SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ...अनेकान्त .. [वर्ष .३, किरण करता हूँ कि जैनपत्र-संपातक और विद्वान महान प्रतिक्रमणको लक्षपूर्वक नहीं कर सकते, तो भी वे भाव इस ओर अवश्य प्रयत्न करनेकी कृपा करेंगे। केवल खाली बैठनेकी अपेक्षा, इसमें कुछ न कुछ अन्तर सम्पादकीय नोट अवश्य पड़ता है । जिन्हें सामायिक भी पूरा नहीं पाता __प्रस्तुत विषयमें लेखकमहोदय का प्रस्ताव और वे बिचारे मामायिकमें बहुन घबड़ाते हैं । बहुतसे भारीउन्होंने दो वर्ष तक पत्र-व्यवहारादिका जो परिश्रम कर्मी लोग इस अवसर पर व्यवहारके प्रपंच भी पड़ किया है वह सब निःसनेह बहुत ही समयोपगी, डालते हैं। इससे मामायिक बहुत दूषित होता है। स्तुत्व और प्रशंसनीय है । परीक्षासमितिका उसपर सामायिकका विधिपूर्वक न होना इसे बहुत खेदउपेवाभाव धारण करना अवश्य ही खेदजनक है! कारक और कर्मको बाहुल्यता ममझना चाहिए । माट मालूम नहीं उसकी हम अस्वीकृति के मूल में क्या रहस्य घड़ीके दिन गत व्यर्थ चले जाने हैं। श्रमंख्यात दिनों संनिहित है। परन्तु जहाँ तक मैं समझता है जैनसा- में परिपूर्ण अनंतों कालचक व्यतीत करने पर भी जो हित्य और उसके महत्व अनभिज्ञता ही इसका प्रधान मिद्ध नहीं होता, यह दो घड़ीके विशुद्ध सामायिकसे मिद्ध कारण जान पड़ता है। जैन विद्वानोंको स्वयं तथा हो जाना है । लक्षपूर्वक मामायिक करने के लिये सामाउम मजैन विद्वानों के द्वारा जिन्होंने जैनसाहित्यके विकमें प्रवेश करने के पश्चात् चार लोग:पमे अधिक महत्वका अनुभव किया है, परीक्षासमितिके सदस्यों लोगस्मका कायोत्सर्ग करके चित्त की कुछ स्वस्थता पर जैनदर्शन एवं जैनसाहित्यको उपयोगिता और प्राम करनी चाहिये और बाद में सूत्रपाठ अथवा किसी महत्ताको प्रकट करना चाहिये-उन ध्यान में यह जमा उत्तम ग्रंथका मनन करना चाहिये । वैराग्यके उत्तम देना चाहिये कि इस ओर उपेक्षा धारण करके वे अपने श्लोकोंको पढ़ना चाहिए, पहिलेके अध्ययन किये हुएको कर्तग्यका ठीक पालन नहीं कर रहे हैं। प्रत्युत, अपनी स्मरगा कर जाना चाहिये और ननन अभ्याम होम के को भूबसे बहुतोंको यथोचित लाभसे वंचित रख रहे हैं, करना चाहिये, तथा कितीको शास्त्रके श्राधारमं उपदेश को उनकी ऐसो सार्वजनिक संस्थाकी उदारता और दूर- देना चाहिये । हम प्रकार सामायिकका काल व्यनीन टिताके विरुद्ध है। इस प्रकारके प्रयन और यथेष्ट करना चाहिये । यदि मुनिरा का समागम हो, नी भागम भान्दोलनके द्वारा प्राशा है समिनिका ध्यान इस ओर की वासी मुनना और उसका मनन करना चाहिये। जरूर पाकृष्ट होगा और वह शीघ्रती अपनी भलको यदि एमा न हो, और शास्त्रोंका परिचय भी नहो तो 'सचाने में समर्थ हो सकेगी। बिना पान्दोलन और विचक्षण अभ्यागियों के पास वैराग्य-बोधक उपदेश प्रपत्रके कोई भी अच्छे से अच्छा कार्य सफल नहीं प्रवण करना चाहिये अथवा कुछ अभ्याम करना चाहिये हो सकता। -सम्पादक यदि ये मय अनुकूलतायें न हों, तो कुछ भाग ध्यानसामायिक-विचार पू र्वक कायोत्सर्गम लगाना चाहिये, और कुछ भाग एकाग्रता और मारपानीके बिना इन बत्ती- दोपों महापुरुषांशी चरित्र-कथा सुनने में उपयोगपर्वक लगाना मेंमें कोई न कोई दोष लग जाते हैं। विज्ञानवत्ताोंने चाहिये, परन्तु जैम बने तैस विवेक और उत्माहम मामायिकका जघन्य प्रमाण दो घड़ी बांधा है । यह व्रत . भामायिक के काल को व्यनीन करना चाहिए। यदि कुछ साबधानीपूर्वक करनेस परम शान्ति देता है। बहुतम माहित्य न हो, ना पंचपरमटी मंत्रका जाप हो उत्माहलोगोंका जब यह दो घड़ीका काल नहीं बीतता, तब वे पूर्वक करना चाहिये । परन्तु काल को व्यर्थ नहीं गंवाना बहुत व्याकुल होते हैं । मामायिकमें खाली बैठनमें चाहिये । गीर जम, शान्तिसे और यतनाम सामायिक काल बीन भी कैसे सकता है प्राधनिक कालमें माव- करना चाहिये । जैसे बने नैमें भामायिक शास्त्रका धानीमे सामायिक करने वाले बहुत ही थोड़े लग है। परिचय बढ़ाना चाहिये । जन सामायिक के माथ प्रतिक्रमण करना होता है. तब साठ घड़ीक अहोरात्रमंस दोघड़ी अवश्य बचाकर नां समय बीनना मुगम होना। यदापि ऐम पामर लोग मामायिक ती मदभाव करी! -श्रीमद्राजचन्द्र
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy