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अनेकान्त [ज्येष्ठ-अषाढ़, वोर-निर्वाण सं० १४६६
उदास लेटे हुए सिपाही से कहिये कि, मेरे शरीरके अनुप्राणित करते थे । अधिक शोचनीयरूपसे भीतर १३ से २० तक छेद हैं और मैं फिर भी आहत १२ व्यक्तियोंमेंसे चार मर गये; परन्तु सन्दुरुस्त होकर पुनः रण-क्षेत्रमें जाऊँगा ।" उस बाकी आठ इवने पूर्णरूपसे उसके प्रभावके नीचे व्यक्सेि कहिये, जो समझ रहा है कि, उसे आ गये कि, वे सबके सब उस महासंकटमेंसे पक्षाघात हो जायगा,-कि,-"यह युद्ध अभीवक बचकर निकल आये । डाक्टर और नरसें एक प्रारम्भ ही नहीं हुआ" और कहिये कि- समान अनुभव करती थी और इतने उच्च स्वरसे "जितनी जल्दी हो सके, वह अपने काम पर चला कि, जिसे सब कोई सुन सकता था, कहती थी,जाय।" एक अफसरका दायर्या पार्श्व छरें से उड़ "मैं बिलकुल तन्दुरुस्त हूँ।"-बादको जब वह गया था। उससे इसने कहा,-"जब तक आपकी आशावादी रोगी चङ्गा होकर अस्पतालसे चला छातीमें हृदयमें मौजूद है, आपको कुछ भी चिन्ता गया, एक सर्जन मिला । उसने मुझे बताया कि, नहीं करनी चाहिये । पाप जैसा नवयुवक बड़ेसे अस्पतालके वार्ड में प्रत्येक व्यक्ति विश्वास करता बड़ा कष्ट सहन करके भी जीता बच सकता है। था, कि उस आयरिशमैनने उसे मृत्युके मुखसे जब मैं चङ्गा होकर वापस घर जाऊँगा, तो अपने निकाला है। छोटे बच्चोंसे कहूँगा कि अस्पतालमें मैंने एक मास उस सिपाहीने मुझे सिखाया कि, हतोत्साहित की 'फरलो' की छुट्टी काटी है।"
सिपाही मृत्यु-मुखकी ओर खिसकने लगता है विदाके दिन मैं उनको नमस्कार कहनेके लिये और पाशाके बिना दवा-दारू कुछ भी काम नहीं ठहर गया। मैंने कहा, डाक्टर ! मुझे अपना देती। मैं युद्धसे जो निशानियाँ लाया हूँ, उनमें पता बताते रहना, मैं आपको पत्र लिखूगा। इस एक चिट्ठी है, जो मोरमेंसे एक ऐसे सिपाहीकी प्रकार भापको मालूम हो जायगा कि, मैं कब लिखी हुई है, जो तन्दुरुस्त होकर पुनः अपनी अपनी रेजीमेंट में वापस जाता हूँ। वीर मनुष्य रेजीमेंटमें गया था । वह मैं यहां पूरीकी पूरी यहाँ लेटकर नरसोंसे सेवा कराते हुए जीवन नहीं उधृत करता हूँबिता सकता । डाक्टर! नमस्कार, मेरी कुछ चिन्ता डाक्टर ! मैं बिलकुल तन्दुरुस्त हूँ, मेरी कुछ न करना।"
चिन्ता न कीजिये। ये भाशाजनक शब्द अनिवार्यरूपसे रोज
(गृहस्वसे) दुहराये जाते थे और अस्पतालमें प्रत्येक व्यक्तिको