________________
वर्ष ३
ॐ म्
अनाकान
नीति-विरोध-ध्वंसी लोक-व्यवहार-वर्तकः सम्यक । परमागमस्य बीजं भुवनैकगुरुर्जयत्यने कान्तः ॥
सम्पादन-स्थान- वीरमेवामन्दिर (ममन्तभद्राश्रम), सरसावा, जि महारनपुर प्रकाशन -स्थान--- कनॉट मर्कम, पो० त्रो० न०४८, न्यू देहली भाद्रपद पूर्णिमा, वीरनिर्वाण सं० २४६६, विक्रम म०१६६७
किरण ११
वीरसेन स्मरण
शब्दब्रह्मेति शाब्दैर्गणधर मुनिरित्येव राद्धान्तविद्भिः, माक्षात्सर्वज्ञ एवेत्यवहितमनिभिः सूक्ष्मवस्तुप्रीतः ( प्रवीणैः ? ) । यां दृष्टो विश्वविद्यानिधिरिति जगति प्राप्तभट्टारखाख्यः, स श्रीमान् वीरसेनो जयति परमतध्वान्तभित्तंत्रकारः ॥
- धवला - प्रशस्ति ।
जिन्हें शाब्दिकों ( वैय्याकरणों) ने 'शब्दब्रह्मा' के रूपमें, सिद्धान्तशास्त्रियोंने 'गणधरमुनि' के रूपमें, सावधानमतियोंने 'साक्षात्सर्वज्ञ' के रूपमें और सूक्ष्मवस्तु-विज्ञोंने 'विश्वविद्यानिधि' के रूपमें देखा - अनुभव किया और जो जगतमें 'भट्टारक' नाममे प्रसिद्धिको प्राप्त हुए, वे परमताऽन्धकारको भेदने वाले शास्त्रकार-धवलादिके रचयिता - श्रीमान् वोरपेनाचार्य जयवन्त हैं -- विद्वदयों में सब प्रकार मे अपना सिक्का जमाए हुए हैं । प्रांमद्ध-सिद्धान्त गभस्तिमाली, समस्त वैय्याकरणाधिराजः । गुणाकरस्ता किंक चक्रवर्ती, प्रवादिसिहो वरवीरसेनः ।।
- धवला, सहारनपुर- प्रति, पत्र ७१८
श्री वीरमेनाचार्य प्रसिद्ध सिद्धान्तों -- खण्डागमादिकों को प्रकाशित करने वाले सूर्य थे, समस्त