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________________ व ३,किरण गोम्मटसार कर्मकाण्डकी श्रुटि पूर्ति पर विचार के चार और अपूर्वादि सपक श्रेणाके पाँच गुणस्थानों उस कृतिके सम्बन्धमें उत्पन्न होते हैं, जिनका समाधान का अभिप्राय है. जो सुमंगत बैठना है । ग्ववादि पाठ करना उसकी गाथानोंको कर्मकाण्ड में समाविष्ट कराने कर लेने नो विसंगनि उत्पन्न हो जाती है, क्योंकि की तजवाजमे पूर्व अत्यन्त आवश्यक था । हमें ऐसा अपूर्वादिका छोरकर तो खवादि पाँच गुणस्थान हो अनीन होना है कि वह 'कर्मप्रकृति' एक पीछे का संग्रह नही सकते ! है. जिसंग बहु भाग गोम्मटसारमे व कुछ गाथायें अन्य __ ३. अब हम इस विषयकी तीसरी विचारणीय बान इधर उधरमे लेकर विषयका सरल विद्यार्थी उपयोगी पर ध्यान देंगे। क्या कर्मप्रकृति ग्रंथ गोम्मटमारके परिचय करानेका प्रयत्न किया गया है। उसकी गोम्मटरचयिताका ही बनाया हुआ है ? पं० परमानन्दजीने मारके अतिरिक्त गाथाओंकी रचना शैली भादिकी सूक्ष्म इस विषय पर विशेष कोई प्रकाश डालनेकी कृपा नहीं जाँच पड़ताल में मी सम्भव है कुछ कर्तृत्वके सम्बन्धमें की । उन्होंने उस ग्रन्थ के विषयग निश्चयात्मक रूपरे सूचना मिल सके । यदि पर्याप्त पान बीनके पश्चात केवल यह कह दिया है कि "हावा मुझं प्राचार्य वह ग्रंथ सिद्धान्त चक्रवर्ती नेमिचन्द्रकी ही रचना सिद्ध नेमिचन्द्र के कमप्रकृति नामक एक दूसरे ग्रन्थका पता हो तो यह मानना पड़ेगा कि उसे प्राचार्यने कर्मकाण्ड चला है" । पर उन्होंने यह नहीं बनलाया कि इस की रचना के लिये प्रथम ढांचा रूप तैयार किया होगा। ग्रन्थके कर्तृत्वका निश्चय उन्होंने किस प्रकार, किन फिर उसकी मामान्य नाम व भेद प्रभेद भादि श्राधारों पर किया है। क्या गोम्मटपारकी अधिकाँश निर्देशक गाथाओंको छोड़ कर और उपयुक्त विषयका गाथाय नमो नम्वकर उप नमिचन्द्राचार्य रचिन कहा है विस्तार करके उन्होंने कर्मकाण्डकी रचना की होगी। या उनकी देखा हुई प्रनिग कर्ताका नाम नेमिचन्द्र दिया इस प्रकार न तो हमें कर्मकांड अधूरे व लंदरेपन हुआ है ? यदि प्रतिम कर्नाका नाम यह दिया हुआ है का अनुराव होता है. न ममे कभी उतनी गाथाओं तो क्या वे गोम्पटमारकं काये भिन्न कोई आगे पीछेके के छूट जाने व दूर पर जानेको सम्भावना जंचती है, मंग्रहकार नहीं हो सकने ? नेमिचन्द्र नामक और भी और न कमप्रतिक गांमिटमारके कर्ता द्वारा ही रचित मुनियों व प्राचार्योंका उल्लेख मिलता है। यदि वह कनि होने कोई पर्याप्त प्रमाण दृष्टि गोचर होते हैं। ऐसी गोम्मटसारकं कर्ताकी ही है तो वह अथ नक प्रसिद्धिा अवस्थाग उन गाथाओंके कर्मकांडमें शामिल कर देनका क्यों नहीं पाई ? क्या किन्ही ग्रन्थकारों या टीकाकारोंने प्रम्नाव हा बहा माहमिक प्रतीत होता है। इस ग्रंथका कोई :लेख किया है ? इस्यादि अनेक प्रश्न
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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