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________________ अनेकान्त [ज्येष्ठ-अषाढ़, वीर-निर्वाण सं० २४६६ - अथवा धननन्द था । इसका मन्त्री शकटार सी० एम० वर्डवुड और श्रीयुत स्वर्गीय जैन धर्मानुयायी था, जो अन्त में मुनि होगया काशीप्रसाद जायसवाल प्रमुख हैं।" ईसा की था । ५ वीं शताब्दी तकके प्राचीन जैन-प्रन्थ एवं बाद इसके पुत्र स्थूल भद्र और श्रीयक थे। स्थूल के शिलालेखों का कथन है कि जब उत्तरभारतभद्र जैन मुनि होगये थे और श्रीयक को मन्त्री में बारह वर्षोंका घोर दुर्भिक्ष पड़ा था तब पद मिला था। इसीका अपर नाम सम्भवतः चन्द्रगुप्त अन्तिम श्रुत केवली श्री भद्रवाहुके राक्षस था। यद्यपि उस समय भारतमें घननन्द साथ दक्षिणकी ओर चला गया और वर्तमान सबसे बड़ा राजा समझा जाता था फिर भी इसमें मैसूर राज्यान्तर्गत श्रवणबेल्गोल में-जहाँ अब इतनी योग्यता नहीं थी कि यह इतने विस्तत तक उसके नामकी यादगार है-मुनि के तौर पर राज्यको समुचित रीतिस संभाल लेता। फलतः रहकर अन्तमें वहीं पर वह उपवासपूर्वक स्वर्गाउधर कलिंगको ऐरवंशके एक राजाने इस सीन हुआ। श्रवणबेल्गोलकी स्थानीय अनुजीत लिया। इधर चाणक्यकी सहायतासे श्रुति भी भद्रबाहु और चन्द्रगुप्तका सम्बन्ध चन्द्रगुप्त ने इसपर आक्रमण कर दिया। अन्त , - जोड़ती है। इतना ही नहीं; अनुश्रुति द्वारा श्रवणमें ई० पूर्व ३२६ में नन्द-वंशकी इतिश्री होगई। बेल्गोलकं साथ इन दोनोंका भी सम्बन्ध जुड़सा है। श्रवणबेल्गोलके दो पर्वतों में से छोटेका सर स्मिथके कथनानुसार इसने ही जैनियोंके नाम 'चन्द्रगिरि' है जो कि चन्द्रगुप्त नामक तीर्थ पंचपहाड़ीका निर्माण पटनामें कराया था। ' किसी महान व्यक्तिका स्मृति चिन्ह है। इसी पर मौर्य-चंच-जैन-साहित्य और शिला. एक गुफा भी है जिसका नाम 'भद्रबाहु' गुफा है । लखोंसे मौर्यसम्राट् चन्द्रगुप्त जैन-धर्मका परम- इसी पर्वत पर एक सुन्दर प्राचीन मन्दिर भी भक्त प्रमाणित होता है । इतिहास-लेखक दीर्घ- है, जिसका नाम 'चन्द्रगुप्तवस्ति' है। काल तक इस बात पर विश्वास करनेको तैयार सम्राट चन्द्रगुप्त का उत्तराधिकारी बिन्दुसार नहीं हुए। परन्तु अब इधर कुछ वर्षोंसे ऐति भी परिशिष्ट पर्व भादि जैन प्रन्थों से जैन धर्मा. हासिक विद्वानोंने बहुमतसे चन्द्रगुप्तका जैन वलम्बी मिद्ध होता है । जैन ग्रन्थों में इसका धर्मानुयायी होना स्वीकार कर लिया है। इन विद्वानोंमें मि० विन्सेन्ट ए० स्मिथ, मि० ई० दूसरा नाम सिंहमन मिलता है। बिन्दुसार अपने श्रद्धेय पिता के समान बड़ा प्रतापी था। इसकी थामस मि०विल्सन, मि० बी०लुईस राइस, स० विजयों का पर्ण वृत्तान्त उपलब्ध होने पर निस्सइम्साइक्लोपीडिया आफरिलीजन, मि० जार्ज न्देह इसे भी चन्द्रगुप्त और अशोक जैसे १४ देखो, 'भाराधना कथा कोश' भाग ३, पृष्ठ ७८-८१ । सम्राटोंकी श्रेणी में अवश्य स्थान मिल सकता है। १५ देखो, 'हिस्ट्री एण्ड लिटरेचर माक जैनिकम'। १६ देखो, 'मौर्य साम्राज्य के जैन वीर' पृष्ठ। ११८-१४८ ।
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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