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________________ ड, मापार, पीर सिंm इसीलिये अनेक विष जानने पर भी यह बतलाया नहीं यह मार्ग लक्ष्य में जरासी भान्ति होने से, जरामा जाता, अनेक प्रकार शास्त्रों के पढ़ने और मनन करनेसे प्रमाद होनेसे नीचेसे निकल जाता है। इसका पथिक भी यह दृष्टिमें नहीं आता है। इसका बोध बहुत दुर्लभ मोहके पैदा हो जानेसे प्राचारमें विषमता प्राजानेसे पथसे स्खलित हो जाता है। इस धर्मके मर्मको जाने बिना, जीवन उद्देश्यको .. धर्ममार्गपर कौन चल सकता है ? जानना, उद्देश-सिद्धिके मार्गको जानना, उत्थान उपायों " को जानना, शरीर, गृहस्थ, समाज और राष्ट्र प्रति जो निर्धान्त है, आस्तिक बुद्धि वाला है, जीवनकर्तव्यों को जानना, उनके अनुसार जीवनको बनाना. लक्ष्यको सदा दृष्टिमें रखनेवाला है, जो आध्यात्मिक नितान्त असम्भव है। जब लक्ष्यका ही पता नहीं,मंजिल जीवनको साध्य और अन्य समस्त जीवनको अर्थात् काही पता नहीं, तो मार्गका पता कैसे लग सकता है? शारीरिक, गृहस्थ सामाजिक, राष्ट्रिक, नैतिक जीवनको इसीलिए जीवनमें विविध प्रसंग प्रा पड़ने पर बहुत बार साधन मानने वाला है, जो मोक्ष पुरुषार्थको परम पुरुसाधारण जन ही नहीं बड़े बुद्धिमान भी कर्म-अकर्मके षार्थ और अन्य समस्त पुरुषार्थोंको सहायक पुरुषार्थ मामलेमें कर्तव्य विमूढ हो जाते हैं । उस वक्त यह समझने वाला है। जो समदृष्टि है, सब ही 'प्राणियोको निर्णय करना कि अमुक स्थिति में क्या करना चाहिये, अपने समान देखने वाला है जो समबुद्धि है। सब ही क्या नहीं करना चाहिये बहुत मुश्किल हो जाता है। अवस्थानोंमें एक समान रहने वाला है जो सुखके समय ___ यहाँ धर्म-तत्वको जानना दुर्लभ है, धर्म-मार्गको हर्षको और दुःखके समय विषादको पास नहीं होता निश्चित करना कठिन है, वहाँ धर्मतत्व पर श्रद्धा वह ही धर्ममार्ग पर चल सकता है। लाना, धर्म-मार्ग पर चलना और भी मुशकिल है, धर्म जो तत्व ज्ञानी है, आत्म अनात्मका भेद जानने का मार्ग बालाप्रसे भी अधिक नेहा है, हुर धारसे मी . हर वाला है। जो भावनामयी तत्वको प्रात्मा और नाम, अधिक वीक्ष्ण है। बहुत थोड़े हैं, जो धर्मको जानते है रूप, कर्मात्मक तत्वको अनात्म मानने वाला है, जो बहुत ही कम है जो इस पर श्रद्धा लाते हैं । बहुत हो विवेकशील है, हित अहितका विचार रखने वाला है, बिरले है जो इस पर चलते है. जिसके लिये न कुछ अच्छा है, न कुछ बुरा है । जो हित-साधक है वही अच्छा है, जो हित-बाधक है वही क. प. ३.२.३ बुरा है। जो प्रत्येक कर्मके अच्छेपन और बुरेपनको *"रोहिंमलदुर दोवि" हायानुप्रे केवल उसके अभिप्रायसे नहीं जाँचता, बल्कि उसके किसमेति ध्ययोज्यत्र मोहिता" फल, उसके परिणामसे जाँचने वाला है। जो विशाल-गीता - •(4)"पुरस्य पारा निखिता हुल्लया, दुर्ग या त , (1) "Because strait is the gate and narrow is the way which leadeth unto life, and few कोदन्धि" - .... there are that find it." (पा) चरायवर सूड..... ... .-Bible St. Matthew, 7.14.
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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