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भनेकान्त
[भाषण, वीर निर्माण सं०२४१६
(=प्रभाव ) से बुदित हुई (=पैदा हुई ) वह १ उमास्वातिके 'तत्त्वार्थसूत्र' पर इस जिन 'जयधवला' 1 टीका, गुर्जर (गुजराती) नरेशके सेनके गुरु वीरसेनने 'जयघवला' नामको टीका शासनमें विद्यमान 'मटग्राम' नामके नगरमें शक लिखनी प्रारंभ की थी, जिसकी करीब २०००० सं० २९ (ई० स० ८३७-८३८) फाल्गुण श्लोकोंकी रचना करके उनके स्वर्गवासी होने शु० दशमीके दिन समाप्त हुई। पर जिनसेनने उसमें पुनः४०००० श्लोकोंको जोड़ अतः इस टीकाको समाप्त करते वक्त जिनकर ६००००श्लोकोंसे युक्त उस ग्रन्थको पूरा किया सेनकी अवस्था करीब ८४-८५ वर्षकी होनी x। उसे पूरा करनेके समय-संबन्धमें जिनसेननं चाहिये। उसके अन्तमें इस प्रकार कहा है:
२ पार्श्वभ्युदयकाव्य-यह कविकुलगुरु इति श्रीवीरसेनीया टीका सूत्रार्थदर्शिनी । कालिदासके 'मेघदूत' काव्यके ऊपर समस्यापूर्ति मट्यामपुरे श्रीमद्गुर्वरायांनुपातिते ॥
के रूपमें रचा गया एक छोटासा काव्य है। इसमें
जिनसेनने २३ वें तीर्थकर श्रीपार्श्वनाथ स्वामीकी फाल्गुने मासि पूर्वाड दशम्यां शकपडके। प्रवर्धमानपूजायां नन्दीश्वरमहोत्सवे ॥
कैवल्य-वर्णना बहुत अच्छो की है। इसमें ४ सर्ग
हैं और उनमें कुल ३६४ वृत्त हैं । न्त्यिग्रन्थमें इस अमोघवर्ष राजेन्द्रप्राज्यराज्यगुणोदया।
प्रकार कहा है:निष्टितमच्यं पायादकल्पान्तमनपिका ॥
इति विरचितमेतत्काव्यमावेष्टय मेघ । एकात्रषष्टिसमधिकससातादेषु शकनरेन्द्रस्य ।
बहुगुणमपदोषं कालिदासस्य काध्यं ॥ समतीतेषु समासा जयधवक्षा प्राभृतम्यास्या ॥1
मचिमितपरकाम्यं तिष्ठतादाशशांक । अर्थात-अमोघवर्ष नामक नरेशके प्राज्य मुवनमवतु देवस्सर्वधामोघवर्षः ॥४-०॥ (विस्तृत) राज्य (=राज्यभार) के गुण इससे यह काव्य अमोघवर्ष नामके एक
x वीरसेन तथा बिनसेनने 'जयधवला' नामकी नरेशके समयमें रचा गया मालूम पड़ता है। इस जो टीका लिखी है यह उमास्वातिक तरवार्थमन्त्री काव्यको पढ़ते वक्त मालूम पड़ता है कि इसे कवि टीका नहीं है, किन्तु श्रीगुरुचराचार्य-विरचित 'कसाय- यह 'जयधवला' टीका सिद्धान्तग्रंथ कहलाती पाहु' (पायाभूत) नामके सूत्र ग्रन्थकी टीका है। है। इसकी पूर्णप्रति भव (दक्षिण कार जिंबाके) जान पड़ता है 'सूत्रावर्शिनी' पद परसे खेखक महा- 'मूडविदरी' नामक स्थान पर 'सिद्धान्तमंदिर' में है। शयको भ्रम हुमा है और उसने 'सूत्र' शब्दका अभि- यह प्रति कुछ समयके पहिले अपयवेबगुलके सिद्धान्तपाय गलतीसे उमास्वातिका तत्वार्थस्त्र समझ लिया मंदिर में थी और वहींसे 'मूडविदरी' को ले गये, इस
-सम्पादक प्रकार प्रवणबेलगुलके शासनग्रन्थों के उपोषातमें कहा 1. सि. मा० ., . १०१२-१३
(E.C. Vol. II Introd. P.28