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भनेकान्त
[व्येष्ठ-अबाद, वीर-निर्वाण सं० २४६६
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सिवाय जुएमें जीते हुए, अपने माप विके हुए, निवासी रामनाथ चक्रवर्तीने अपने पदमलोचन दुर्भिक्षके समय बचाये हुए आदि अधिक हैं। ये नामक सात वर्षको उनके दासको दुर्मिक्षश दास जो कुछ कमाते थे, उस पर उनके स्वामीका प्रम-वन न दे सकनेके कारण २) पण लेकर ही अधिकार होता था।
राजचन्द्र सरकारको बेच दिया । यह सदैव सेवा पूर्वकालमें भारतवर्षमें दास-विक्रय होता था, करेगा। इसे अपनी दासीके साथ ब्याह देना । इसके अपेक्षाकृत आधुनिक प्रमाण भी अनेक ब्याहसे जो सन्तान होगी वह भी यही दास-दासी मिलते हैं
कर्म करेगी। यदि यह कभी भाग जाय वो अपनी ईसा की चौदहवीं सदीके प्रसिद्ध भारतयात्री क्षमतासे पकड़वा लिया जाय । यदि मुक्त होना इब्नबतूताने बङ्गालका वन करते हुए लिखा चाहे तो २२ मन सीसा () और रसून (लशून १) है कि "यहाँ तीस गज लम्बा सूती वस्त्र दो देकर मुक्त हो जाय। दस्तावेज लिख दी कि दीनार में और सुन्दर दासी एक स्वर्ण दीनार- सनद रहे। में मिल सकती है। मैंने स्वयं एक अत्यन्त रूप. इन प्रमाणोंसे स्पष्ट हो जाता है कि पूर्वकाल बती 'माशोरा' नामक दासी इसी मूल्यमें तथा में दास-दासी एक तरहकी जायदाद ही थे। मेरे एक अनुयायीने छोटी अवस्था का 'लूलू' खरीदे-बेचे जा सकते थे, वे स्वयं अपने मालिक न नामक एक पास दो दीनारमें मोल लिया था । थे, इसीलिए उनकी गणना परिग्रहमें की गई है। अर्थात उस समय दास दासी अन्य चीजोंके ही यह सच है कि अमेरिका-यूरोप आदि देशोंसमान मोल मिल सकते थे।
के समान यहाँ गुलामों पर उतने भीषणअत्याचारबङ्गला मासिक 'भारतवर्ष' (वर्ष ११ खण्ड न होते थे जिनका वर्णन पढ़कर रोंगटे खड़े हो २ ६ पृ० ८४७) में प्रो. सतीशचन्द्र मित्र आते हैं और जिनको स्वाधीन करनेके लिए
का 'मनुष्यविक्रय पत्र' नामक एक लेख छपा है। अमेरिका में (सन् १८६०) चार पाँच वर्ष तक जिसमें दो दस्तावेजों की नकल दी है- जारी रहने वाला सिविल-वार' हुआ था । फिर
(१) प्रायः २५० वर्ष पहले बरीसालके एक भी इस घातसे इन्कार नहीं किया जा सकता कि कायस्थने ७ छोटे बड़े स्त्री-पुरुषों को ३१) रुपये- भारतवर्ष में भी गुलाम रखनेकी प्रथा थी और में बेचा था। यह दस्तावेज फाल्गुन १३१६ (बंगला उनकी हालत लगभग पशुओं जैसी ही थी। संवत) के 'ढाका रिव्यू' में प्रकाशित हुई है। (२) सन् १८५५ में ब्रिटिश पार्लमेंटने एक नियम बनादूसरी दस्तावेज १६ पौष १९९४ (ब० सं०) की कर इसे बन्द किया है। यद्यपि इनके अवशेष लिखी हुई है। उसका सार यह है कि, अमीराबाद अब भी कहीं कहीं मौजूद हैं। परगना (फरीदपुर-जिला) के गोयाला प्राम- गलामीका परिचय प्राप्त करने के लिए बकर टी.
*देखो, काशीविद्यापीठ-वारा प्रकाशित 'इनबतूता की वाशिंगटनका 'भारमोदार' और मिसेज एच० वी० स्टो की भारतयात्रा' का पृष्ठ ३६१ ।
लिखी हुई 'राम काका की कुटिया' मादि पुस्तकें पढ़नी चाहिए।