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________________ नपतुंगका मतविचार २०॥ विषयमें विशेष जानने वालोंमे मेरी प्रार्थना है कि of Ellora) के 'दशावतार-देवालय' के एक वे इस संबन्धमें विशेष तर्क-वितर्क करके यथार्थ शिलालेखमें गोविन्दकं पूर्वज 'दन्तिवर्म तथा बातका निश्चय करें। 'इन्द्रराज' इन दोनोंका नाम रहने से • तथा सबसे पहिले राप्रकटवंशका संक्षिप्त परिचय प्राचीन लेखमालाके लेख नं० ६, ९, १३३, और दिय बिना तथा श्रीजिनमेनाचार्य और उनका १५६ में कही हुई वशावलीमें भी उनके नाम रहनेसे समय निर्णयक संबन्ध में थोड़ा बहुत कहे बिना उस दन्तिवमसे ही वंशावलीका दिखाना योग्य आगे चलने पर समझने में दिक्कत पड़ेगी । अतः समझकर वैमा किया गया है। चूंकि इनमेंमे तीसरे इन दोनों विषयोंको पहिले कह कर पश्चात इस 'गोविन्द' नामक नरेशने (ई० सन्. ७९४-८१४) लेखक मुख्यांश पर विचार किया जाना चाहिये। 'मही' और 'तापी' (तापती) के मध्यवर्ती 'लाट' (या 'लाल' अर्थात् गुजरात ) देशको वहाँके राष्ट्रकूटवंश राजास जीतकर उसे अपने छोटे भाई ( तृतीय ) 'इन्द्र' को दे दिया और उसे वहाँका राजा नियुक्त इम वंशके बहुतस राजाओंके शामनोंसे कर दिया। इससे यह विभक्त होकर इसकी प्रधान सबम पहिले 'गोविन्द' नामक नरेश हुआ यह शाखा 'दक्षिण-राष्ट्रकूटवंश' नामसे और गौण बात मालूम पड़ने पर भी, 'एलर-गुफा (Caves शाखा 'गुजरात-राष्ट्रकूट' नामसे प्रसिद्ध हुई। दन्तिवर्म १ गोविन्द । २ कर्क (कक)। ५ कृष्ण! (कन्नर) अकालवर्ष, शुभतुंग ४दन्तिदुर्ग (अन्तिवर्म, दन्तिग, खङ्गावक्षोक, रमेध) * E. H. D. Pg. 47. बारीय मंर यस्पतब हम मिजस्वामि (निजभ्रात्रा) (प्रा.ले. मा...) माता तु तस्य (गोविन्दस्य) ".."हारानः । सास्ता बभूवादभुतकीर्तिमृतिस्तातलोटेश्वरमंडलस्य । (मा .मा. ..)
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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