनेसे उस पर विश्वास कहा है नहीं किया जा सकता। धवल महाधवन-पुराणादि सकसप्रन्थकर्तारः श्री- (६) 'प्रश्नोत्तररत्नमालिका' नृपतुंगकी कृति जिनसेनाचार्याणाम्" (जै. सि भा.. I. I. 4. ३१) नहीं है, उसमें कहा हुआ "विवेकात्त्यक्तराज्येन' (३) जिनसेनने अपनी कृतियोंमें कहीं पर भी श्लोक उसकी मूल रचना नहीं है, अर्वाचीन मैं नृपतुंगका गुरु हूँ यह नहीं कहा अथवा अपने प्रक्षेप किया गया होगा अथवा उस श्लोकके वक्तव्य नामकं साथ नृपतुंगका नाम भी नहीं कहा। को सत्य समझने पर भी, उससे नृपतुंगने अपने (४) जिनसेन ई० स० ८४८ के उपरान्त विवेकसे राज्य त्याग दिया अर्थ होता है न कि नहीं होगा । नपतुंग जिनसेनसे मतान्तर हो गया जैन धर्मका अवलंबन करनेसे वैसा किया या वह हो तो उसके पहिले ही होना चाहिये; परन्तु विवेक उसे जैनधर्मसे प्राप्त हुआ यह अर्थ उदा.- श्रवणबेल्गुनका गोम्मटेश्वरप्रतिष्ठापक सर्वथा नहीं हो सकता है। चामुंडरायका प्रथम गुरु 'अतितसेनाचार्य के सम्बन्ध विष्णु अपने अनेक अवतारों में चक्रवति या यह इस पहावलीमें इस प्रकार है: बात 'श्रीमद्भागवत' इत्यादि पुराणोंसे मालूम पाती है 'दक्षिण-मथुरानगरनिवासि पत्रियवंशशिरोमणि- उदा-दशरथराम, ऋषभचक्रवर्ती, प्रथुचक्रवती, परिणत्रीलिंगकर्नाटदेशाधिपतिचामुण्डराय-प्रतिबोधक इत्यादि ) जैन धर्मके द्वादश चक्रवर्तियोंके नाम रखने बाहुबलिप्रतिबिम्ब गोम्मटस्वामिप्रतिष्टाचार्य श्रीमजितसेन. 'भजितपुराण' में करे हैं (कर्नाटककाव्यकलानिधि भट्टारकाणाम्" (०सि०भा० ... पृ. ३८) पृ. १३)
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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