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________________ भूल स्वीकार [ लेखक-श्री सन्तराम बी० ए० ] शमेरिकामें डेलकारनेगी नामके एक सजन मुसकेके विना क्यों छोड़ रक्खा है? क्या भाप "लोगोंको मित्र बनाने और जनता को नहीं जानते कि, यह कानूनके विरुद्ध है ?" मैंने प्रभावित करनेकी कलाके विशेषज्ञ हैं। जन्होंने इस नरमीसे उत्तर दिया:-"हाँ, मैं जानता हूँ । परन्तु विषयपर कई उत्तम ग्रंथ भी लिखे हैं। दसरे लोगों में समझता था कि, यह यहाँ कोई हानि नहीं को अपने विचारका बनाना एक गुर वे यह बताते पहुंचायेगा।" "आप नहीं समझते थे! आप नहीं। है कि, यदि हम गलती पर हों, तो हमें अपनी समझते थे! आप क्या समझते हैं, कानूनको गलतीको मान लेना चाहिये। इससे दसरा व्यक्ति इसकी रत्ती भर भी परवाह नहीं हो सकती है कि शस्त्र डाल देता है। वे अपने जीवनकी एक घटना यह कुत्ता किसी गिलहरीको मार डाले अथवा इस प्रकार लिखते हैं, किसी बच्चेको काट खाये। अब इस बार तो मैं "यद्यपि मैं न्यूयाकके औद्योगिक केन्द्रमें रहता आपको छोड़ देता हूँ; परन्तु यदि मैंने फिर कभी हूँ, वो भी मेरे घरसे मिनटकी दूरीपर जंगली इस कुत्तेको यहाँ बिना तसमे और मुसकेके देख लिया, तो आपको जजके सामने पेश होना लकड़ीका एक छोटासा नैसर्गिक वन है, जहाँ पड़ेगा।" वसन्त ऋतुमें ब्लेकबैरीके सफेद फूलोंका वितान वन जाता है, जहाँ गिलहरियां घोंसले बनाकर मैंने विनीत भावसे उसकी आज्ञाका पालन बच्चे पालती हैं और जहाँ घोड़ा-घास घोड़ेके करनेका वचन दिया और मैंने आज्ञा-पालन सिरके बराबर लंबी उगती है। यह प्राकृतिक बन- किया-थोड़ी बार । परन्तु रेक्स मुसकेको पसन्द भूमि फ्रॉरिस्टपार्क कहलाती है। मैं बहुधा अपने नहीं करता था । और न मैं करता था। इसलिये कुत्ते, रेक्सके साथ इस पार्क में घूमने जाया करता हमने अवसर देखनेका निश्चय किया । कुछ समय हूँ। रेक्स एक स्नेही और निर्दोष कुत्ता है पाकी वक प्रत्येक बात मनोहर थी, परन्तु हम फिर पकड़े हमें क्वचित् ही कोई मनुष्य मिलता है। इसलिये गये। एक दिन तीसरे पहर रेक्स और मैं एक मैं रेक्सके गलेमें न तसमा बाँधता हूँ और न मुँह- पर्वतकेमाथे पर दौड़ रहे थे। वहाँ सहसा कानून पर मुसका। की विभूति कुम्मत घोड़े पर सवार देख पड़ा। ___एक दिन हमें पार्कमें एक घुड़सवार पुलिसमैन रेक्स मेरे आगे-आगे सीधा पुलिस अफसर के पीछे मिला । उसे अपना अधिकार दिखानेकी खुजली दोड़ा जा रहा थाइससे मुझे बड़ी व्याकुलता हुई। हो रही थी। उसने मुझे तीव्र भर्त्सना करते हुए मैं इसमें फँसता था, यह बात मुझे मालूम कहा,-"आपने कुत्तेको इस पार्कमें तसमे और थी। इसलिए मैंने पुलिसमैनके पास भारम्म
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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